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कपासन : अफीम की फसल में आने लगे सफेद फूल, किसानों के चेहरे खिले

नागौर के कपासन में अफीम की फसल पर फूल निकल कर डोडे बनना आरंभ हो गया है. वहीं, अब 20 से 25 दिनों में फसल पक कर तैयार हो जाएगी. अफीम काश्तकारों का मानना है कि दीपावली से पूर्व बोई गई फसल बिना किसी शीत लहर की चपेट में आए. किसानों को अच्छा फायदा देती है. अगेती फसल में मौसमी बीमारियों का प्रकोप भी कम देखने को मिला है. जिन किसानों ने अफीम की बुवाई देरी से की है.

Doda out of poppy crop, अफीम संग्रहण का कार्य आरम्भ , राजस्थान की ताजा हिंदी खबरें
नागौर के कपासन में अफीम की फसल में निकले डोडे
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Published : Jan 29, 2021, 10:55 PM IST

कपासन (नागौर). जिले के कपासन क्षेत्र में अफीम की फसल पर फूल निकल कर डोडे बनना आरम्भ हो गए हैं. जिसके चलते आगामी 20 से 25 दिनो में फसल पक कर तैयार हो जाएगी. जिसमें फरवरी के प्रथम पखवाड़े में अफीम फसल में चीर लगाने और अफीम संग्रहण का कार्य आरम्भ हो जाएगा.

अफीम काश्तकारों का मानना है कि दीपावली से पूर्व बोई गई फसल बिना किसी शीत लहर की चपेट में आए. किसानों को अच्छा फायदा देती है. अगेती फसल में मौसमी बीमारियों का प्रकोप भी कम देखने को मिला है. जिन किसानों ने अफीम की बुवाई देरी से की है. उनमें विगत एक सप्ताह से मौसम में आए बदलाव के चलते शीतलहर और कोहरे के कारण अफीम के पत्ते मुरझाने लगे थे, जिन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की मदद से फसलों का उपचार करवाया.

Doda out of poppy crop, अफीम संग्रहण का कार्य आरम्भ , राजस्थान की ताजा हिंदी खबरें
कपासन में अफीम की फसल मे निकले डोडे

स्थानीय भाषा में इस रोग को कोढनी रोग भी कहा जाता है. सहायक कृषि अधिकारी प्रशान्त जाटोलिया ने बताया कि डाउनी मिडलयू (काली मस्सी) के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए रिडोमिल एम जेड और मेटालेक्सील का स्प्रे कृषि अधिकारियों की सलाह पर निर्धारित मात्रा में करके फसल को इस रोग से बचाया जा सकता है.

पढ़ें- दलित महिला से गैंगरेप मामले में 3 आरोपी गिरफ्तार, जांच में जुटी पुलिस

किसानों ने फसलों को निलगायों और तोतो से बचाने के लिये पूरे खेत के ऊपर झाली और चारों दिशाओं में कपड़े की कनात लगा कर दिन रात रखवाली कर रहे है. वहीं किसानों ने अफीम एकत्र करने के औजारों की खरीद फरोक्त आरम्भ कर दी है.

कपासन (नागौर). जिले के कपासन क्षेत्र में अफीम की फसल पर फूल निकल कर डोडे बनना आरम्भ हो गए हैं. जिसके चलते आगामी 20 से 25 दिनो में फसल पक कर तैयार हो जाएगी. जिसमें फरवरी के प्रथम पखवाड़े में अफीम फसल में चीर लगाने और अफीम संग्रहण का कार्य आरम्भ हो जाएगा.

अफीम काश्तकारों का मानना है कि दीपावली से पूर्व बोई गई फसल बिना किसी शीत लहर की चपेट में आए. किसानों को अच्छा फायदा देती है. अगेती फसल में मौसमी बीमारियों का प्रकोप भी कम देखने को मिला है. जिन किसानों ने अफीम की बुवाई देरी से की है. उनमें विगत एक सप्ताह से मौसम में आए बदलाव के चलते शीतलहर और कोहरे के कारण अफीम के पत्ते मुरझाने लगे थे, जिन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की मदद से फसलों का उपचार करवाया.

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स्थानीय भाषा में इस रोग को कोढनी रोग भी कहा जाता है. सहायक कृषि अधिकारी प्रशान्त जाटोलिया ने बताया कि डाउनी मिडलयू (काली मस्सी) के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए रिडोमिल एम जेड और मेटालेक्सील का स्प्रे कृषि अधिकारियों की सलाह पर निर्धारित मात्रा में करके फसल को इस रोग से बचाया जा सकता है.

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किसानों ने फसलों को निलगायों और तोतो से बचाने के लिये पूरे खेत के ऊपर झाली और चारों दिशाओं में कपड़े की कनात लगा कर दिन रात रखवाली कर रहे है. वहीं किसानों ने अफीम एकत्र करने के औजारों की खरीद फरोक्त आरम्भ कर दी है.

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