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मकराना के मार्बल उद्योग को नया जीवन देगा ग्लोबल हैरिटेज स्टोन का दर्जा

पिछले कुछ समय से मंदी के साए में चल रहे मकराना के मार्बल उद्योग को अब नया जीवन मिलने की उम्मीद जगी है. इसे ग्लोबल हैरिटेज स्टोन में शुमार करने के बाद मार्बल व्यापारी, श्रमिक, मूर्ति व्यापारी और मूर्ति कारीगर से लेकर आम जनता भी आशान्वित है कि अब मकराना के फिर से दिन फिरेंगे. हालांकि, मार्बल पर जीएसटी की ज्यादा दर और रॉयल्टी को व्यापारी अब भी इस उद्योग की तरक्की में सबसे बड़ी चुनौती मानते हैं.

मकराना मार्बल खानें
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Published : Jul 29, 2019, 11:46 PM IST

नागौर. इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल साइंस की एक्सिक्यूटिव कमेटी ने मकराना के मार्बल को वर्ल्ड हैरिटेज स्टोन में शुमार किया तो मार्बल उद्योग के साथ ही इस शहर की उम्मीदों को भी नए पंख लगे हैं. मकराना के करीब 5000 मार्बल व्यापारी, मार्बल चिराई में लगे श्रमिक, जमीन से पत्थर निकलने वाले करीब 50 हजार श्रमिक, एक हजार से ज्यादा मूर्ति कारीगर और करीब 100 मूर्ति व्यापारी, इनमें एक नई उम्मीद का संचार हुआ है कि अब मकराना के मार्बल उद्योग पर छाए मंदी के बादल जल्द छंटने वाले हैं.

मकराना के मार्बल उद्योग को ग्लोबल हैरिटेज का दर्जा मिलने से क्षेत्र को अब जगी उम्मीदें

प्रदेश की अन्य मार्बल मंडियों से प्रतिस्पर्धा, सरकारी तंत्र की बेरुखी और दोहरी टैक्स व्यवस्था के कारण पिछले कुछ सालों से इस उद्योग पर मंदी का साया मंडरा रहा था. इसी के कारण यहां आने वाले मजदूरों की संख्या में भी कमी आई थी. इसी बीच कानूनी पेचीदगियों के कारण कुछ खानें बंद भी रहीं थी. अब यह खानें भी शुरू हो चुकी हैं और इस पत्थर को ग्लोबल हैरिटेज स्टोन का दर्जा भी दिया है. इससे उम्मीद बंधी है कि इस उद्योग और मकराना पर छाए संकट के बादल जल्द ही छंट जाएंगे.

यह भी पढ़ें : गहलोत के जय श्रीराम बोलने पर कटारिया ने कहा- हमारी विचारधारा ने आखिरकार उन्हे मजबूर कर ही दिया

हालांकि, मार्बल व्यापारियों के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं. मसलन, मार्बल को लग्जरी वस्तु मानते हुए सरकार ने इसे 18 फीसदी जीएसटी स्लैब में रखा है. इसके साथ ही इस पर रॉयल्टी भी वसूल की जाती है. जिसके कारण यह पत्थर खरीदारों को महंगा पड़ता है. व्यापारियों की यह मांग भी लंबे समय से है कि इसे 5 फीसदी जीएसटी स्लैब में शामिल किया जाए और इस पर रॉयल्टी वसूली बंद हो. अब देखना यह है कि उनकी इन मांगों को सरकार कितनी गंभीरता से लेती है.

नागौर. इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल साइंस की एक्सिक्यूटिव कमेटी ने मकराना के मार्बल को वर्ल्ड हैरिटेज स्टोन में शुमार किया तो मार्बल उद्योग के साथ ही इस शहर की उम्मीदों को भी नए पंख लगे हैं. मकराना के करीब 5000 मार्बल व्यापारी, मार्बल चिराई में लगे श्रमिक, जमीन से पत्थर निकलने वाले करीब 50 हजार श्रमिक, एक हजार से ज्यादा मूर्ति कारीगर और करीब 100 मूर्ति व्यापारी, इनमें एक नई उम्मीद का संचार हुआ है कि अब मकराना के मार्बल उद्योग पर छाए मंदी के बादल जल्द छंटने वाले हैं.

