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बाघों की दहाड़ के बिना मुकुंदरा का वैभव फीका, कभी थे 7 टाइगर...अब बचा महज एक - kota latest news

मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को तैयार करने में करोड़ों रुपए खर्च हो गए. लेकिन बाघों की दहाड़ के बिना इस पार्क का वैभव फीका पड़ा हुआ है. मुकुंदरा में एक समय 7 बाघ-बाघिन थे, लेकिन वर्तमान में केवल एक बाघिन मौजूद है. हर किसी को इंतजार है तो बस इस बात का कि कब बाघों की दहाड़ पार्क में गूंजे और पर्यटन को बढ़ावा मिले.

Mukundara hills tiger reserve
मुकुंदरा में बाघों का इंतजार
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Published : Feb 11, 2022, 7:52 PM IST

Updated : Feb 12, 2022, 1:54 PM IST

कोटा. जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व बाघों की दहाड़ सुनने के लिए बेकरार है. करोड़ों रुपए खर्च करके बनाया गया यह पार्क बीते डेढ़ साल से नए टाइगर का इंतजार कर रहा है. कभी यहां 7 बाघ-बाघिन थे, लेकिन अब एक ही बचा हुआ है. मुकुंदरा में टाइगर लाने के लिए जयपुर से लेकर दिल्ली तक के आला अधिकारी और एनटीसीए के बीच भी कशमकश चल रही है. लेकिन टाइगर को रीलोकेट मुकुंदरा में नहीं किया जा रहा है.

कभी एनटीसीए तो, कभी राज्य सरकार की अनुमति का हवाला अधिकारी देते हैं. यहां एक मात्र बाघिन एमटी-4 मौजूद है, जिसे भी सॉफ्ट एंक्लोजर में रखा गया है. वन्य जीव प्रेमी से लेकर कोटा के स्थानीय लोग भी टाइगर रिजर्व को आबाद होने का इंतजार कर रहे हैं. मुकुंदरा टाइगर रिजर्व बाघों की दहाड़ से आबाद हो तो यहां पर्यटन की गाड़ी चल पड़े.

मुकुंदरा में बाघों का इंतजार

पढ़ें. Tiger sight in Sariska Tiger Reserve: बाघ ST-13 के गायब होने के बाद पर्यटकों को ST-21 के ही हो पा रहे दीदार

7 बाघ- बाघिन व शावकों में केवल एक शेष
मुकुंदरा की लोकल एडवाइजरी कमेटी के सदस्य और वन्य जीव प्रेमी तपेश्वर सिंह भाटी का कहना है कि 2013 में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व बना था. जिसके बाद यहां प्रेबेस बढ़ाया गया. यहां 84 स्क्वायर किलोमीटर में पूरी बाउंड्री बनाकर प्रोटेक्शन किया गया है. उसके बाद में यहां पर 2019 में रणथंभौर टाइगर रिजर्व से एक बाघ को लाकर छोड़ा गया. यह प्रक्रिया चलती रही. एक-एक कर दो बाघिन को लाया गया. इसके बाद में रणथंभौर से ही नेचुरल रास्ते से बूंदी और फिर सुल्तानपुर दीगोद होता हुआ एक बाघ पहुंचा.

जिनमें एमटी-2 बाघिन ने दो शावकों को जन्म दिया. साथ ही दूसरी बाघिन एमटी-4 के साथ कैमरा ट्रैप में एक शावक नजर आया. तब तक मुकुंदरा के लिए सब लोग खुश थे. इसकी प्रगति देखकर प्रफुल्लित हो रहे थे. लेकिन इसके बाद ही अचानक मुकुंदरा का सिनेरियो बदल जाता है. यहां पर बाघों की मौत का क्रम शुरू होता है. इनमें 7 बाघ- बाघिन व शावकों में एक बाघिन बच जाती है. एक बाघ और बाघिन की मौत हो जाती है. साथ ही एक बाघ खो जाता है, जो अभी तक भी नहीं मिला है, न तो वन विभाग उसे मृत बताता है, न उसकी जानकारी दे पा रहा है. इसके अलावा एक शावक की मौत भी उपचार के दौरान हो गई थी. जबकि अन्य दो शावक अभी तक भी नहीं मिल पाए हैं. अब केवल एक बाघिन लाइटनिंग यानी एमटी-4 यहां पर है.

