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Special: अच्छे दाम के बाद भी नहीं बढ़ा धनिए का रकबा, 20 फीसद हुई बुआई, जानें इसके पीछे की सच्चाई

धनिया की बुआई के मामले में अब कोटा संभाग के किसानों की रुचि कम (Coriander Cultivation in Kota) हो रही है. 10 सालों से यह रकबा लगातार गिर रहा है, जहां 8 साल पहले 2014-15 में हाड़ौती में 2 लाख 42 हजार 870 हेक्टेयर में धनिया की खेती हुई थी. वहीं, इस साल महज 47 से 48 हजार हेक्टेयर में ही धनिया की रोपाई हुई, जो 2014-15 की तुलना में महज 20 फीसदी है.

Coriander acreage reduced in Kota division
Coriander acreage reduced in Kota division
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Published : Dec 18, 2022, 8:04 PM IST

कोटा संभाग में घटा धनिए का रकबा

कोटा. कोटा संभाग धनिया उत्पादन के मामले में पूरे प्रदेश में (Coriander acreage decreased in Kota) अग्रणी है. यहां तक कि कोटा जिले की रामगंज धनिया मंडी धनिया के लिए विश्व विख्यात है. यहां देशभर से धनिया बिकने के लिए आता है. साथ ही सबसे अच्छी क्वालिटी का धनिया भी यही बिकता है, जिसके दाम भी अच्छे मिलते हैं. इसके बावजूद संभाग में तेजी से धनिया की खेती गिरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि संभाग के किसान अब इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं.

पिछले 10 सालों के आंकड़े खासा चौंकाने वाले हैं. संभाग में 8 साल पहले 2014-15 में हाड़ौती में 2 लाख 42 हजार 870 हेक्टेयर पर धनिया की खेती हुई थी, लेकिन इसके बाद के सालों में लगातार कम होती चली गई. वहीं, इस साल महज 47 से 48 हजार हेक्टेयर में धनिया (Farmers made distance from coriander in Kota) की खेती की गई, जो 2014-15 की तुलना में 20 फीसद है. इससे पहले 2012-13 में 156024 हेक्टेयर, 13-14 में 178210 हेक्टेयर, जबकि 2015-16 में 193759 हेक्टेयर में धनिया की बुआई हुई थी. इसके बाद ये लगातार गिर रहा है, जो 2016-17 में 126775 हेक्टेयर रहा था.

बीते साल सबसे कम 33 हजार हेक्टेयर में हुई बुआई: धनिया में हाड़ौती संभाग अग्रणी रहा है. प्रदेश में सबसे ज्यादा बुआई और उत्पादन यही होता है. इसके अलावा चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा में भी इसकी खेती होती है. हालांकि, दोनों जिलों को मिलाकर करीब 5000 हेक्टेयर के आसपास ही फसल होती है, लेकिन हाड़ौती में इसका रकबा काफी गिर रहा है. पिछले यहां महज 33044 हेक्टेयर में ही फसल उगाई गई थी. जिससे उत्पादन भी 44681 मीट्रिक टन हुआ था.

इसे भी पढ़ें - कोटा में गेहूं की बंपर आवक, रोजाना मंडी में आ रही 90 हजार बोरियां, बारिश में भीगने का अंदेशा

5000 से बढ़कर 13000 पहुंचे भाव: एक्सपर्ट का मानना है कि धनिया के भाव 3 साल कम रहते हैं और फिर अगले 3 साल दामों में काफी इजाफा हो जाता है. इसीलिए लोग धनिया का स्टॉक करके भी रखते हैं, फिर यह स्टॉक धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. तभी धनिया के भाव बढ़ जाते हैं. इसी के चलते धनिए के दाम में अंतर आता रहता है. किसानों का मानना है कि 5 साल पहले धनिया के दाम काफी कम थी, इसी के चलते लगातार रकबा गिरता रहा, यह भाव 5 से 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल पहुंच गए थे. इन दामों में इजाफा लगातार हो रहा था. बीते साल मंडी में 13 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक दाम मिले हैं.

उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ा रकबा: हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के ज्वाइंट डायरेक्टर पी के गुप्ता का मानना है कि बीते साल मंडी में काफी आकर्षित करने वाले भाव किसानों को मिले थे. साथ ही रकबा भी कम था और फसल में रोग भी नहीं लगे थे. ऐसे में बेहतर क्वालिटी के बावजूद इस बार उम्मीद के मुताबिक किसानों ने धनिए की बुआई नहीं की. हमने 80000 हेक्टेयर तक में धनिया के उत्पादन की संभावना जताई थी, लेकिन यहां 47 से 48 हजार हेक्टेयर में ही बुवाई की गई. बीते साल से ये 15000 हेक्टेयर से अधिक रहा था.

अगले साल रकबा बढ़ने की उम्मीद: ज्वाइंट डायरेक्टर गुप्ता का कहना है कि बाजार में डिमांड ज्यादा है, क्योंकि लोगों का किया स्टॉक पूरी तरह से खत्म हो गया है. इस बार ऐसा लग रहा है कि देर तक बारिश हुई थी, तो लोगों ने अन्य फसलों की बिजाई कर दी है. अरंडखेड़ा की किसान दाऊ शंकर का कहना है कि धनिया में इस बार थोड़ा रुझान बढ़ा है, पिछली बार भाव काफी अच्छा मिला व पैदावार भी बहुत अच्छी हुई थी. बीते दो 4 सालों से लोंगिया और मुड़िया रोग आने की वजह से लोग इस फसल से दूर हट गए थे, लेकिन पिछले साल यह रोग नहीं आया था. यह कम पानी की फसल है. एक रेलना और एक पानी में ही यह फसल हो जाती है.

चना और सरसों पर शिफ्ट हुए किसान: एक्सपर्ट का मानना है कि धनिए का उत्पादन भी एक हेक्टेयर में करीब 12 से 15 क्विंटल के आसपास होता है. लेकिन जब रोग लग जाता है, तब यह उत्पादन कम हो जाता है. कई बार रोग के चलते फसल पूरी खराब भी हो जाती है और हेक्टेयर में चार से पांच क्विंटल ही उत्पादन हो पाता है. रोग कम होता है, तब यह उत्पादन 7 से 8 क्विंटल तक भी होता है. इसकी क्वालिटी भी काफी गिर जाती है, जिससे दाम अच्छे नहीं मिलते हैं. किसान को एक हेक्टेयर में उत्पादन करने पर 50 से 60 हजार रुपए का ही उत्पादन बैठता है. इसी के चलते उसका रुझान दूसरी फसलों पर डायवर्ट हो गया, जिसमें सरसों व चना प्रमुख है.

एक नजर वर्षवार आंकड़ों पर

सालरकबा (हेक्टेयर) उत्पादन (मीट्रिक टन)
2017-1892290 137390
2018-196526973123
2019-20 56054 81642
2020-21 5060466943
2022-22 33044 44681

कोटा संभाग में घटा धनिए का रकबा

कोटा. कोटा संभाग धनिया उत्पादन के मामले में पूरे प्रदेश में (Coriander acreage decreased in Kota) अग्रणी है. यहां तक कि कोटा जिले की रामगंज धनिया मंडी धनिया के लिए विश्व विख्यात है. यहां देशभर से धनिया बिकने के लिए आता है. साथ ही सबसे अच्छी क्वालिटी का धनिया भी यही बिकता है, जिसके दाम भी अच्छे मिलते हैं. इसके बावजूद संभाग में तेजी से धनिया की खेती गिरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि संभाग के किसान अब इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं.

पिछले 10 सालों के आंकड़े खासा चौंकाने वाले हैं. संभाग में 8 साल पहले 2014-15 में हाड़ौती में 2 लाख 42 हजार 870 हेक्टेयर पर धनिया की खेती हुई थी, लेकिन इसके बाद के सालों में लगातार कम होती चली गई. वहीं, इस साल महज 47 से 48 हजार हेक्टेयर में धनिया (Farmers made distance from coriander in Kota) की खेती की गई, जो 2014-15 की तुलना में 20 फीसद है. इससे पहले 2012-13 में 156024 हेक्टेयर, 13-14 में 178210 हेक्टेयर, जबकि 2015-16 में 193759 हेक्टेयर में धनिया की बुआई हुई थी. इसके बाद ये लगातार गिर रहा है, जो 2016-17 में 126775 हेक्टेयर रहा था.

