जोधपुर. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में एक कार्यक्रम में देश के मुख्य न्यायाधीश की मौजूदगी में कहा कि मुकदमेबाजी की अत्यधिक लागत न्याय प्रदान करने में बड़ी बाधा है. राष्ट्रपति ने कहा कि लोगों की दुर्दशा कम करने के लिए एक प्रभावी समाधान तंत्र विकसित कर आमजन को राहत देनी चाहिए. उन्होने यह भी कहा कि सरकारें जेलों की संख्या बढ़ाने की बजाय कैदियों की संख्या कम करने पर विचार करे. इसी संदर्भ में राजस्थान हाईकोर्ट ने भी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान राजस्थान की जेलों में बंद कैदियों के लिए एक ऐसा डेटाबेस तैयार करने के लिए कहा है जिससे की एक क्लिक में हर कैदी की पूरी डिटेल मिल (Information of prisoners on single click) जाए.
कोर्ट ने कहा कि ऐसा तंत्र विकसित होने से कैदी की पूरी जानकारी उसमें रहेगी, इससे पुलिस व कोर्ट को भी काफी राहत मिलेगी. कैदी कब जेल में आया, क्या अपराध है, कब जमानत मिली, कब पैरोल मिली इत्यादि जानकारी हर समय केवल एक क्लिक पर उपलब्ध होने से जेलों में बंद कैदियों को भी राहत मिलेगी. देश के राष्ट्रपति के उद्बोधन को अमली जामा पहनाने की तैयारी राजस्थान से ही शुरू हो, इसी मंशा को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने भी महानिदेशक जेल व एनआईसी के सीनियर तकनीकी निदेशक को आवश्यक निर्देश दिए हैं.
पढ़ें: Special: डिजिटल हो रही राजस्थान पुलिस, अब एक क्लिक में खुलेगी अपराधियों की 'कुंडली'
वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश कुलदीप माथुर की खंडपीठ के समक्ष कैदी राकेश की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान महानिदेशक जेल भूपेन्द्र कुमार डक, शशिकांत शर्मा सीनियर तकनीकी निदेशक एनआईसी (वैज्ञानिक-एफ), ई-जेल प्रोजेक्ट, दिल्ली और अरविन्द शर्मा, निदेशक, ई-जेल, जयपुर विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े. सरकार की ओर से एएजी अनिल जोशी व न्यायमित्र अधिवक्ता रिषभ ताहिल भी मौजूद रहे.
पढ़ें: राजस्थान में बढ़ रही सड़क दुर्घटना को रोकने के लिए इंटररिलेटेड रोड एक्सीडेंट डेटाबेस योजना लागू
सुनवाई के दौरान निदेशक शर्मा ने एनआईसी की ओर से तैयार ई-जेल सॉफ्टवेयर का कोर्ट में डेमो भी दिया. उन्होंने कहा कि राजस्थान के कैदियों का डेटाबेस मिलने पर ई-जेल सॉफ्टवेयर पर उसे जोड़ दिया जाएगा. जिसमें कैदी को एक विशिष्ठ पहचान संख्या दी जाएगी. इससे एक क्लिक में कैदी की पूरी जानकारी मिल सकेगी. इस पर कोर्ट ने महानिदेशक जेल को निर्देश दिए हैं कि राजस्थान के कैदियों का डेटाबेस एनआईसी को दिया जाए ताकि उसे ई-जेल सॉफ्टवेयर से जोड़ा जा सके.
निदेशक शर्मा ने बताया कि यदि एक विशिष्ट कैदी पहचान संख्या दी जाती है, तो सिस्टम में प्रवेश करने वाले प्रत्येक कैदी के लिए इसमें जानकारी होगी. फाइलिंग के समय हाईकोर्ट की वेबसाइट से इसे लिंक कर दिया जाएगा. हाईकोर्ट ने सभी को मिलकर सारी औपचारिकताएं पूरी करने के निर्देश के साथ 6 दिसम्बर को मामले की सुनवाई रखते हुए प्रोग्रेस रिपोर्ट मांगी है.