पढ़ें. Ranthambore National Park : बाघ ने आवारा सांड का किया शिकार...देखें VIDEO

अधिकारी कह रहे जल्द लाए जाएंगे टाइगर का जोड़ा
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर और चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन एसआर यादव का कहना है कि मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के घटनाक्रम के बाद में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने एक कमेटी बनाई थी. किस तरह से दोबारा मुकुंदरा को स्थापित करना है इस पर पूर्व चर्चा हो गई है. एनटीसीए की रिपोर्ट भी सबमिट कर दी गई है. जल्द ही नए टाइगर के जोड़े को रीलोकेट करने के लिए सैद्धांतिक सहमति बना ली गई है.

सॉफ्ट एंक्लोजर से बाघिन एमटी-4 को भी छोड़ा जाना तय हो गया है इसके साथ ही मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व से विलेज रीलोकेशन का काम शुरू किया जा रहा है. इसको प्राथमिकता दी गई है. इसके लिए कैंपा और अन्य फंड से 24 करोड़ रुपए की स्वीकृति जारी हुई है. मशालपुरा गांव को रीलोकेट करने के लिए पहली किश्त जारी कर दी गई है. साथ ही दामोदरपुरा का भी सोशल इकोनामिक सर्वे का काम प्रगति पर है. टाइगर के लिए जरूरी प्रे-बेस भी छोड़ने की स्वीकृति मिल गई है कि घना से 500 चीतल लाने के स्वीकृति मिली है.

इन कमियों से आबाद नहीं हुआ मुकुंदरा
रणथंभोर के रिटायर डीसीएफ दौलत सिंह शक्तावत का कहना है कि कई कमियां मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में रही इसके चलते ही यह आबाद नहीं हो पाया है. इनमें ये प्रमुख कमियां रही. रिटायर डीसीएफ शक्तावत का कहना है कि उन्होंने 37 साल वाइल्ड लाइफ में ही गुजारे हैं. जिनमें 22 साल रणथंभौर और कई सालों तक सरिस्का में भी रहे हैं. मुकुंदरा का जंगल सरिस्का और रणथंभौर जैसा ही है. यहां पर दरा की तरफ रणथंभौर जैसा जंगल है. सेल्जर की तरफ मिक्स जंगल है, जो कि मध्य प्रदेश से मिलाजुला लगता है. वहां पर पानी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. शक्तावत का मानना है कि बीते 2 से 3 सालों में यहां पर वाटर मैनेजमेंट और जंगल काफी अच्छा हो गया है.

पढ़ें. Sariska Tiger Reserve: बाघ के बाद अब पैंथर के नजर आए शावक, पर्यटक में खुशी का माहौल

लगातार नहीं छोड़े गए प्रेबेस
एक्सपर्ट्स के अनुसार मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में प्रेबेस की कमी थी और यह अभी भी है. टाइगर छोड़ने के पहले जो मापदंड था, उसके अनुसार 300 से 400 चीतल को छोड़ा गया था. यह प्रक्रिया लगातार जारी रखनी थी, ताकि हर्बीबोस की संख्या यहां पर पर्याप्त रहे. लेकिन यह बीच में ही बंद कर दिया गया है. इसके चलते यहां पर हर्बीबोस जानवरों की संख्या और घनत्व रहना चाहिए था, वह कम हो गया.