बीते साल सबसे कम 33 हजार हेक्टेयर में हुई बुआई: धनिया में हाड़ौती संभाग अग्रणी रहा है. प्रदेश में सबसे ज्यादा बुआई और उत्पादन यही होता है. इसके अलावा चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा में भी इसकी खेती होती है. हालांकि, दोनों जिलों को मिलाकर करीब 5000 हेक्टेयर के आसपास ही फसल होती है, लेकिन हाड़ौती में इसका रकबा काफी गिर रहा है. पिछले यहां महज 33044 हेक्टेयर में ही फसल उगाई गई थी. जिससे उत्पादन भी 44681 मीट्रिक टन हुआ था.

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5000 से बढ़कर 13000 पहुंचे भाव: एक्सपर्ट का मानना है कि धनिया के भाव 3 साल कम रहते हैं और फिर अगले 3 साल दामों में काफी इजाफा हो जाता है. इसीलिए लोग धनिया का स्टॉक करके भी रखते हैं, फिर यह स्टॉक धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. तभी धनिया के भाव बढ़ जाते हैं. इसी के चलते धनिए के दाम में अंतर आता रहता है. किसानों का मानना है कि 5 साल पहले धनिया के दाम काफी कम थी, इसी के चलते लगातार रकबा गिरता रहा, यह भाव 5 से 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल पहुंच गए थे. इन दामों में इजाफा लगातार हो रहा था. बीते साल मंडी में 13 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक दाम मिले हैं.

उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ा रकबा: हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के ज्वाइंट डायरेक्टर पी के गुप्ता का मानना है कि बीते साल मंडी में काफी आकर्षित करने वाले भाव किसानों को मिले थे. साथ ही रकबा भी कम था और फसल में रोग भी नहीं लगे थे. ऐसे में बेहतर क्वालिटी के बावजूद इस बार उम्मीद के मुताबिक किसानों ने धनिए की बुआई नहीं की. हमने 80000 हेक्टेयर तक में धनिया के उत्पादन की संभावना जताई थी, लेकिन यहां 47 से 48 हजार हेक्टेयर में ही बुवाई की गई. बीते साल से ये 15000 हेक्टेयर से अधिक रहा था.

अगले साल रकबा बढ़ने की उम्मीद: ज्वाइंट डायरेक्टर गुप्ता का कहना है कि बाजार में डिमांड ज्यादा है, क्योंकि लोगों का किया स्टॉक पूरी तरह से खत्म हो गया है. इस बार ऐसा लग रहा है कि देर तक बारिश हुई थी, तो लोगों ने अन्य फसलों की बिजाई कर दी है. अरंडखेड़ा की किसान दाऊ शंकर का कहना है कि धनिया में इस बार थोड़ा रुझान बढ़ा है, पिछली बार भाव काफी अच्छा मिला व पैदावार भी बहुत अच्छी हुई थी. बीते दो 4 सालों से लोंगिया और मुड़िया रोग आने की वजह से लोग इस फसल से दूर हट गए थे, लेकिन पिछले साल यह रोग नहीं आया था. यह कम पानी की फसल है. एक रेलना और एक पानी में ही यह फसल हो जाती है.

चना और सरसों पर शिफ्ट हुए किसान: एक्सपर्ट का मानना है कि धनिए का उत्पादन भी एक हेक्टेयर में करीब 12 से 15 क्विंटल के आसपास होता है. लेकिन जब रोग लग जाता है, तब यह उत्पादन कम हो जाता है. कई बार रोग के चलते फसल पूरी खराब भी हो जाती है और हेक्टेयर में चार से पांच क्विंटल ही उत्पादन हो पाता है. रोग कम होता है, तब यह उत्पादन 7 से 8 क्विंटल तक भी होता है. इसकी क्वालिटी भी काफी गिर जाती है, जिससे दाम अच्छे नहीं मिलते हैं. किसान को एक हेक्टेयर में उत्पादन करने पर 50 से 60 हजार रुपए का ही उत्पादन बैठता है. इसी के चलते उसका रुझान दूसरी फसलों पर डायवर्ट हो गया, जिसमें सरसों व चना प्रमुख है.

एक नजर वर्षवार आंकड़ों पर

सालरकबा (हेक्टेयर) उत्पादन (मीट्रिक टन)
2017-1892290 137390
2018-196526973123
2019-20 56054 81642
2020-21 5060466943
2022-22 33044 44681
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