कोटा. राजस्थान सहित देश के कई हिस्सों में यूरिया की कमी बनी हुई है. किसानों को बुवाई के लिए यूरिया की जरूरत है और वो सरकारी दुकानों के सामने कतारबद्ध खड़े हैं. हाड़ौती का किसान हर साल की तरह इस साल भी हाथ बांधे खड़ा है (Urea Biggest Supplier Kota). बूंदी, बारां, कोटा और झालावाड़ में यूरिया की कमी देखी जा रही है. बूंदी में तो हालात काफी विकट है. यूरिया पुलिस सुरक्षा में नहीं बांटी जा रही ऊपर से अन्नदाता राशनिंग से परेशान है.
किसानों को 2 से लेकर 5 कट्टे तक यूरिया के दिए जा रहे हैं. घंटों लाइन में लगने के बाद भी किसान उतनी मात्रा में यूरिया हासिल नहीं कर पा रहा जितने की उसे जरूरत है (farmers Struggle for Urea). ये समझना वाकई मुश्किल है कि ऐसे संभाग में यूरिया की किल्लत है जिसका कोटा जिला यूरिया उत्पादन में नम्बर 1 है. यहां पर हर साल करीब 45 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन हो रहा हैं. एशिया का सबसे बड़ा यूरिया उत्पादक प्लांट- चंबल फर्टिलाइजर एंड केमिकल लिमिटेड भी यहीं मौजूद स्थित है.
नियमों का दायरे में फंसा अन्नदाता: इतने उत्पादन के बाद भी किसान खाली हाथ है तो उसकी जिम्मेदार वो पॉलिसी है जिसमें फंस कर वो तिलमिला रहा है. दरअसल, केंद्र सरकार की पॉलिसी के तहत यूरिया का आवंटन केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय करता है. कोटा जिले को सीधा अलॉटमेंट न होकर दूसरी जगह से भी यूरिया मिल रहा है. इससे देरी हो रही है और आवंटन भी पूरा नहीं हो पा रहा है. यही वजह है कि यहां अग्रणी उत्पादक होने के बावजूद कमी बनी बरकरार है.
केन्द्र का अधिकार क्षेत्र: इस पूरे मसले पर अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ही यूरिया की सप्लाई तय करता है. किस राज्य को कितना यूरिया किस प्लांट से मिलेगा और कब-कब यह डिस्ट्रीब्यूशन किया जाएगा, यह भी केंद्रीय उर्वरक मंत्रालय का ही कार्य है. इसके चलते इस पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं है. राज्य सरकार यूरिया के एलोकेशन को अपने हिसाब से जिलों को भेज देती है.
एक दिन में 10 हजार एमटी से ज्यादा यूरिया: कोटा के कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक राम अवतार शर्मा का मानना है कि गड़ेपान स्थित चंबल फर्टिलाइजर एंड केमिकल लिमिटेड प्लांट रोज 9500 से लेकर 10,000 मीट्रिक टन यूरिया का निर्माण कर रहा है.कोटा स्थित डीसीएम श्रीराम लिमिटेड में भी सालाना करीब 10 मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है. इस तरह कुल मिलाकर कोटा में ही हर साल करीब 45 लाख मीट्रिक टन यूरिया हो रहा है. इस उत्पादन के आधार पर पूरे 1 महीने का उत्पादन ही कोटा को आवंटित हो जाए, तब यहां कोई यूरिया की कमी नहीं रहेगी.
पंजाब-हरियाणा MP को भेजा जा रहा माल: कोटा से यूरिया पंजाब-हरियाणा, मध्य प्रदेश और हरियाणा में ज्यादातर माल भेजा जाता है. दूसरे ज्यादा सप्लाई वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा गुजरात, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर भी हैं. इसके अलावा यहां से नॉर्थ ईस्ट के अलावा साउथ राज्यों के लिए भी यूरिया सप्लाई होता है. कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक शर्मा का कहना है कि राजस्थान को नवंबर महीने में सीएफसीएल गड़ेपान से 85 हजार मीट्रिक टन यूरिया का एलोकेशन हुआ था जो कि पूरे महीने में मिल जाएगा.
कोटा चाहे उत्पादन का महज 7 फीसदी: कोटा संभाग 3 लाख 10 हजार मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता है. यह कोटा जिले में उत्पादित 45 मेट्रिक टन यूरिया का 7 फीसदी से भी कम है. हालांकि यह लोकेशन कोटा को पूरा यहां से नहीं मिलता है. सीएफसीएल में उत्पादित हो रहा है, यूरिया उत्तम के नाम से बिक्री होता है. जबकि डीसीएम श्रीराम यूरिया श्रीराम के नाम से है. इसकी भी कोटा में सप्लाई सीमित मात्रा में ही होती है. इसके अलावा यहां पर इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल), इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव (इफको), नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड (एनएफएल), गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल लिमिटेड (जीएसएफसी) व कृषि भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) का यूरिया भी रेल और सड़क मार्ग से पहुंचता हैं.
क्या राजनीति से प्रेरित है ये!: बीते दिनों प्रदेश में यूरिया की कमी और हिंडोली विधानसभा क्षेत्र में लंबी कतारें लगने के बाद क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश के युवा एवं खेल मंत्री अशोक चांदना ने भी केंद्र सरकार पर हमला बोल दिया था. उन्होंने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार यूरिया के आवंटन में भेदभाव करती है, जिन राज्यों में चुनाव है और वहां भाजपा की सरकार है तो पूरा यूरिया किसानों को पहुंचाया जाता है जबकि दूसरे राज्यों की डिमांड में कटौती कर माल देरी से दिया जा रहा है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब मध्य प्रदेश में चुनाव थे, तब भी सरकार ने ऐसा ही किया था. वहीं 2021 में जब यूपी के चुनाव थे, तब भी ज्यादातर यूरिया की सप्लाई यूपी में भेज दी गई थी.