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स्पेशल स्टोरी: आने वाली जनरेशन को सर्कस के बारे में जानकारी रहे इसके लिए विवेक देसाई 16 साल से खींच रहे फोटो

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Published : Jan 24, 2020, 3:55 PM IST

अहमदाबाद के निवासी विवेक देसाई ने 17 साल पहले सर्कस पर फोटोग्राफी शुरू की थी. उन्होंने सर्कस के ऊपर हजारों फोटो खींचे हैं, जिसमें से करीब 51 फोटोग्राफ्स को कोटा की कला दीर्घा में एग्जीबिशन के तौर पर प्रदर्शित किया गया है. इन तस्वीरों में सर्कस और उसके कलाकारों की पर्दे के पीछे की जिंदगी, करतब और लाइफ स्टाइल को दर्शाया गया है.

सर्कस पर फोटोग्राफी, Photography on circus
सर्कस पर फोटोग्राफी

कोटा. अहमदाबाद के रहने वाले विवेक देसाई की कोटा की कला दीर्घा में एक अनोखी एग्जीबिशन लगी है, यह पूरी एग्जीबिशन सर्कस और उसके कलाकारों की पर्दे के पीछे की जिंदगी को दर्शाती है. इसमें सर्कस के जोकर और कलाकारों की कला बाजियों से लेकर उनके हैरतअंगेज करतब और सर्कस के किरदारों की लाइफ स्टाइल दिखाई गई है.

सर्कस पर फोटोग्राफी

इस एग्जीबिशन में फोटोग्राफर विवेक देसाई के ही सभी फोटो लगाए गए हैं. जब ईटीवी भारत ने उनसे बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वह गुजरात के अहमदाबाद निवासी हैं. उन्होंने फोटोजर्नलिस्ट के तौर पर 17 साल पहले अपना करियर शुरू किया था. इसी दौरान एक दिन साबरमती के पुल के नीचे से गुजरते समय उनकी निगाह सर्कस पर पड़ी और वो फोटो खींचने चले गए. उन्होंने बताया, कि 1998 में आए मेनका गांधी के पेटा कानून के चलते सर्कस मालिकों ने फोटो खिंचवाने से इंकार कर दिया. जिसके बाद उन्होंने तय किया कि वो जानवरों के फोटो को प्रकाशित करेंगे.

विवेक के अंदर सर्कस की फोटोग्राफी की इच्छा बढ़ गई, उन्होंने सर्कस के कलाकारों और मालिकों को समझाया और फिर उन्होंने इसे अपना पैशन बना लिया. देसाई का कहना है कि जब से 1998 में पेटा कानून आया उसके बाद से ही सर्कस में एनिमल्स के ऊपर प्रतिबंध लग गया और सर्कस का गिरता हुआ क्रम शुरू हो गया. इसमें मल्टीप्लेक्स और इंटरनेट भी आ गए, जिसके चलते छोटे मनोरंजन के माध्यम खत्म होते जा रहे है, मुझे लगा एक दिन जब सर्कस बंद हो जाएगा तो अगली जनरेशन को कैसे पता चलेगा कि सर्कस भी था और मैंने सर्कस की फोटोग्राफी का काम शुरू कर दिया.

पढ़ें- Exclusive: पाक मूल की 'भारतीय' सरपंच नीता कंवर बोलीं- CAA कई बेटियों के लिए है जरूरी

विवेक देसाई बताते हैं, कि 16 साल तक उन्होंने सर्कस के ऊपर ही फोटोग्राफी की है, अब मुश्किल से 17-18 सर्कस रह गए हैं. उन्होंने बताया कि जब फोटोग्राफी शुरू की थी तो करीब 50 से ज्यादा सर्कस थे, आगे के 10 सालों तक ही सर्कस की उम्र बची है. जिसके बाद आने वाले सर्कस देखने को भी नहीं मिलेगा.

