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Krishna Janmashtami 2023: विश्व में एकमात्र मंदिर जहां श्रीकृष्ण के साथ होती है सालिगराम की पूजा-अर्चना - Mathuradheesh Ji Mandir Kota

कोटा के पाटनपोल में स्थित शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर में श्री कृष्ण के साथ अनंतशयन यानी सालिगराम भगवान की पूजा—अर्चना की जाती है.

Krishna and shaligram puja at one temple in Kota
श्रीकृष्ण के साथ होती है सालिगराम की पूजा
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 6, 2023, 11:01 PM IST

यहां क्यों होती है श्रीकृष्ण संग सालिगराम जी भगवान की पूजा—अर्चना

कोटा. जिले के पाटनपोल में स्थित शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्री कृष्ण के भोग के साथ अनंतशयन यानी सालिगराम भगवान की भी पूजा-अर्चना होती है. जिन्हें बाल्यकाल में भगवान श्री कृष्ण ने भूख लगने पर अपने मुंह में पदरा लिया था. इसके बाद ही यहां पर दोनों की सेवा, पूजा व भोग एक साथ होता है.

शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ के युवराज मिलन कुमार गोस्वामी बावा का कहना है कि श्रीकृष्ण के पिता नंदराय अनंतशयन यानी सालिगरामजी की पूजा करते थे. एक समय जब वे सेवा पूजा जब कर रहे थे, तभी श्रीकृष्ण को भूख लगी. नंदराय का ध्यान नहीं था. इसलिए उन्होंने अनसुना कर दिया और सेवा-पूजा में व्यस्त रहे. इसी बीच श्रीकृष्ण ने भगवान अनंतशयन को मुख में पदरा दिया और बाहर चले गए. जब नंदराय का ध्यान समाप्त हुआ और नीचे देखा, तो पूजन के आराध्य अनन्तशयन विराजमान नहीं थे.

पढ़ें: Janmashtami Special: ब्रज से मेवाड़ जाते अजमेर में रुके थे श्रीनाथजी 42 दिन, जन्माष्टमी पर दर्शनों के लिए आते हैं श्रद्धालु

उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण का मुंह फूला हुआ है. इसी के चलते आज भी मथुराधीश का मुंह फूला हुआ रहता है. इसके बाद नंदराय जी ने वापस पंचामृत से अनंतशयन को शुद्ध करवाया और पूजन करके वापस उनके स्थान पर विराजित किया. तब से ही दोनों का भोग का ध्यान रखा जाता है. कोटा का श्री बड़े मथुराधीश टेंपल ही एक मात्र विश्व का ऐसा मंदिर है, जहां श्री कृष्ण को भी भोग आएगा और सालिगराम जी यानी अनंतशयन को भोग आएगा. यह सबसे प्राचीनतम स्वरूप केवल श्रीमथुराधीश मंदिर में ही है.

पढ़ें: Krishna Janmashtami 2023: अष्टमी 6 को लेकिन व्रत और लल्ला का जन्म 7 को, मंदिरों में नहीं बजेंगे झालर-घंटी

धूमधाम से मनाई जाएगी जन्माष्टमी और नंदोत्सव: बावा ने बताया कि वैदिक परंपरा के अनुसार श्रीमथुराधीश मंदिर पर जन्माष्टमी का पर्व गुरुवार व नंदोत्सव शुक्रवार को धूमधाम से मनाएंगे. श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर साक्षात पंचामृत कराया जाता है. जिसके दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं. रात्रि 12 बजे से जन्म के दर्शन होंगे. इस दौरान थाल, घंटा, मंत्र आदि गुंजायमान होंगे. नंदोत्सव के दौरान शुक्रवार को बधाइयां गूंजेगी. मुखिया नंदराय बनेंगे व सेवक ग्वाल बाल होंगे. हल्दी मिला हुआ दूध व दही उछाला जाएगा. माता यशोदा समेत सभी ग्वाल बाल और नंदराय जी स्त्री भाव से लाला को पलना झुलाएंगे.