पैदल होनी चाहिए ट्रैकिंग और मॉनिटरिंगः विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग पैदल होनी चाहिए. गाड़ी में बैठे हुए और एंटीना लिए नहीं. क्योंकि कई जगह सिग्नल नहीं आते है. इससे पर्याप्त टाइगर की ट्रैकिंग नहीं हो सकती. मुकुंदरा हिल्स पहाड़ी इलाका है. ऐसे में वहां पर कई जगह पर सिग्नल नहीं आते हैं. इसके लिए ऐसे पॉइंट बनाने चाहिए, जहां पर प्रॉपर सिग्नल सभी तरफ से आए. जिससे कि टाइगर की मॉनिटरिंग हो सके. इसमें अगर 3 दिन से ज्यादा टाइगर नजर नहीं आता है, तो फिर रेड अलर्ट जारी हो जाना चाहिए.

पढ़ें. सरिस्का में बाघ की साइटिंग : पर्यटकों को हो रही युवराज की साइटिंग, 2 दिन में 15 बार से ज्यादा नजर आया बाघ

कैमरा ट्रैप के साथ पगमार्क भी शुरू होः टाइगर की बेहतर मॉनिटरिंग कैमरा ट्रैप के जरिए ही होती है. लेकिन यह महंगी और साइंटिफिक विधि है. इसमें साल में दो बार ही कैमरा ट्रैप को बातें हैं. एक बार सर्दी और एक बार गर्मी के मौसम में कैमरा ट्रैप होता है. परंपरागत पग मार्ग विधि को बंद कर दिया है. इसके चलते टाइगर की मॉनिटरिंग सटीक नहीं हो पा रही है.

ऐसे में जब गार्ड टाइगर की मॉनिटरिंग के लिए जा रहे हैं तो उसके पग मार्क भी लेकर आएं, जिससे टाइगर के बारे में सटीक जानकारी मिल जाएगी. साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि दूसरा टाइगर तो एरिया में नहीं आ गया है या यहां का टाइगर एरिया से चला तो नहीं गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि स्टाफ की लगातार मोबिलिटी भी बनी रहती है और स्टाफ रेगुलर भी जाता है. इसमें ज्यादा खर्चा भी नहीं होता है. प्लास्टिक कास्ट ज्यादा महंगी नहीं आती है.

स्टाफ की कमी, भर्ती होने के बाद करवा लेते हैं ट्रांसफरः टाइगर प्रोजेक्ट में सभी जगह स्टाफ की कमी है. मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में 150 से 200 के स्टाफ की आवश्यकता है. यहां आधा ही है. साथ ही पुराना स्टाफ लगातार रिटायर हो रहा है. ऐसे में अनुभव भी कम होता जा रहा है. नई भर्ती भी टाइगर रिजर्व के लिए होती है, लेकिन अधिकांश स्टाफ अपना साल से 6 महीने में अप्रोच लगाकर ट्रांसफर करवा लेता है. यहां का अधिकांश स्टाफ अपने गृह नगर या जिलों में चला जाता है. ऐसे में एक्सपर्ट का मानना है कि 5 साल तक टाइगर रिजर्व में भर्ती हुए वन कार्मिक का स्थानांतरण नहीं करना चाहिए. 5 साल तक नजरों में काम करने पर वन कार्मिक को वन्य जीव और रिजर्व से प्रेम हो जाएगा. जिसके बाद वह छोड़ भी नहीं सकेगा. साथ ही कार्मिक के दिमाग में भी वाइल्ड लाइफ और जंगली जानवरों की समझ हो सकेगी.