हजारों फोटो खींचे, 51 चुनकर प्रदर्शित की है

सर्कस की थीम पर कोटा में इस तरह का एग्जीबिशन पहली बार लगा है. विवेक देसाई ने देश के अलग-अलग शहरों में जाकर सर्कस के ऊपर हजारों फोटो खींचे हैं, जिसमें से करीब 51 फोटोग्राफ्स इस एग्जीबिशन में लगाए गए है. देसाई का कहना है कि जब मैं फोटोग्राफी में आया तो सब्जेक्टिव वर्क करने के बारे में सोचा, क्योंकि सब्जेक्टिव वर्क नहीं करेंगे तो ज्यादा फायदा नहीं होता है. उन्होंने बताया कि, उन्हें डॉक्यूमेंट्री में भरोसा था और इंटरेस्ट भी, इसी प्रकार से उन्होंने सर्कस का सब्जेक्ट चुन लिया.

बैकस्टेज लाइफ पर ज्यादा फोकस किया

विवेक देसाई बताते हैं, कि स्टेज पर्फोर्मेंस के फोटो तो मालिकों के पास भी होते हैं, यह फोटो भी मैंने खींची हैं. लेकिन बैकस्टेज लाइफ जो कलाकारों की होती है, वह कैसे पहनते हैं कैसे खाते हैं, कैसे रहते हैं, उनका शेडूल क्या होता है, यह पूरा का पूरा मैंने अपने फोटोग्राफ्स में लिया है. उनका कहना है, कि इसके लिए उन्हें संघर्ष भी करना पड़ा, क्योंकि पहले यह लोग मानते नहीं थे. सर्कस ऑनर्स ने फोटो खींचने की अनुमति दे दी, लेकिन आर्टिस्ट को मनाने में काफी समय लग गया. उनको संकोच होता था, क्योंकि वह कभी भी कैमरे को बैकस्टेज लाइफ में फेस नहीं करते हैं. जब कलाकारों ने अनुमति दी तो मैंने अलग-अलग शहरों में जाकर सर्कस पर फोटोग्राफी की.

कोटा. अहमदाबाद के रहने वाले विवेक देसाई की कोटा की कला दीर्घा में एक अनोखी एग्जीबिशन लगी है, यह पूरी एग्जीबिशन सर्कस और उसके कलाकारों की पर्दे के पीछे की जिंदगी को दर्शाती है. इसमें सर्कस के जोकर और कलाकारों की कला बाजियों से लेकर उनके हैरतअंगेज करतब और सर्कस के किरदारों की लाइफ स्टाइल दिखाई गई है.

सर्कस पर फोटोग्राफी

इस एग्जीबिशन में फोटोग्राफर विवेक देसाई के ही सभी फोटो लगाए गए हैं. जब ईटीवी भारत ने उनसे बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वह गुजरात के अहमदाबाद निवासी हैं. उन्होंने फोटोजर्नलिस्ट के तौर पर 17 साल पहले अपना करियर शुरू किया था. इसी दौरान एक दिन साबरमती के पुल के नीचे से गुजरते समय उनकी निगाह सर्कस पर पड़ी और वो फोटो खींचने चले गए. उन्होंने बताया, कि 1998 में आए मेनका गांधी के पेटा कानून के चलते सर्कस मालिकों ने फोटो खिंचवाने से इंकार कर दिया. जिसके बाद उन्होंने तय किया कि वो जानवरों के फोटो को प्रकाशित करेंगे.

विवेक के अंदर सर्कस की फोटोग्राफी की इच्छा बढ़ गई, उन्होंने सर्कस के कलाकारों और मालिकों को समझाया और फिर उन्होंने इसे अपना पैशन बना लिया. देसाई का कहना है कि जब से 1998 में पेटा कानून आया उसके बाद से ही सर्कस में एनिमल्स के ऊपर प्रतिबंध लग गया और सर्कस का गिरता हुआ क्रम शुरू हो गया. इसमें मल्टीप्लेक्स और इंटरनेट भी आ गए, जिसके चलते छोटे मनोरंजन के माध्यम खत्म होते जा रहे है, मुझे लगा एक दिन जब सर्कस बंद हो जाएगा तो अगली जनरेशन को कैसे पता चलेगा कि सर्कस भी था और मैंने सर्कस की फोटोग्राफी का काम शुरू कर दिया.

