कोटा. चैत्र नवरात्रि में माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. कोटा में देवी के कई अद्भुत मंदिर स्थापित हैं, जिनमें से एक है श्रीकरणी माता मंदिर. यह मंदिर कोटा के नांता इलाके में स्थित है. मान्यता है कि इसे 300 साल पहले कोटा के राजपरिवार ने स्थापित किया था. इस मंदिर को बीकानेर के करणी माता के मंदिर का एक रूप कहा जाता है. मंदिर की खासियत है कि भक्त यहां हर दिन माता के अलग-अलग रूप के दर्शन करते हैं.
बीते 20 सालों से मंदिर में पूजा-पाठ कर रहे पुजारी सुरेश शर्मा ने बताया कि करणी माता मंदिर नांता की एक खासियत है कि यहां पर माता की प्रतिमा का रोज नया श्रृंगार और वेशभूषा पहनाई जाती है. दर्शन के लिए आने वाले लोगों को हर दूसरे दिन माता का अलग ही रूप नजर आता है. यह परंपरा सालों से चली आ रही है. वर्तमान में यह मंदिर देवस्थान विभाग के अधीन आ गया है, जबकि मंदिर परिसर का गार्डन नगर विकास न्यास के अधीन है. पार्क के रखरखाव का काम नगर विकास न्यास करता है.
लवाजमे के साथ पूजा करने आता है राज परिवार : पुजारी सुरेश शर्मा ने बताया कि श्रीकरणी माता अभेड़ा कांकड़ मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 1778 में नवरात्र की सप्तमी को हुई थी. यह शारदीय नवरात्र की सप्तमी होती है. ऐसे में मंदिर स्थापना को 302 साल हो गए हैं. मंदिर के प्राकट्य दिवस पर कोटा राज परिवार यहां पूजा करने के लिए आते हैं. उनके साथ पूरा राज परिवार और लवाजमा होता है. शाही तरीके से वे नांता के काल भैरव और करणी माता की भी पूजा करते हैं. उनके पूर्वजों ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी.
अलवर व उदयपुर की तरह कोटा में स्थापित है मंदिर : पुजारी ने बताया कि मारवाड़ की राठौड़ राजकुमारी का विवाह कोटा के राजकुमार के साथ हुआ था. वे अपने साथ करणी माता की एक प्रतिमा लेकर आईं थी. मारवाड़ की राजकुमारियां विवाह के बाद इसी तरह से करणी माता की मूर्तियां लेकर जाती थीं. सभी जगह मंदिर स्थापित हुए हैं. ऐसा ही मंदिर अलवर और उदयपुर में भी स्थापित हैं. इसी तर्ज पर कोटा में भी मंदिर स्थापित किया गया था.
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बीकानेर की तरह मंदिर में भी थे मूषक : उन्होंने बताया कि मंदिर की नींव से लगता हुआ ही एक बड़ा प्राचीन कुंड है. इसमें आज भी पानी भरा हुआ है. हालांकि बताया जाता है कि अभेड़ा महल के पीछे तालाब है, जहां से ही यह पानी लगातार रिस कर आ रहा है. पहले स्वतः ही भूगर्भ के जरिए पानी इस कुंड में आ जाता था, लेकिन अब पानी रिस कर ही आता है. इसे खाली भी करना पड़ता है. पूरे मंदिर परिसर में बहुत सारे बंदर भी रहते हैं. जिस तरह से बीकानेर की करणी माता मंदिर में मूषक रहते हैं, वैसे ही यहां भी मौजूद थे. लेकिन दूसरे जानवर इन चूहों का लगातार शिकार करने लग गए, जिससे ये विलुप्त हो गए.
नवरात्रि में अखंड रामायण और दुर्गा सप्तशती का पाठ : उन्होंने बताया कि मंदिर की सारी व्यवस्था देवस्थान विभाग उठा रहा है. जबकि गार्डन का मेंटेनेंस नगर विकास न्यास के जिम्मे है. यूआईटी ने सुरक्षा के लिए होमगार्ड भी तैनात किए हुए हैं. यह 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं. यहां पर भक्त बड़ी संख्या में आते हैं. नवरात्रि के अवसर पर मंदिर पर स्थापना के दिन से रोज दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है. इसमें एक आचार्य एक पाठ करते हैं. छठे नवरात्र के दिन रामायण पाठ होती है. इस अखंड रामायण का समापन अष्टमी के दिन होता है.
मूषक के बाद मनुष्य योनि में लेते हैं जन्म : पुजारी सुरेश शर्मा ने बताया कि मुख्य मंदिर देशनोक बीकानेर में स्थित है. वहां चूहों को काबा बोला जाता है. इनकी पूर्ण रूप से सुरक्षा की जाती है. हजारों की तादात में वहां पर काबा होते हैं. करणी चालीसा में ऐसा लिखा है कि जीव, मनुष्य मृत्यु के बाद यमलोक चले जाते हैं, लेकिन करणी माता के भक्ति या उनके कुल में पैदा होने वाले लोग यमलोक नहीं जाकर मंदिर में मूषक बनते हैं. यह मूषक दोबारा मनुष्य योनि में पैदा होते हैं.
अवतरित हुईं थी करणी माता : पुजारी सुरेश शर्मा का कहना है कि जोधपुर जिले के फलौदी के सुआप गांव में चारण समाज के किनिया शाखा के मेहोजी व देवल बाई के घर में 1444 को सातवीं पुत्री के रूप में बड़ी करणी माता ने जन्म लिया था. साधारण कन्या नहीं होने के चलते उनकी ख्याति हर तरफ फैल गई और उसके बाद उनके मंदिर बने थे.