पढ़ें. रणथंभौर नेशनल पार्क में अचानक सड़क पर आई बाघिन सुल्ताना, पर्यटकों की अटकी सांसें...देखें वीडियो

एक टाइगर को 60 हर्बीबोस हर साल चाहिएः एक्सपर्ट का मानना है कि एक टाइगर 50 से 60 हर्बीबोस जानवरों का शिकार हर साल करता है. इसके लिए शाकाहारी जानवरों का घनत्व जंगल में होना चाहिए. टाइगर के आठ से 10 हमले करने के बाद ही एक शिकार हाथ लगता है. ऐसे में जब जंगल में जानवरों की कमी होगी तो वह शिकार कैसे कर पाएगा?. साथ ही जब बाघिन शावकों को जन्म देती है, तो उसे रोज शिकार की जरूरत पड़ती है. इसके लिए जंगल में जंगली और शाकाहारी जानवरों के घनत्व के लिए लगातार सर्वे वैज्ञानिक तरीकों से होने चाहिए. यह भी जानकारी हो कि जानवरों की जनसंख्या बढ़ रही है या कम हो रही है.

जंगल में पैदल और वाहन के लिए बने अच्छा रोड नेटवर्कः जंगल में पैदल ट्रैकिंग के लिए अच्छे मार्ग बनने चाहिए. साथ ही रोड नेटवर्क भी बनना चाहिए, ताकि पैदल नेटवर्किंग में भी दिक्कत नहीं आए. व्हीकल से मॉनिटरिंग में भी दिक्कत नहीं होनी चाहिए. रणथंभौर टाइगर रिजर्व में अब अच्छा रोड नेटवर्क अंदर बन गया है. इसके साथ ही पैदल ट्रेकिंग के लिए भी अच्छा ट्रैक है.

तकनीक की मदद से मॉनिटरिंग में रही ढिलाईः जंगलों में स्टाफ की ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग के लिए एम स्ट्राइक तकनीक अपनाई गई थी. जिसमें जीपीएस के जरिए मोबाइल से पूरी ट्रैकिंग की जाती थी, लेकिन इसका पूरा मैप भी बन कर सामने आता था. जिसमें किस एरिया में ट्रेकिंग नहीं हुई है, उसकी जानकारी मिल जाती है. इससे स्टाफ की ट्रैकिंग पर भी नजर रखी जा सकती है. साथ ही किस एरिया में ट्रेकिंग कमजोर हो रही है, उसके बारे में भी जानकारी मिलती रहेगी. इसका पूरा उपयोग मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में नहीं हुआ है. जबकि सब कुछ मोबाइल में रिकॉर्ड हो जाता है.

पढ़ें. Tigress Noor Killed Wild Boar in Ranthambore : बाघिन के हमले से वाइल्ड बोर ढेर, रणथम्भौर में अद्भुत दृश्य देख पर्यटक हुए रोमांचित...

जंगल में मैदान भी टाइगर की आबादी बढ़ाने में सहायकः एक्सपर्ट का मानना है कि जिन गांवों को रीलोकेट किया गया है. उन्हें वैसा ही छोड़ा जाए. किसानों के खेत भी खाली छोड़ा जाए. वहां पर किसी तरह का कोई जंगल नहीं विकसित किया जाए. जंगल में रहने वाले शाकाहारी जानवरों के लिए इन खेतों में ही अच्छी घास उन्हें मिल जाती है. जिससे कि उनकी भी आबादी लगातार बढ़ती है. दूसरी तरफ बाघिन अपने शावकों को जन्म देती है तो वह इस तरह की जगह को चिन्हित कर लेती है. यह करीब 10,000 स्क्वायर मीटर का एरिया गांव का हो जाता है, जो उन्हें काफी अच्छे लगते हैं. रणथंभौर में भी जिन गांवों को रीलोकेट किया गया था उनमें मोरडोंगरी, पादरा, इडाला व खटूरी में बाघों को ब्रीडिंग के लिए अच्छा स्पेस मिला है.

गांवों लोकेशन के लिए बने अलग टीमः एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि गांवों को रीलोकेट करने का काम डीसीएफ के पास रहता है, लेकिन उनके पास पहले से ही रिजर्व के कई काम होते हैं और गांव रीलोकेशन के काम में भी देरी हो जाती है. इसके लिए पूरी अलग टीम सरकार को बनानी चाहिए. जिससे लोगों का रीलोकेशन जल्द से जल्द हो.

