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हाड़ौती की नदियों ने अख्तियार किया विकराल रूप, इटावा के 3 गांव टापू में तब्दील

कोटा के इटावा उपखंड इलाके से निकल रही नदियों में उफान देखने को मिल रहा है. इसके चलते आसपास के ग्रामीणों को गांव खाली करने के लिए कहा गया है. वहीं, चम्बल और कालीसिंध नदी में आए उफान के बाद अब इटावा क्षेत्र के 3 गांव टापू में तब्दील हो गए है.

कोटा समाचार, kota news
कोटा के तीन गांव बने टापू
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Published : Aug 31, 2020, 5:26 PM IST

इटावा (कोटा). जिले के इटावा उपखंड क्षेत्र से निकल रही चम्बल, कालीसिंध, पार्वती नदियों में जोरदार उफान देखने को मिल रहा है. इसके चलते नदियां अपना विकराल रूप लेती दिखाई दे रही है और स्थानीय प्रशासन नदियों को लेकर अलर्ट नजर आ रहा है. यही कारण है कि इन नदियों के आसपास वाले गांवों और निचली बस्तियों को अलर्ट कर दिया गया है.

कोटा के तीन गांव बने टापू

खातोली थाने के हेड कांस्टेबल पूनमचंद ने बताया कि खातोली की पार्वती नदी खतरे के निशान पर बह रही है. नदी की पुलिया पर करीब 26 फीट पानी की चादर चल रही है. वहीं, चम्बल नदी की झरेर पुलिया पर करीब 30 फीट पानी की चादर और कालीसिंध नदी की पुलिया पर 13 फीट पानी की चादर चलने से नदियों का विकराल और रौद्र रूप नजर आ रहा है.

पढ़ें- कोटा बैराज से 1 लाख 30 हजार क्यूसेक पानी की निकासी...खतरे के निशान से ऊपर पहुंचा चंबल का जलस्तर

वहीं, नदियों में बढ़ते जलस्तर को लेकर प्रशासन भी गंभीर दिखाई दे रहा है, जिसके चलते निचली बस्तियों में निवास करने वाले लोगो को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने की अपील की गई है. साथ ही नदियों के किनारे बसे गांवों के लोगों से भी इलाका खाली करने के लिए कहा गया है. लेकिन ग्रामीण है कि अपने गांव से टस से मस नहीं होना चाहते हैं. इस बीच नदियों में लगातार बढ़ता पानी प्रशासन की चिंता बढ़ा रहा है.

3 गांव बने टापू

चम्बल और कालीसिंध नदी में आए उफान के बाद अब इटावा क्षेत्र के 3 गांव टापू में तब्दील हो गए है. कालीसिंध नदी के समीप स्थित नारायणपुरा, चम्बल के किनारे पर बसा किरपुरिया, रघुनाथपुरा गांव टापू बन गए है. यहां आवागमन का रास्ता पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो गया है. हालांकि, अभी गांवों में पानी पहुंचना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है.

साथ ही चम्बल नदी में बढ़ते जलस्तर के चलते कभी भी खातोली के फरेरा, मदनपुरा गांव भी टापू में तब्दील हो सकते है. मध्य प्रदेश के गांधी सागर से लगातार हो रही पानी की आवक के चलते कोटा बैराज से लगातार पानी की निकासी हो रही है, जिसके कारण चम्बल नदी अपना रौद्र रूप लेती नजर आ रही है, जिससे नदियों किनारे बसे गांवों को लेकर प्रशासन भी चिंतित है, लेकिन ग्रामीण गांव छोड़ने को तैयार नहीं है.

इटावा (कोटा). जिले के इटावा उपखंड क्षेत्र से निकल रही चम्बल, कालीसिंध, पार्वती नदियों में जोरदार उफान देखने को मिल रहा है. इसके चलते नदियां अपना विकराल रूप लेती दिखाई दे रही है और स्थानीय प्रशासन नदियों को लेकर अलर्ट नजर आ रहा है. यही कारण है कि इन नदियों के आसपास वाले गांवों और निचली बस्तियों को अलर्ट कर दिया गया है.

कोटा के तीन गांव बने टापू

खातोली थाने के हेड कांस्टेबल पूनमचंद ने बताया कि खातोली की पार्वती नदी खतरे के निशान पर बह रही है. नदी की पुलिया पर करीब 26 फीट पानी की चादर चल रही है. वहीं, चम्बल नदी की झरेर पुलिया पर करीब 30 फीट पानी की चादर और कालीसिंध नदी की पुलिया पर 13 फीट पानी की चादर चलने से नदियों का विकराल और रौद्र रूप नजर आ रहा है.

पढ़ें- कोटा बैराज से 1 लाख 30 हजार क्यूसेक पानी की निकासी...खतरे के निशान से ऊपर पहुंचा चंबल का जलस्तर

वहीं, नदियों में बढ़ते जलस्तर को लेकर प्रशासन भी गंभीर दिखाई दे रहा है, जिसके चलते निचली बस्तियों में निवास करने वाले लोगो को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचने की अपील की गई है. साथ ही नदियों के किनारे बसे गांवों के लोगों से भी इलाका खाली करने के लिए कहा गया है. लेकिन ग्रामीण है कि अपने गांव से टस से मस नहीं होना चाहते हैं. इस बीच नदियों में लगातार बढ़ता पानी प्रशासन की चिंता बढ़ा रहा है.

3 गांव बने टापू

चम्बल और कालीसिंध नदी में आए उफान के बाद अब इटावा क्षेत्र के 3 गांव टापू में तब्दील हो गए है. कालीसिंध नदी के समीप स्थित नारायणपुरा, चम्बल के किनारे पर बसा किरपुरिया, रघुनाथपुरा गांव टापू बन गए है. यहां आवागमन का रास्ता पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो गया है. हालांकि, अभी गांवों में पानी पहुंचना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है.

साथ ही चम्बल नदी में बढ़ते जलस्तर के चलते कभी भी खातोली के फरेरा, मदनपुरा गांव भी टापू में तब्दील हो सकते है. मध्य प्रदेश के गांधी सागर से लगातार हो रही पानी की आवक के चलते कोटा बैराज से लगातार पानी की निकासी हो रही है, जिसके कारण चम्बल नदी अपना रौद्र रूप लेती नजर आ रही है, जिससे नदियों किनारे बसे गांवों को लेकर प्रशासन भी चिंतित है, लेकिन ग्रामीण गांव छोड़ने को तैयार नहीं है.

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