कोटा. जेके लोन अस्पताल में दिसंबर महीने में भी नवजात बच्चों की मौत का मामला उजागर हुआ था. जिसके बाद काफी हंगामा भी बरपा था. राज्य सरकार से लेकर मानव अधिकार आयोग, बाल संरक्षण आयोग, भाजपा और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम भी जायजा लेकर गई थी. इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने दोबारा से अस्पताल की व्यवस्थाओं में सुधार के प्रयास किए हैं.
दस सूत्रीय एजेंडा बनाकर मेडिकल कॉलेज का शिशु रोग विभाग और जेके लोन अस्पताल प्रबंधन इसके लिए जुटा हुआ है. मीडिया से बात करते हुए जेके लोन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक कुमार मूंदड़ा ने बताया कि अस्पताल में नवजात शिशु का बेहतर इलाज हो इसकी व्यवस्थाएं उन्होंने शुरू की है. उसमें शिशु रोग विभाग के साथ-साथ गायनिक के चिकित्सकों और स्टाफ का भी सहयोग लिया जा रहा है. दूसरी तरफ कोटा मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग की मेंटरिंग के लिए लगाए गए उदयपुर के रविंद्र नाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. लखन पोसवाल का कहना है कि कोटा में स्टैंडर्ड गाइडलाइन से ही नवजात शिशु का इलाज हो रहा है. हालांकि पहले अधीक्षक और शिशु रोग विभागाध्यक्ष के बीच तालमेल के अभाव था, लेकिन अब नए अधीक्षक और नए विभागाध्यक्ष होने से यह समस्या भी दूर हो गई है.
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इन दस सुधार में जुटा अस्पताल प्रबंधन
1. तीन करोड़ से बन रही नर्सरी
तीन करोड रुपए से ज्यादा की लागत से 40 बेड की नई नर्सरी तैयार की जा रही है. इसके लिए राज्य सरकार के स्तर पर ही टेंडर किया जा रहा है. वहीं एमबीबीएस और एमडी एमएस की सीटों में कोटा मेडिकल कॉलेज में बढ़ोतरी हुई थी. जिसके बाद भी अतिरिक्त बजट मिला है। इससे भी व्यवस्थाएं बढ़ाई जा रही हैं.
2. सफाई को लेकर दिखाई सख्ती
जेके लोन अस्पताल प्रबंधन ने सफाई ठेकेदार पर दो बार पेनल्टी लगा दी है. साथ ही अब चेतावनी भी दी है कि अगर सफाई में और सुधार नहीं हुआ तो ठेका रद्द कर दिया जाएगा. इसके अलावा लेबर रूम में अलग सफाई का कांटेक्ट है, उस ठेकेदार पर भी जुर्माना लगाया है.
3. दानदाताओं से किया संपर्क
अस्पताल के वार्डों को गोद देने के लिए दानदाताओं से भी संपर्क किया गया है. इसमें वार्ड और नर्सिंग स्टेशनों को दानदाताओं के सुपुर्द कर दिया जाएगा. ताकि वहां पर आने वाली छोटी समस्याएं और व्यवस्थाओं को यह दानदाता या संस्थाएं तत्काल करवा दें. इससे सरकारी सिस्टम में होने वाली देरी नहीं होगी.
4. दानदाताओं ने उपलब्ध करवाए वार्मर
जेके लोन अस्पताल में 5 वार्मर दानदाताओं ने उपलब्ध करवाए हैं. जिनमें नवजात शिशुओं को रखा जाएगा। ताकि उनके उपचार के लिए संसाधन और बढ़ सके.
5. उपकरणों के लिए स्वीकृत की गई राशि से किया टेंडर
जेके लोन अस्पताल में उपकरणों के लिए करोड़ों रुपए की स्वीकृति जारी कर दी गई थी. इसमें विधायक कोष और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड का सीएसआर फंड जारी हुआ. जिनमें से आधी से कम राशि के ही उपकरण खरीदे गए थे. बचे बजट राशि के उपकरणों की खरीद के लिए टेंडर जारी कर दिए गए हैं, जो कि जल्द ही अस्पताल में मिल जाएंगे.
6. नए अस्पताल से शिफ्ट किए उपकरण
मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल को कोविड-19 अस्पताल बनाया हुआ है. ऐसे में वहां पर शिशु रोग विभाग के भी कई उपकरण है, लेकिन उनका उपयोग बीते 8 महीने से नहीं हो पा रहा था. ऐसे में सभी उपकरणों को जेके लोन अस्पताल में शिफ्ट कर दिया है और नवजात से लेकर बच्चों के उपचार में उपयोग लिए जा रहे हैं. यहां पर लगे हुए मॉनिटर भी जेकेलोन लाए गए हैं. जिनकी प्रोब एडल्ट थी, ऐसे में उन प्रोब अब दानदाताओं के जरिए चाइल्ड लगवाई जा रही है.
7. नर्सिंग कर्मियों को भी जेकेलोन लगाया
मेडिकल कॉलेज का नया अस्पताल में कोविड-19 के मरीजों की संख्या अब कम हो गई है. ऐसे में वहां पर लगे हुए नर्सिंग कर्मी को भी जेके लोन अस्पताल में शिफ्ट कर दिया है. जिनका उपयोग शिशु रोग विभाग में किया जा रहा है.
8. डॉक्टर और नर्सिंग कर्मियों को करवा रहे ट्रेनिंग
जेके लोन अस्पताल में पेरीफेरी से चिकित्सक लगाए हैं. साथ ही नए नर्सिंग कार्मिकों को भी नियुक्ति शिशु रोग विभाग में दी गई है. ऐसे में सभी को नवजात शिशुओं की केयर के तरीके सिखाए जा रहे हैं. ताकि किसी भी तरह की समस्या उनके उपचार के दौरान उन्हें नहीं आए.
9. बिखरे हुए पोस्ट नेटल वार्ड को कर रहे एक
अस्पताल में पोस्ट नेटल वार्ड जहां पर प्रसूताएं भर्ती रहती है, सभी बिखरे हुए हैं. ऐसे में सभी पोस्ट नेटल वार्ड को एक जगह समायोजित किया जा रहा हैं. ताकि उनके साथ भर्ती नवजात शिशुओं की मॉनिटरिंग में शिशु रोग विभाग को दिक्कत नहीं आए. ऐसे में कम वार्डों में ही जाकर सभी नवजात शिशुओं को देख सकें.
10. सुधार के लिए रोज कर रहे हैं मीटिंग
जेके लोन अस्पताल में नवनियुक्त अधीक्षक डॉ. अशोक कुमार मूंदड़ा और शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अमृता मयंगर अस्पताल में नवजात शिशु के उपचार के लिए सुधार में जुटे हुए हैं. रोज सुधार के मुद्दों को लेकर मीटिंग की जाती है और उन बिंदुओं को तुरंत एक्शन में लेकर सुधारा भी जाता है. पहले अधीक्षक और विभागाध्यक्ष के बीच तालमेल नहीं था। इससे भी समस्या बनी हुई थी.