प्रॉपर तरीके से स्टाफ को मिले मॉनिटरिंग के गुरः टाइगर रिजर्व में काम कर रहे स्टाफ को पैंथर और टाइगर की मॉनिटरिंग के लिए गुर सिखाने चाहिए. इसके लिए लगातार ट्रेनिंग भी होनी चाहिए. राजस्थान में अभी तीन टाइगर रिजर्व है. इनमें सरिस्का और रणथंभौर के स्टाफ से मुकुंदरा के स्टाफ को ट्रेनिंग दिलानी चाहिए. यह साल में लगातार कुछ महीनों के अंतराल में होना चाहिए. इससे उन्हें अनुभव से भी सीखने को काफी कुछ मिलेगा. साथ ही टाइगर रिजर्व में बेसिक नॉलेज भी स्टाफ को मिल जाएगी.

कोटा. जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व बाघों की दहाड़ सुनने के लिए बेकरार है. करोड़ों रुपए खर्च करके बनाया गया यह पार्क बीते डेढ़ साल से नए टाइगर का इंतजार कर रहा है. कभी यहां 7 बाघ-बाघिन थे, लेकिन अब एक ही बचा हुआ है. मुकुंदरा में टाइगर लाने के लिए जयपुर से लेकर दिल्ली तक के आला अधिकारी और एनटीसीए के बीच भी कशमकश चल रही है. लेकिन टाइगर को रीलोकेट मुकुंदरा में नहीं किया जा रहा है.

कभी एनटीसीए तो, कभी राज्य सरकार की अनुमति का हवाला अधिकारी देते हैं. यहां एक मात्र बाघिन एमटी-4 मौजूद है, जिसे भी सॉफ्ट एंक्लोजर में रखा गया है. वन्य जीव प्रेमी से लेकर कोटा के स्थानीय लोग भी टाइगर रिजर्व को आबाद होने का इंतजार कर रहे हैं. मुकुंदरा टाइगर रिजर्व बाघों की दहाड़ से आबाद हो तो यहां पर्यटन की गाड़ी चल पड़े.

मुकुंदरा में बाघों का इंतजार

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7 बाघ- बाघिन व शावकों में केवल एक शेष
मुकुंदरा की लोकल एडवाइजरी कमेटी के सदस्य और वन्य जीव प्रेमी तपेश्वर सिंह भाटी का कहना है कि 2013 में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व बना था. जिसके बाद यहां प्रेबेस बढ़ाया गया. यहां 84 स्क्वायर किलोमीटर में पूरी बाउंड्री बनाकर प्रोटेक्शन किया गया है. उसके बाद में यहां पर 2019 में रणथंभौर टाइगर रिजर्व से एक बाघ को लाकर छोड़ा गया. यह प्रक्रिया चलती रही. एक-एक कर दो बाघिन को लाया गया. इसके बाद में रणथंभौर से ही नेचुरल रास्ते से बूंदी और फिर सुल्तानपुर दीगोद होता हुआ एक बाघ पहुंचा.

जिनमें एमटी-2 बाघिन ने दो शावकों को जन्म दिया. साथ ही दूसरी बाघिन एमटी-4 के साथ कैमरा ट्रैप में एक शावक नजर आया. तब तक मुकुंदरा के लिए सब लोग खुश थे. इसकी प्रगति देखकर प्रफुल्लित हो रहे थे. लेकिन इसके बाद ही अचानक मुकुंदरा का सिनेरियो बदल जाता है. यहां पर बाघों की मौत का क्रम शुरू होता है. इनमें 7 बाघ- बाघिन व शावकों में एक बाघिन बच जाती है. एक बाघ और बाघिन की मौत हो जाती है. साथ ही एक बाघ खो जाता है, जो अभी तक भी नहीं मिला है, न तो वन विभाग उसे मृत बताता है, न उसकी जानकारी दे पा रहा है. इसके अलावा एक शावक की मौत भी उपचार के दौरान हो गई थी. जबकि अन्य दो शावक अभी तक भी नहीं मिल पाए हैं. अब केवल एक बाघिन लाइटनिंग यानी एमटी-4 यहां पर है.