पढ़ें- Exclusive: पाक मूल की 'भारतीय' सरपंच नीता कंवर बोलीं- CAA कई बेटियों के लिए है जरूरी

विवेक देसाई बताते हैं, कि 16 साल तक उन्होंने सर्कस के ऊपर ही फोटोग्राफी की है, अब मुश्किल से 17-18 सर्कस रह गए हैं. उन्होंने बताया कि जब फोटोग्राफी शुरू की थी तो करीब 50 से ज्यादा सर्कस थे, आगे के 10 सालों तक ही सर्कस की उम्र बची है. जिसके बाद आने वाले सर्कस देखने को भी नहीं मिलेगा.

हजारों फोटो खींचे, 51 चुनकर प्रदर्शित की है

सर्कस की थीम पर कोटा में इस तरह का एग्जीबिशन पहली बार लगा है. विवेक देसाई ने देश के अलग-अलग शहरों में जाकर सर्कस के ऊपर हजारों फोटो खींचे हैं, जिसमें से करीब 51 फोटोग्राफ्स इस एग्जीबिशन में लगाए गए है. देसाई का कहना है कि जब मैं फोटोग्राफी में आया तो सब्जेक्टिव वर्क करने के बारे में सोचा, क्योंकि सब्जेक्टिव वर्क नहीं करेंगे तो ज्यादा फायदा नहीं होता है. उन्होंने बताया कि, उन्हें डॉक्यूमेंट्री में भरोसा था और इंटरेस्ट भी, इसी प्रकार से उन्होंने सर्कस का सब्जेक्ट चुन लिया.

बैकस्टेज लाइफ पर ज्यादा फोकस किया

विवेक देसाई बताते हैं, कि स्टेज पर्फोर्मेंस के फोटो तो मालिकों के पास भी होते हैं, यह फोटो भी मैंने खींची हैं. लेकिन बैकस्टेज लाइफ जो कलाकारों की होती है, वह कैसे पहनते हैं कैसे खाते हैं, कैसे रहते हैं, उनका शेडूल क्या होता है, यह पूरा का पूरा मैंने अपने फोटोग्राफ्स में लिया है. उनका कहना है, कि इसके लिए उन्हें संघर्ष भी करना पड़ा, क्योंकि पहले यह लोग मानते नहीं थे. सर्कस ऑनर्स ने फोटो खींचने की अनुमति दे दी, लेकिन आर्टिस्ट को मनाने में काफी समय लग गया. उनको संकोच होता था, क्योंकि वह कभी भी कैमरे को बैकस्टेज लाइफ में फेस नहीं करते हैं. जब कलाकारों ने अनुमति दी तो मैंने अलग-अलग शहरों में जाकर सर्कस पर फोटोग्राफी की.

Intro:विवेक देसाई का कहना है कि पेटा कानून से सर्कस में जानवरों पर प्रतिबंध लग गया, इसके साथ ही मल्टीप्लेक्स और इंटरनेट भी आ गए, जिसके चलते छोटे मनोरंजन के माध्यम खत्म होते जा रहे है, मुझे लगा एक दिन जब सर्कस बंद हो जाएगा तो अगली जनरेशन को कैसे पता चलेगा कि सर्कस भी था और मैंने सर्कस की फोटोग्राफी का काम शुरू कर दिया. 16 साल तक मैंने सर्कस के ऊपर ही फोटोग्राफी की है, अभी मुश्किल से 17-18 सर्कस रह गए हैं.


