ETV Bharat / state

बूंदीः राजस्थान का ऐसा शक्तिपीठ जो आज भी हर वर्ष जौ के बराबर धरती में होता है समाहित

कोरोना का कहर भले ही बरकरार है, लेकिन लोगों की आस्था कम नहीं हो रही है. जाहिर है नवरात्र का पर्व जो चल रहा है. ऐसे में श्रद्धालुओ की भीड़ हर किसी को चकित कर रही है. लेकिन मंदिरों में श्रद्धा के बीच भी श्रद्धालु सोशल डिस्टेंसिग और मास्क का भी विशेष ध्यान रखे हुए थे. उपखंड के बलकासा गांव में मां कालिका का अति प्राचीन मंदिर स्थित है जो हर साल जौ के बराबर धरती में समाहित हो जाता है.

bundi latest news, bundi Hindi News
यहां माता होती है जौ के आकार में जमींदोज
author img

By

Published : Oct 24, 2020, 7:23 PM IST

केशवरायपाटन (बूंदी). जिले के केशवरायपाटन उपखंड मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर बलकासा ग्राम पंचायत मुख्यालय पर स्थित मां कालिका माता का अतिप्राचीन शक्तिपीठ स्थित है. जानकारों के मुताबिक इस शक्तिपीठ की स्थापना हजारों साल पहले द्वापर युग मे अज्ञात वास के दौरान आये पांडवों ने की थी. मान्यता है कि हर साल यह मंदिर जौ के आकार के बराबर धरती में समाहित हो जाता है.

यहां माता होती है जौ के आकार में जमींदोज

बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कोलकाता में मां कालिका की भक्ति कर साथ चलने की प्रार्थना की थी. पांडवों की भक्ति से खुश होकर मां कालिका उनके सामने शर्त रख साथ चल पड़ी. उस समय माता ने यह शर्त रखी कि जहां तक चलोगे में साथ हूं, लेकिन जहां विश्राम होगा वहां से आगे नहीं जाउंगी. ऐसे में पांडव कोलकाता से बलकासा तक का सफर कर आये और यहां आने के साथ उन्होंने विश्राम ले लिया. फिर क्या था शर्त के अनुसार कालिका माता ने भी यही आसरा ले लिया. उस समय पांडवों ने पांच पत्थरों से माता का मंदिर स्थापित किया था. तब से ही यह स्थान पांडवों द्वारा स्थापित प्राचीन शक्तिपीठों में शुमार हो गया.

जौ की पिसाई से शुरू हुआ मंदिर के जमींदोज होने का सिलसिला

जानकारी में यह भी आया है कि पांडवों द्वारा मंदिर स्थापित करते करते सुबह के 4 बज गए. इतने में गांव से घट्टी में जौ पिसने की आवाजें आने लगी. मां ने पांडवों से कहा कि यह मंदिर सालभर में जौ के आकार से धरती में समाहित होगा, जो आज भी कायम है.

पढ़ेंः Special : तीर्थराज पुष्कर में है माता सती के दोनों हाथों की कलाइयां, जानिए कैसे बना मां का यह 27वां शक्तिपीठ

वर्षों पूर्व धाकड़ समाज करता था मां की सेवा

बुजुर्ग ग्रामीणों की मान्यता है कि गांव में वर्षों पूर्व धाकड़ समाज का एक बड़ा समूह निवास करता था. उस समय समाज के ही माता की सेवा पूजा किया करते थे. लेकिन एक दिन पुजारी के घर मेहमान आये. माता जी का मंदिर गांव से 2 किमी दूर जंगल मे स्थित था. पुजारी मेहमानों की मेहमान नवाजी के लिए शराब लेने 5 किमी दूर अरनेठा गांव जा रहा था. ऐसे में मां ने पूछा कहां जा रहे हो वत्स. तो पुजारी ने पूरा मामला बता डाला.

नवरात्रों में लगता है मेला

सालभर में यहां 2 बार मेले का आयोजन होता है. जिसमें देशभर से श्रद्धालु आते हैं. श्रद्धालुओं के खाने-पीने ठहरने तक कि उत्तम व्यवस्था स्थानीय ग्राम पंचायत और मंदिर विकास समिति द्वारा की जाती है.