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अधिकारी कह रहे जल्द लाए जाएंगे टाइगर का जोड़ा
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर और चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन एसआर यादव का कहना है कि मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के घटनाक्रम के बाद में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने एक कमेटी बनाई थी. किस तरह से दोबारा मुकुंदरा को स्थापित करना है इस पर पूर्व चर्चा हो गई है. एनटीसीए की रिपोर्ट भी सबमिट कर दी गई है. जल्द ही नए टाइगर के जोड़े को रीलोकेट करने के लिए सैद्धांतिक सहमति बना ली गई है.

सॉफ्ट एंक्लोजर से बाघिन एमटी-4 को भी छोड़ा जाना तय हो गया है इसके साथ ही मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व से विलेज रीलोकेशन का काम शुरू किया जा रहा है. इसको प्राथमिकता दी गई है. इसके लिए कैंपा और अन्य फंड से 24 करोड़ रुपए की स्वीकृति जारी हुई है. मशालपुरा गांव को रीलोकेट करने के लिए पहली किश्त जारी कर दी गई है. साथ ही दामोदरपुरा का भी सोशल इकोनामिक सर्वे का काम प्रगति पर है. टाइगर के लिए जरूरी प्रे-बेस भी छोड़ने की स्वीकृति मिल गई है कि घना से 500 चीतल लाने के स्वीकृति मिली है.

इन कमियों से आबाद नहीं हुआ मुकुंदरा
रणथंभोर के रिटायर डीसीएफ दौलत सिंह शक्तावत का कहना है कि कई कमियां मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में रही इसके चलते ही यह आबाद नहीं हो पाया है. इनमें ये प्रमुख कमियां रही. रिटायर डीसीएफ शक्तावत का कहना है कि उन्होंने 37 साल वाइल्ड लाइफ में ही गुजारे हैं. जिनमें 22 साल रणथंभौर और कई सालों तक सरिस्का में भी रहे हैं. मुकुंदरा का जंगल सरिस्का और रणथंभौर जैसा ही है. यहां पर दरा की तरफ रणथंभौर जैसा जंगल है. सेल्जर की तरफ मिक्स जंगल है, जो कि मध्य प्रदेश से मिलाजुला लगता है. वहां पर पानी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. शक्तावत का मानना है कि बीते 2 से 3 सालों में यहां पर वाटर मैनेजमेंट और जंगल काफी अच्छा हो गया है.

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लगातार नहीं छोड़े गए प्रेबेस
एक्सपर्ट्स के अनुसार मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में प्रेबेस की कमी थी और यह अभी भी है. टाइगर छोड़ने के पहले जो मापदंड था, उसके अनुसार 300 से 400 चीतल को छोड़ा गया था. यह प्रक्रिया लगातार जारी रखनी थी, ताकि हर्बीबोस की संख्या यहां पर पर्याप्त रहे. लेकिन यह बीच में ही बंद कर दिया गया है. इसके चलते यहां पर हर्बीबोस जानवरों की संख्या और घनत्व रहना चाहिए था, वह कम हो गया.

पैदल होनी चाहिए ट्रैकिंग और मॉनिटरिंगः विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग पैदल होनी चाहिए. गाड़ी में बैठे हुए और एंटीना लिए नहीं. क्योंकि कई जगह सिग्नल नहीं आते है. इससे पर्याप्त टाइगर की ट्रैकिंग नहीं हो सकती. मुकुंदरा हिल्स पहाड़ी इलाका है. ऐसे में वहां पर कई जगह पर सिग्नल नहीं आते हैं. इसके लिए ऐसे पॉइंट बनाने चाहिए, जहां पर प्रॉपर सिग्नल सभी तरफ से आए. जिससे कि टाइगर की मॉनिटरिंग हो सके. इसमें अगर 3 दिन से ज्यादा टाइगर नजर नहीं आता है, तो फिर रेड अलर्ट जारी हो जाना चाहिए.