Body:कोटा.
अहमदाबाद निवासी फोटोजर्नलिस्ट विवेक देसाई की कोटा की कला दीर्घा में एक अनोखी एग्जीबिशन लगी है, यह पूरी एग्जीबिशन सर्कस और उसके कलाकारों की पीछे की जिंदगी को दर्शाती है. इसमें सर्कस के जोकर व आर्टिस्ट की कला बाजियों से लेकर उनके हैरतअंगेज करतब और सर्कस के किरदारों की लाइफ स्टाइल दिखाई गई है. इस एग्जीबिशन में फोटोग्राफर विवेक देसाई के ही सभी फोटो लगाए गए हैं. जब ईटीवी भारत ने उनसे बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वह गुजरात के अहमदाबाद निवासी हैं. उन्होंने फोटोजर्नलिस्ट के तौर पर 17 साल पहले अपना कैरियर बनाना तय किया था. इसी दौरान एक दिन साबरमती के पुल के नीचे से गुजरते समय उनकी निगाह सर्कस पर पड़ी और फोटो खींचने चले गए, लेकिन 1998 में आए मेनका गांधी का पेटा कानून के चलते सर्कस मालिकों ने फोटो खिंचवाने से इंकार कर दिया और उन्हें लगा कि मैं जानवरों के फोटो लेकर प्रकाशित करूंगा. इसके बाद सर्कस की फोटोग्राफी की इच्छा बढ़ गई, उन्होंने सर्कस के कलाकारों और मालिकों को समझाया, फिर इसके बाद उसे ही पैशन बना लिया.

देसाई का कहना है कि जब से 1998 में पेटा कानून आया उसके बाद से ही सर्कस में एनिमल्स के ऊपर प्रतिबंध लग गया और सर्कस का गिरता हुआ क्रम शुरू हो गया. इसमें मल्टीप्लेक्स और इंटरनेट भी आ गए, जिसके चलते छोटे मनोरंजन के माध्यम खत्म होते जा रहे है, मुझे लगा एक दिन जब सर्कस बंद हो जाएगा तो अगली जनरेशन को कैसे पता चलेगा कि सर्कस भी था और मैंने सर्कस की फोटोग्राफी का काम शुरू कर दिया. 16 साल तक मैंने सर्कस के ऊपर ही फोटोग्राफी की है, अभी मुश्किल से 17-18 सर्कस रह गए हैं. जब मैंने फोटोग्राफी शुरू की थी करीब 50 से ज्यादा सर्कस थे, आगे 10 सालों में तो सर्कस की उम्र बची है. 10 साल बाद सर्कस देखने को भी नहीं मिलेगा.

हजारों फोटो खींचे, 51 चुनकर प्रदर्शित की है
सर्कस की थीम पर कोटा में इस तरह के एग्जीबिशन पहली बार लगी है. करीब ऐसे 51 फोटोग्राफ्स की है, जबकि विवेक देसाई हजारों फोटो देश के अलग-अलग शहरों में जाकर सर्कस के ऊपर खींच चुके हैं. देसाई का कहना है कि जब मैं फोटोग्राफी में आया तो सब्जेक्टिव वर्क करने के बारे में सोचा, क्योंकि सब्जेक्टिव वर्क नहीं करेंगे तो ज्यादा फायदा नहीं होता है. तो डॉक्यूमेंट्री में मुझे भरोसा था, मेरा इंटरेस्ट भी इसी में था. इस प्रकार से मैंने सर्कस का सब्जेक्ट चुन लिया.





Conclusion:बैकस्टेज लाइफ पर ज्यादा फोकस किया
विवेक देसाई कहते हैं कि सर्कस चालू होता है, जब वहां पर कलाकार और जोकर स्टेज पर परफॉर्म करते हैं. तो यह फोटो मालिकों के पास भी होते हैं. यह फोटो भी मैंने खींचे हैं, लेकिन बैकस्टेज लाइफ जो कलाकारों की होती है, वह कैसे पहनते हैं कैसे खाते हैं, कैसे रहते हैं, उनका शेडूल क्या होता है, यह पूरा का पूरा मैंने अपने फोटोग्राफ्स में लिया है. उनका कहना है कि इसके लिए उन्हें संघर्ष भी करना पड़ा. क्योंकि पहले यह लोग मानते नहीं थे. सर्कस ऑनर्स ने फोटो खींचने की अनुमति दे दी, लेकिन आर्टिस्ट को मनाने में काफी समय लग गया. उनको संकोच होता था, क्योंकि वह कभी भी कैमरे को बैकस्टेज लाइफ में पर फेस नहीं करते हैं. जब कलाकारों ने एलाउ किया तो मैंने अलग-अलग शहरों में जाकर सर्कस पर फोटोग्राफी की.


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