2000 में हुआ समिति का गठन तो विकास को लगे चार चांद

कालिका माता मंदिर में देशभर से आते श्रद्धालुओं से काफी दान आने लगा. तो स्थानीय लोगों ने माता के नाम मां कालिका सेवा समिति का गठन कर विकास कार्य करवाने का संकल्प लिया. तब से आज तक एक करोड़ रूपय तक के विकास कार्य यहां करवाए जा चुके है.

केशवरायपाटन (बूंदी). जिले के केशवरायपाटन उपखंड मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर बलकासा ग्राम पंचायत मुख्यालय पर स्थित मां कालिका माता का अतिप्राचीन शक्तिपीठ स्थित है. जानकारों के मुताबिक इस शक्तिपीठ की स्थापना हजारों साल पहले द्वापर युग मे अज्ञात वास के दौरान आये पांडवों ने की थी. मान्यता है कि हर साल यह मंदिर जौ के आकार के बराबर धरती में समाहित हो जाता है.

यहां माता होती है जौ के आकार में जमींदोज

बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कोलकाता में मां कालिका की भक्ति कर साथ चलने की प्रार्थना की थी. पांडवों की भक्ति से खुश होकर मां कालिका उनके सामने शर्त रख साथ चल पड़ी. उस समय माता ने यह शर्त रखी कि जहां तक चलोगे में साथ हूं, लेकिन जहां विश्राम होगा वहां से आगे नहीं जाउंगी. ऐसे में पांडव कोलकाता से बलकासा तक का सफर कर आये और यहां आने के साथ उन्होंने विश्राम ले लिया. फिर क्या था शर्त के अनुसार कालिका माता ने भी यही आसरा ले लिया. उस समय पांडवों ने पांच पत्थरों से माता का मंदिर स्थापित किया था. तब से ही यह स्थान पांडवों द्वारा स्थापित प्राचीन शक्तिपीठों में शुमार हो गया.

जौ की पिसाई से शुरू हुआ मंदिर के जमींदोज होने का सिलसिला

जानकारी में यह भी आया है कि पांडवों द्वारा मंदिर स्थापित करते करते सुबह के 4 बज गए. इतने में गांव से घट्टी में जौ पिसने की आवाजें आने लगी. मां ने पांडवों से कहा कि यह मंदिर सालभर में जौ के आकार से धरती में समाहित होगा, जो आज भी कायम है.

पढ़ेंः Special : तीर्थराज पुष्कर में है माता सती के दोनों हाथों की कलाइयां, जानिए कैसे बना मां का यह 27वां शक्तिपीठ

वर्षों पूर्व धाकड़ समाज करता था मां की सेवा

बुजुर्ग ग्रामीणों की मान्यता है कि गांव में वर्षों पूर्व धाकड़ समाज का एक बड़ा समूह निवास करता था. उस समय समाज के ही माता की सेवा पूजा किया करते थे. लेकिन एक दिन पुजारी के घर मेहमान आये. माता जी का मंदिर गांव से 2 किमी दूर जंगल मे स्थित था. पुजारी मेहमानों की मेहमान नवाजी के लिए शराब लेने 5 किमी दूर अरनेठा गांव जा रहा था. ऐसे में मां ने पूछा कहां जा रहे हो वत्स. तो पुजारी ने पूरा मामला बता डाला.

नवरात्रों में लगता है मेला

सालभर में यहां 2 बार मेले का आयोजन होता है. जिसमें देशभर से श्रद्धालु आते हैं. श्रद्धालुओं के खाने-पीने ठहरने तक कि उत्तम व्यवस्था स्थानीय ग्राम पंचायत और मंदिर विकास समिति द्वारा की जाती है.

2000 में हुआ समिति का गठन तो विकास को लगे चार चांद

कालिका माता मंदिर में देशभर से आते श्रद्धालुओं से काफी दान आने लगा. तो स्थानीय लोगों ने माता के नाम मां कालिका सेवा समिति का गठन कर विकास कार्य करवाने का संकल्प लिया. तब से आज तक एक करोड़ रूपय तक के विकास कार्य यहां करवाए जा चुके है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.