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कैमरा ट्रैप के साथ पगमार्क भी शुरू होः टाइगर की बेहतर मॉनिटरिंग कैमरा ट्रैप के जरिए ही होती है. लेकिन यह महंगी और साइंटिफिक विधि है. इसमें साल में दो बार ही कैमरा ट्रैप को बातें हैं. एक बार सर्दी और एक बार गर्मी के मौसम में कैमरा ट्रैप होता है. परंपरागत पग मार्ग विधि को बंद कर दिया है. इसके चलते टाइगर की मॉनिटरिंग सटीक नहीं हो पा रही है.

ऐसे में जब गार्ड टाइगर की मॉनिटरिंग के लिए जा रहे हैं तो उसके पग मार्क भी लेकर आएं, जिससे टाइगर के बारे में सटीक जानकारी मिल जाएगी. साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि दूसरा टाइगर तो एरिया में नहीं आ गया है या यहां का टाइगर एरिया से चला तो नहीं गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि स्टाफ की लगातार मोबिलिटी भी बनी रहती है और स्टाफ रेगुलर भी जाता है. इसमें ज्यादा खर्चा भी नहीं होता है. प्लास्टिक कास्ट ज्यादा महंगी नहीं आती है.

स्टाफ की कमी, भर्ती होने के बाद करवा लेते हैं ट्रांसफरः टाइगर प्रोजेक्ट में सभी जगह स्टाफ की कमी है. मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में 150 से 200 के स्टाफ की आवश्यकता है. यहां आधा ही है. साथ ही पुराना स्टाफ लगातार रिटायर हो रहा है. ऐसे में अनुभव भी कम होता जा रहा है. नई भर्ती भी टाइगर रिजर्व के लिए होती है, लेकिन अधिकांश स्टाफ अपना साल से 6 महीने में अप्रोच लगाकर ट्रांसफर करवा लेता है. यहां का अधिकांश स्टाफ अपने गृह नगर या जिलों में चला जाता है. ऐसे में एक्सपर्ट का मानना है कि 5 साल तक टाइगर रिजर्व में भर्ती हुए वन कार्मिक का स्थानांतरण नहीं करना चाहिए. 5 साल तक नजरों में काम करने पर वन कार्मिक को वन्य जीव और रिजर्व से प्रेम हो जाएगा. जिसके बाद वह छोड़ भी नहीं सकेगा. साथ ही कार्मिक के दिमाग में भी वाइल्ड लाइफ और जंगली जानवरों की समझ हो सकेगी.

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एक टाइगर को 60 हर्बीबोस हर साल चाहिएः एक्सपर्ट का मानना है कि एक टाइगर 50 से 60 हर्बीबोस जानवरों का शिकार हर साल करता है. इसके लिए शाकाहारी जानवरों का घनत्व जंगल में होना चाहिए. टाइगर के आठ से 10 हमले करने के बाद ही एक शिकार हाथ लगता है. ऐसे में जब जंगल में जानवरों की कमी होगी तो वह शिकार कैसे कर पाएगा?. साथ ही जब बाघिन शावकों को जन्म देती है, तो उसे रोज शिकार की जरूरत पड़ती है. इसके लिए जंगल में जंगली और शाकाहारी जानवरों के घनत्व के लिए लगातार सर्वे वैज्ञानिक तरीकों से होने चाहिए. यह भी जानकारी हो कि जानवरों की जनसंख्या बढ़ रही है या कम हो रही है.

