करौली. सरकार द्वारा सिलिकोसिस रोग से पीड़ित लोगों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता लेने के लिए रोगियों को कितनी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है और पापड़ बेलने पडते है इसका आलम करौली जिले में खुलेआम देखने को मिल रहा है.
जहां रोगियों को प्रमाण पत्र बनवाने के लिये होने वाली विभागीय जांच के लिए मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर टोडाभीम अस्पताल मे सिर्फ एक्सरे जांच कराने के लिए जाना पड रहा है. अब इसे अधिकारियों की दलालों से मिलीभगत कहें या फिर जिला प्रशासन की चुप्पी.
दरअसल सरकार द्वारा सिलिकोसिस रोग से पीड़ित रोगियों के लिए आर्थिक साहयता के रूप मे 1 लाख रूपये और मरणोपरांत 3 लाख रूपये की आर्थिक सहायता दी जाती है. इस सहायता को पाने के लिए पीड़ित मरीज को न्यूमोनोकोसिस बोर्ड द्वारा दिए गए नियमों से गुजरना पड़ता है. जिसमें एक्स-रे जांच भी होती है. इन जाचों के लिए पीड़ित रोगी को नजदीकी अस्पताल में ही पूरी जांच दी जाती हैं. इसके पीछे मंशा सिर्फ यही होती है की जो पहले से शारीरिक रूप से पीड़ित है उसे और मानसिक और आर्थिक रुप से पीड़ित नहीं होना पड़े.
लेकिन करौली जिले मे अजीब ही खेल चल रहा है. पीड़ित मरीजों को इन सब जांचों के लिए 100 से 120 किलोमीटर दूर के इलाको में भेजा जा रहा है जबकि आसपास के अस्पतालों में भी यह सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है. इन मरीजों के मोबाइल पर राजस्थान सिलिकोसिस के नाम मैसेज द्वारा दूर-दराज के सेंटर पर जाने के लिए कहा जा रहा है. कैलादेवी, मासलपुर, करौली ब्लॉक के ऐसे दर्जन से अधिक पीड़ित मरीज हैं जिनको टोडाभीम के अस्पताल में भेजा जा रहा है.
प्रत्येक गांव मे है दलाल सक्रिय
सरकार द्वारा सिलिकोसिस रोग से पीड़ित को दी जाने वाली राशी मे से हडपने के लिए जिले विभिन्न गांवो मे दलाल भी खुब सक्रिय हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सिलीकोसिस पीड़ित रोगी को ई-मित्र पर जाकर ऑनलाइन अपना आवेदन जमा कराना होता है. उसके बाद सम्बंधित पीएससी पर स्क्रीनिंग करानी होती है. यहां से स्क्रीनिंग फाइनल होने के बाद मरीज को जिला क्षय रोग अस्पताल में जाना होता है. जहां पर मरीज को एक फिक्स डेट दी जाती है जब उसको न्यूमोनोकोसिस बोर्ड में बुलाया जाता है.
फिर बोर्ड के सदस्यों द्वारा मरीज का रिजल्ट बनाकर उसको सॉफ्टवेयर पर अपलोड कर दिया जाता है. इसमें मरीजो और किसी व्यक्ति का कोइ हस्तक्षेप नहीं होता है लेकिन मिलीभगत के चलते मरीजों से पूरे डाक्यूमेंट्स ना लेकर उसके कागजो की खानापूर्ति करने के लिए दलालों से उनका संपर्क करा दिया जाता है. मरीजों को कागजी खानापूर्ति के दौरान होने वाले आवागमन मे दलाल संपर्क में आ जाते हैं.
दलाल पीड़ितों से मिलकर उनकी राशी को जल्दी डलवाने और दफ्तरों के चक्कर ना काटने की बात बोलकर झांसे मे लेते है और पीड़ित मरीज से मिलने वाली राशी मे से 50% का सौदा तय कर लेते हैं. दलालो को मिलने वाली राशी मे अधिकारियों का भी हिस्सा होता है. अमूमन इन दलालो को जिला क्षय रोग अस्पताल के बाहर 3 बजे के बाद देखा भी जा सकता है.
मंत्री के दखल के बाद भी योजना को लगा पलीता
राजनीतिक लोगों और फरियादियों की शिकायतों के बाद राजस्थान सरकार में खाद्य एव नागरिक आपूर्ति उपभोक्ता मामलात मंत्री एवं जिले के सपोटरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रमेश मीणा नाराजगी व्यक्त की और पुराने बोर्ड को हटाकर नए बोर्ड का गठन करने के लिए जिला प्रशासन को निर्देश दिए. इस पर जिला प्रशासन ने नए बोर्ड का गठन कर भरोसा जताया. कुछ दिन तक तो पीड़ितों को राहत नजर आई लेकिन फिर से विभाग के कारिंदे उसी ढर्रे पर चल निकले.
इनका कहना है
मामले मे जिला क्षय रोग अधिकारी डॉक्टर विजय सिंह जगडवाल ने बताया की ऐसा तो हो नही सकता अगर कोई गलती से चला गया हो तो उसको सम्बंधित जगह पर भेज दिया जायेगा लेकिन संवाददाता द्वारा कहा गया कि यह एक केस नहीं है ऐसे दर्जनों केस है इस पर उन्होंने अन्य चिकित्सकों पर मामले को डालते हुए कहा की मरीजो की संख्या को देखते हुऐ इच्छुक चिकित्सकों के पास भेज दिया जाता है कई चिकित्सक मरीजों को 2/3 दिन बाद मे आने का बहाना बना देते हैं.