कोटा. शिक्षा नगरी कोटा में दो लाख से ज्यादा बच्चे कम उम्र में ही अपना कॅरियर संवारने के लिए आ जाते हैं. जब वह बच्चे कोटा में आते हैं, तो उनकी उम्र 15 साल के आसपास ही होती है ताकि इंजीनियरिंग या मेडिकल के बड़े और अच्छे संस्थानों में उनका प्रवेश हो सके. इन बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए कोटा के कोचिंग संस्थान जी तोड़ मेहनत बच्चों के साथ करते हैं.
कोटा में हर स्टेट या केंद्र शासित प्रदेशों के बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन इन बच्चों में भी आपस में किसी तरह का कोई विवाद नहीं हुआ है. कोटा में आने वाले बच्चों में राजस्थान और इसके आसपास के प्रदेश हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश से ही नहीं, पूरे देश के हिस्से से बच्चे आते हैं. इनमे बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, आसाम, उत्तराखंड, हिमाचल, महाराष्ट्र, केरल, जम्मू कश्मीर व कर्नाटक तक शामिल है.
मिनी भारत बन गया है कोटा
हॉस्टल संचालक और चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ शर्मा बताते हैं कि वह लगभग 15 साल से कोटा में हॉस्टल व्यवसाय में सक्रिय हैं, लेकिन एक बार भी उन्होंने क्षेत्रवाद को लेकर झगड़े की बात नहीं सुनी है. यहां तक कि यहां पढ़ने आने वाले बच्चों के पैरंट्स को भी इस तरह का कोई डर नहीं होता है. उनका कहना है कि कभी किसी पैरंट्स ने इस तरह की कोई बात या शिकायत नहीं की है. बाहर के स्टूडेंट मिनी भारत के रूप में कोटा में रहते हैं. एक साथ खाते, पढ़ते और खेलते हैं.
कोचिंग एरिया बिखरा हुआ और बच्चे भी
अक्सर अन्य शैक्षणिक शहरों में देखने को आता है कि अलग-अलग एरिया के स्टूडेंट्स अलग-अलग जगह रहने लग जाते हैं. उनके नाम से ही वह एरिया प्रसिद्ध हो जाता है, लेकिन कोटा में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. कोटा में कोचिंग एरिया शहर के पांच छह क्षेत्रों में बिखरा हुआ है, लेकिन यहां भी एरिया के अनुसार बच्चे नहीं रहते हैं. इन सभी कोचिंग क्षेत्रों में हर प्रदेश और जगह के बच्चे मौजूद हैं. कोचिंग संस्थान भी एरिया विशेष के बच्चों को एक जगह नहीं रखते हैं.
पेरेंट्स को भी नहीं है डर
मध्य प्रदेश के रूपपुर जिले के निवासी अमरनाथ के बेटे और बेटी कोटा में ही कोचिंग कर रहे हैं. बेटी तो 1 साल और बेटा पिछले 4 माह से कोटा में रहकर तैयारी कर रहा है. उनका कहना है कि कोटा में क्षेत्रवाद जैसी कोई चीज उन्हें नजर नहीं आई. बच्चों को किसी तरह की यहां पर परेशानी नहीं हुई है. यहां के लोग काफी सपोर्टिव है.
इसी तरह कोटा से कोचिंग कर रहे स्टूडेंट आशुतोष मिश्रा बताते हैं कि उनके साथ हॉस्टल में कई स्टेट के बच्चे रहते हैं, लेकिन किसी तरह की कोई समस्या उन्हें नजर नहीं आई. यहां तक कि उन्होंने कहा कि पता भी नहीं है कि उनके साथ रहने वालों में कहां के स्टूडेंट्स है, जिसकी जानकारी नहीं है. इनमें आसाम, महाराष्ट्र, बिहार और अन्य कई प्रदेशों के बच्चे रहते हैं.
विभिन्न संस्कृतियों का मिलन है कोटा में
कोटा के स्थानीय नागरिक तपेश्वर सिंह भाटी बताते हैं कि भारत विभिन्न संस्कृतियों का देश है ऐसे में कोटा में भी अन्य कई प्रदेशों के बच्चे आते हैं और यहां पर पूरे देश की संस्कृतियों का मिलन होता है. ऐसा कुछ भी नहीं है कि बाहर के बच्चे कोटा में आकर न्यूसेंस करते हैं और ना ही यहां के लोग बाहर के बच्चों को परेशान करते हैं. यहां के लोग भी बाहर के बच्चों के साथ मिलजुल कर ही रहते हैं.
घटना भी सुनने को नहीं आई
कोटा शहर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश मील का कहना है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी का उत्तर भारत का सबसे बड़ा सेंटर कोटा है. यहां पर पूरे देश से करीब दो लाख से ज्यादा बच्चे अपना कॅरियर बनाने की कोचिंग करने आते हैं, लेकिन इन बच्चों के बीच में कभी क्षेत्रवाद या ग्रुपिज्म बिल्कुल भी नहीं है. बच्चे अपने कॅरियर के लिए मेहनत करते हैं. क्षेत्रवाद को लेकर लड़ाई झगड़े सामने नहीं आए हैं. एडिशनल एसपी मील का यहां तक भी कहना है कि लड़ाई झगड़े तो दूर की बात इस तरह की क्षेत्रवाद को लेकर कोई बात भी सामने नहीं आई है.
बीटी गैंग बनी, सबको किया तंग
सामान्य रूप से बच्चों में आपसी लड़ाई झगड़े हुए हैं. यह लड़ाई झगड़े बढ़कर बड़े रूप में भी निकल कर सामने आए हैं. इसी में कोटा में एक बिहार टाइगर (बीटी) नाम से गैंग सक्रिय हो गई थी, जिसमें कोचिंग के कुछ स्टूडेंट दूसरे स्टूडेंट को तंग करते थे, इस गैंग की सक्रियता से कोचिंग स्टूडेंट प्रभावित भी हुए हैं. यहां तक कि इस गैंग के एक झगड़े में एक हत्या का मामला भी सामने आ चुका है, लेकिन क्षेत्रवाद जैसा झगड़ा यह नहीं था.