जंगल में पैदल और वाहन के लिए बने अच्छा रोड नेटवर्कः जंगल में पैदल ट्रैकिंग के लिए अच्छे मार्ग बनने चाहिए. साथ ही रोड नेटवर्क भी बनना चाहिए, ताकि पैदल नेटवर्किंग में भी दिक्कत नहीं आए. व्हीकल से मॉनिटरिंग में भी दिक्कत नहीं होनी चाहिए. रणथंभौर टाइगर रिजर्व में अब अच्छा रोड नेटवर्क अंदर बन गया है. इसके साथ ही पैदल ट्रेकिंग के लिए भी अच्छा ट्रैक है.

तकनीक की मदद से मॉनिटरिंग में रही ढिलाईः जंगलों में स्टाफ की ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग के लिए एम स्ट्राइक तकनीक अपनाई गई थी. जिसमें जीपीएस के जरिए मोबाइल से पूरी ट्रैकिंग की जाती थी, लेकिन इसका पूरा मैप भी बन कर सामने आता था. जिसमें किस एरिया में ट्रेकिंग नहीं हुई है, उसकी जानकारी मिल जाती है. इससे स्टाफ की ट्रैकिंग पर भी नजर रखी जा सकती है. साथ ही किस एरिया में ट्रेकिंग कमजोर हो रही है, उसके बारे में भी जानकारी मिलती रहेगी. इसका पूरा उपयोग मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में नहीं हुआ है. जबकि सब कुछ मोबाइल में रिकॉर्ड हो जाता है.

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जंगल में मैदान भी टाइगर की आबादी बढ़ाने में सहायकः एक्सपर्ट का मानना है कि जिन गांवों को रीलोकेट किया गया है. उन्हें वैसा ही छोड़ा जाए. किसानों के खेत भी खाली छोड़ा जाए. वहां पर किसी तरह का कोई जंगल नहीं विकसित किया जाए. जंगल में रहने वाले शाकाहारी जानवरों के लिए इन खेतों में ही अच्छी घास उन्हें मिल जाती है. जिससे कि उनकी भी आबादी लगातार बढ़ती है. दूसरी तरफ बाघिन अपने शावकों को जन्म देती है तो वह इस तरह की जगह को चिन्हित कर लेती है. यह करीब 10,000 स्क्वायर मीटर का एरिया गांव का हो जाता है, जो उन्हें काफी अच्छे लगते हैं. रणथंभौर में भी जिन गांवों को रीलोकेट किया गया था उनमें मोरडोंगरी, पादरा, इडाला व खटूरी में बाघों को ब्रीडिंग के लिए अच्छा स्पेस मिला है.

गांवों लोकेशन के लिए बने अलग टीमः एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि गांवों को रीलोकेट करने का काम डीसीएफ के पास रहता है, लेकिन उनके पास पहले से ही रिजर्व के कई काम होते हैं और गांव रीलोकेशन के काम में भी देरी हो जाती है. इसके लिए पूरी अलग टीम सरकार को बनानी चाहिए. जिससे लोगों का रीलोकेशन जल्द से जल्द हो.

प्रॉपर तरीके से स्टाफ को मिले मॉनिटरिंग के गुरः टाइगर रिजर्व में काम कर रहे स्टाफ को पैंथर और टाइगर की मॉनिटरिंग के लिए गुर सिखाने चाहिए. इसके लिए लगातार ट्रेनिंग भी होनी चाहिए. राजस्थान में अभी तीन टाइगर रिजर्व है. इनमें सरिस्का और रणथंभौर के स्टाफ से मुकुंदरा के स्टाफ को ट्रेनिंग दिलानी चाहिए. यह साल में लगातार कुछ महीनों के अंतराल में होना चाहिए. इससे उन्हें अनुभव से भी सीखने को काफी कुछ मिलेगा. साथ ही टाइगर रिजर्व में बेसिक नॉलेज भी स्टाफ को मिल जाएगी.

Last Updated : Feb 12, 2022, 1:54 PM IST
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