मकराना के मार्बल उद्योग को ग्लोबल हैरिटेज का दर्जा मिलने से क्षेत्र को अब जगी उम्मीदें

प्रदेश की अन्य मार्बल मंडियों से प्रतिस्पर्धा, सरकारी तंत्र की बेरुखी और दोहरी टैक्स व्यवस्था के कारण पिछले कुछ सालों से इस उद्योग पर मंदी का साया मंडरा रहा था. इसी के कारण यहां आने वाले मजदूरों की संख्या में भी कमी आई थी. इसी बीच कानूनी पेचीदगियों के कारण कुछ खानें बंद भी रहीं थी. अब यह खानें भी शुरू हो चुकी हैं और इस पत्थर को ग्लोबल हैरिटेज स्टोन का दर्जा भी दिया है. इससे उम्मीद बंधी है कि इस उद्योग और मकराना पर छाए संकट के बादल जल्द ही छंट जाएंगे.

यह भी पढ़ें : गहलोत के जय श्रीराम बोलने पर कटारिया ने कहा- हमारी विचारधारा ने आखिरकार उन्हे मजबूर कर ही दिया

हालांकि, मार्बल व्यापारियों के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं. मसलन, मार्बल को लग्जरी वस्तु मानते हुए सरकार ने इसे 18 फीसदी जीएसटी स्लैब में रखा है. इसके साथ ही इस पर रॉयल्टी भी वसूल की जाती है. जिसके कारण यह पत्थर खरीदारों को महंगा पड़ता है. व्यापारियों की यह मांग भी लंबे समय से है कि इसे 5 फीसदी जीएसटी स्लैब में शामिल किया जाए और इस पर रॉयल्टी वसूली बंद हो. अब देखना यह है कि उनकी इन मांगों को सरकार कितनी गंभीरता से लेती है.

Intro:पिछले कुछ साल से मंदी के साए में चल रहे मकराना के मार्बल उद्योग को नया जीवन मिलने की उम्मीद जगी है। इसे वर्ल्ड हैरीटेज स्टोन में शुमार करने के बाद व्यापारी, श्रमिक, मूर्ति व्यापारी और मूर्ति कारीगर से लेकर आम जनता भी आशान्वित है कि अब मकराना के दिन फिरेंगे। हालांकि, जीएसटी की ज्यादा दर और रॉयल्टी को व्यापारी अब भी इस उद्योग की तरक्की में सबसे बड़ी चुनौती मानते हैं।


Body:नागौर. इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल साइंस की एक्सिक्यूटिव कमेटी ने मकराना के मार्बल की वर्ल्ड हैरिटेज स्टोन में शुमार किया तो मार्बल उद्योग के साथ ही इस शहर की उम्मीदों को भी नए पंख लगे हैं। मकराना के करीब 5000 मार्बल व्यापारी, मार्बल चिराई में लगे श्रमिक, जमीन से पत्थर निकलने वाले करीब 50 हजार श्रमिक, एक हजार से ज्यादा मूर्ति कारीगर और करीब 100 मूर्ति व्यापारी। इनमें एक नई उम्मीद का संचार हुआ है कि अब मकराना के मार्बल उद्योग पर छाए मंदी के बादल जल्द छंटने वाले हैं।
प्रदेश की अन्य मार्बल मंडियों से प्रतिस्पर्धा, सरकारी तंत्र की बेरुखी और दोहरी टैक्स व्यवस्था के कारण पिछले कुछ सालों से इस उद्योग पर मंदी का साया मंडरा रहा था। इसी के कारण यहां आने वाले मजदूरों की संख्या में भी कमी आई थी। इसी बीच कानूनी पेचीदगियों के कारण कुछ खानें बंद भी रहीं। अब यह खानें भी शुरू हो चुकी हैं और इस पत्थर को ग्लोबल हैरीटेज स्टोन का दर्जा भी दिया है। इससे उम्मीद बंधी है कि इस उद्योग और मकराना पर छाए संकट के बादल जल्द ही छंट जाएंगे।


Conclusion:हालांकि, मार्बल व्यापारियों के सामने कई चुनौतियां अभी भी हैं। मसलन, मार्बल को लग्जरी वस्तु मानते हुए सरकार ने इसे 18 फीसदी जीएसटी स्लैब में रखा है। इसके साथ ही इस पर रॉयल्टी भी वसूल की जाती है। जिसके कारण यह पत्थर खरीदारों को महंगा पड़ता है। व्यापारियों की यह मांग भी लंबे समय से है कि इसे 5 फीसदी जीएसटी स्लैब में शामिल किया जाए और रॉयल्टी वसूली बंद हो। अब देखना यह है कि उनकी इन मांगों को सरकार कितनी गंभीरता से लेती है।
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बाइट 1- अब्दुल अजीज, मार्बल व्यापारी।
बाइट 2- पंडित विमल पारीक, ज्योतिषी।
बाइट 3- मो. अली गहलोत, व्यापारी।
बाइट 4- अब्दुल अजीज सिसोदिया, व्यापारी।
बाइट 5- अब्दुल अजीज, व्यापारी।
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