इस तरह से कर सकेंगे भगवान के दर्शन:

7 सितम्बर

  1. पंचामृत - सुबह 5 बजे
  2. श्रृंगार तिलक सुबह 8 बजे
  3. राजभोग - सुबह 11 बजे
  4. उत्थापन - शाम 6 बजे
  5. जागरण - रात 10 से 11:30
  6. जन्म दर्शन - रात 12 बजे

8 सितम्बर

  1. ठाकुर जी पालना - सुबह 8:00 से दोपहर 1:00
  2. मंगला - दोपहर 1:30 बजे
  3. राजभोग - 2:30 बजे
  4. संध्या आरती - शाम 5 बजे

यहां क्यों होती है श्रीकृष्ण संग सालिगराम जी भगवान की पूजा—अर्चना

कोटा. जिले के पाटनपोल में स्थित शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्री कृष्ण के भोग के साथ अनंतशयन यानी सालिगराम भगवान की भी पूजा-अर्चना होती है. जिन्हें बाल्यकाल में भगवान श्री कृष्ण ने भूख लगने पर अपने मुंह में पदरा लिया था. इसके बाद ही यहां पर दोनों की सेवा, पूजा व भोग एक साथ होता है.

शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ के युवराज मिलन कुमार गोस्वामी बावा का कहना है कि श्रीकृष्ण के पिता नंदराय अनंतशयन यानी सालिगरामजी की पूजा करते थे. एक समय जब वे सेवा पूजा जब कर रहे थे, तभी श्रीकृष्ण को भूख लगी. नंदराय का ध्यान नहीं था. इसलिए उन्होंने अनसुना कर दिया और सेवा-पूजा में व्यस्त रहे. इसी बीच श्रीकृष्ण ने भगवान अनंतशयन को मुख में पदरा दिया और बाहर चले गए. जब नंदराय का ध्यान समाप्त हुआ और नीचे देखा, तो पूजन के आराध्य अनन्तशयन विराजमान नहीं थे.

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उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण का मुंह फूला हुआ है. इसी के चलते आज भी मथुराधीश का मुंह फूला हुआ रहता है. इसके बाद नंदराय जी ने वापस पंचामृत से अनंतशयन को शुद्ध करवाया और पूजन करके वापस उनके स्थान पर विराजित किया. तब से ही दोनों का भोग का ध्यान रखा जाता है. कोटा का श्री बड़े मथुराधीश टेंपल ही एक मात्र विश्व का ऐसा मंदिर है, जहां श्री कृष्ण को भी भोग आएगा और सालिगराम जी यानी अनंतशयन को भोग आएगा. यह सबसे प्राचीनतम स्वरूप केवल श्रीमथुराधीश मंदिर में ही है.

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धूमधाम से मनाई जाएगी जन्माष्टमी और नंदोत्सव: बावा ने बताया कि वैदिक परंपरा के अनुसार श्रीमथुराधीश मंदिर पर जन्माष्टमी का पर्व गुरुवार व नंदोत्सव शुक्रवार को धूमधाम से मनाएंगे. श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर साक्षात पंचामृत कराया जाता है. जिसके दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं. रात्रि 12 बजे से जन्म के दर्शन होंगे. इस दौरान थाल, घंटा, मंत्र आदि गुंजायमान होंगे. नंदोत्सव के दौरान शुक्रवार को बधाइयां गूंजेगी. मुखिया नंदराय बनेंगे व सेवक ग्वाल बाल होंगे. हल्दी मिला हुआ दूध व दही उछाला जाएगा. माता यशोदा समेत सभी ग्वाल बाल और नंदराय जी स्त्री भाव से लाला को पलना झुलाएंगे.

इस तरह से कर सकेंगे भगवान के दर्शन:

7 सितम्बर

  1. पंचामृत - सुबह 5 बजे
  2. श्रृंगार तिलक सुबह 8 बजे
  3. राजभोग - सुबह 11 बजे
  4. उत्थापन - शाम 6 बजे
  5. जागरण - रात 10 से 11:30
  6. जन्म दर्शन - रात 12 बजे

8 सितम्बर

  1. ठाकुर जी पालना - सुबह 8:00 से दोपहर 1:00
  2. मंगला - दोपहर 1:30 बजे
  3. राजभोग - 2:30 बजे
  4. संध्या आरती - शाम 5 बजे
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