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'देसी फ्रिज' पर लगा कोरोना का ग्रहण, मिट्टी के बर्तनों का कारोबार ठप

कोरोना वायरस की वजह से देश में लागू लॉकडाउन ने निर्धन तबके के लोगों के साथ-साथ कुम्हारों की भी कमर तोड़कर रख दी है. माटी पुत्रों का प्रमुख सीजन गर्मी में व्यवसाय पूरी तरह बंद हो गया है. अब इनके सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. मटका व्यापारियों के लाखों के मटके गोदाम में खराब हो रहे हैं.

करौली न्यूज, करौली कुम्हार न्यूज, Karauli Potters News
मिट्टी के बर्तनों का कारोबार हुआ ठप
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Published : May 17, 2020, 8:10 PM IST

करौली. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को लेकर देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से देसी फ्रिज कहलाने वाले मिट्टी के मटके (घड़ा) की बिक्री पर भी ग्रहण लग गया है. जिससे कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. गर्मी के दिनों में मटके का मिट्टी की सौंधी खुशबू वाला पानी लोगों के लिए अमृत के समान होता है.

मिट्टी के बर्तनों का कारोबार हुआ ठप

दरअसल, कोरोना महामारी ने देश में जबसे पैर पसारा है, तब से निर्धन और दिहाड़ी मजदूरों की कमर टूट चुकी है. गर्मियों के मौसम में गरीब के घर का फ्रीज कहा जाने वाला कुंभकार द्वारा बनाया गया मटका भी आज कोरोना की चपेट में आने से अछूता नहीं बच पाया है. पहले जहां फ्रीज, रेफ्रिजेटरों के आने से कुंभकार की कला की कमर तोड़ के रख दी थी, तो वहीं अब बची-कुची इस बार कोरोना महामारी ने खत्म कर दी है.

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नहीं आ रहे ग्राहक

कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते संपूर्ण देश में लॉकडाउन के आदेश जारी किए गए हैं. जिसके कारण सारे कार्य अस्त-व्यस्त हो गए हैं. इससे अब लोगों के पास ना तो खर्च करने के लिए पैसा है और ना ही खाने के लिए अन्न. ऐसे में इस महामारी की वजह से व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ा है. कुम्हारों के सामने अब रोजी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है.

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धूल फांक रहा मिट्टी का बर्तन

पढ़ें- कोरोना कालः पर्यटन क्षेत्र से जुड़े सभी व्यवसाय ठप, 2 महीनों में 10 करोड़ का नुकसान

कुंभकारों ने बताया कि गर्मियों के मौसम आने से कई महीने पहले ही मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य चालू हो जाता है. इस बार भी वे पहले से ही मिट्टी के बर्तन बनाना शुरू कर दिए थे, ताकि जैसे ही ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो, इसकी बिक्री कर सकें. लेकिन इस बार ऐसा हो नहीं सका.

कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए सेठ लोगों से कर्जा लिया, ताकि इस मौसम में मटकों का व्यापार कर सके. लेकिन लॉकडाउन ने सारे सपनों पर पानी फेर दिया है. उनका कहना है कि लाखों रुपए का माल धूल फांक रहा है. कुंभकारों ने इस संकट को देखते हुए शासन और प्रशासन से उनको उबारने के लिए आर्थिक मदद देने की गुहार लगाई है.

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देसी फ्रिज

मिट्टी को देते हैं कई रूप

कुम्हार जाति से जुड़े इन कलाकारों से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि मिट्टी को भिगोकर कड़ी मेहनत कर परम्परागत पत्थर की चाक पर रखकर बर्तन सहित उसे विभिन्न आकार देते हैं. ऐसे में मटका, घड़ा, दीपक सहित कई अन्य बर्तनों और आम दिनचर्या में काम आने वाले संसाधनों का निर्माण करते हैं. मिट्टी से बर्तन बनाने के बाद इन्हें आग के हवाले किया जाता है. कई बार बारिश होने की वजह से कुंभकार परिवार की मेहनत पर पानी फिर जाता है और उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.

करौली. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को लेकर देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से देसी फ्रिज कहलाने वाले मिट्टी के मटके (घड़ा) की बिक्री पर भी ग्रहण लग गया है. जिससे कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. गर्मी के दिनों में मटके का मिट्टी की सौंधी खुशबू वाला पानी लोगों के लिए अमृत के समान होता है.

मिट्टी के बर्तनों का कारोबार हुआ ठप

दरअसल, कोरोना महामारी ने देश में जबसे पैर पसारा है, तब से निर्धन और दिहाड़ी मजदूरों की कमर टूट चुकी है. गर्मियों के मौसम में गरीब के घर का फ्रीज कहा जाने वाला कुंभकार द्वारा बनाया गया मटका भी आज कोरोना की चपेट में आने से अछूता नहीं बच पाया है. पहले जहां फ्रीज, रेफ्रिजेटरों के आने से कुंभकार की कला की कमर तोड़ के रख दी थी, तो वहीं अब बची-कुची इस बार कोरोना महामारी ने खत्म कर दी है.

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कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते संपूर्ण देश में लॉकडाउन के आदेश जारी किए गए हैं. जिसके कारण सारे कार्य अस्त-व्यस्त हो गए हैं. इससे अब लोगों के पास ना तो खर्च करने के लिए पैसा है और ना ही खाने के लिए अन्न. ऐसे में इस महामारी की वजह से व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ा है. कुम्हारों के सामने अब रोजी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है.

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धूल फांक रहा मिट्टी का बर्तन

पढ़ें- कोरोना कालः पर्यटन क्षेत्र से जुड़े सभी व्यवसाय ठप, 2 महीनों में 10 करोड़ का नुकसान

कुंभकारों ने बताया कि गर्मियों के मौसम आने से कई महीने पहले ही मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य चालू हो जाता है. इस बार भी वे पहले से ही मिट्टी के बर्तन बनाना शुरू कर दिए थे, ताकि जैसे ही ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो, इसकी बिक्री कर सकें. लेकिन इस बार ऐसा हो नहीं सका.

कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए सेठ लोगों से कर्जा लिया, ताकि इस मौसम में मटकों का व्यापार कर सके. लेकिन लॉकडाउन ने सारे सपनों पर पानी फेर दिया है. उनका कहना है कि लाखों रुपए का माल धूल फांक रहा है. कुंभकारों ने इस संकट को देखते हुए शासन और प्रशासन से उनको उबारने के लिए आर्थिक मदद देने की गुहार लगाई है.

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देसी फ्रिज

मिट्टी को देते हैं कई रूप

कुम्हार जाति से जुड़े इन कलाकारों से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि मिट्टी को भिगोकर कड़ी मेहनत कर परम्परागत पत्थर की चाक पर रखकर बर्तन सहित उसे विभिन्न आकार देते हैं. ऐसे में मटका, घड़ा, दीपक सहित कई अन्य बर्तनों और आम दिनचर्या में काम आने वाले संसाधनों का निर्माण करते हैं. मिट्टी से बर्तन बनाने के बाद इन्हें आग के हवाले किया जाता है. कई बार बारिश होने की वजह से कुंभकार परिवार की मेहनत पर पानी फिर जाता है और उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.

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