करौली. दिवाली पर मिट्टी के कतारबद्ध दीये सकारात्मक ऊर्जा देते हैं. कुम्हार तो दिवाली को लेकर कई महीनों पहले ही तैयारी में जुट जाते हैं लेकिन करौली के कुम्हार इस बार मायूस हैं. कोरोना के कारण मिट्टी के दीयों की 50 प्रतिशत तक मांग घट गई है.
दिवाली पर माटी के दीपों की खासी मांग रहती है. कुम्हार कई दिन पहले इनके निर्माण में जुट जाते हैं लेकिन कोरोना काल ने सारे उद्योग-धंधे तो ठप किये ही, छोटे कामकाज करने वालों से उनकी दो जून की रोटी की जुगत भी छीन ली. दिवाली के मौके पर मिट्टी के दीयों की भारी मांग होती थी. जिससे कुम्हारों का भी त्योहार रोशन हो जाता था लेकिन इस दिवाली वो बात नहीं है.
पहले से ही आर्थिक तंगी झेल रहे कुम्हारों को मेहनत क्या लगात के भी दाम नहीं मिल रहे हैं. महंगी हो रही मिट्टी और काम के अनुरूप दाम नहीं मिलने से कुम्हार मायूस हैं. ऐसे में कुम्हारों का पुश्तैनी धंधा चौपट होता जा रहा है.
यह भी पढ़ें. Special: कुम्हारों की होगी हैप्पी दिवाली, चीनी समान के बहिष्कार से बढ़ी दीयों की मांग
इस बार दिवाली के अवसर पर मिट्टी के बर्तनों, दीपक बनाने वाले कुम्हार की दीपावली अंधकार में होती दिखाई दे रही है. दीपावली के त्यौहार में लगने वाले छोटे-छोटे मिट्टी के दीपक की मांग इस बार बिल्कुल ना के बराबर है.
अंधकारमय दिवाली का सता रहा डर
कोरोना की वजह से आर्थिक स्थिति बिगड़ने की वजह से लोग इस बार बिल्कुल ही खरीदारी नहीं कर पा रहे हैं. जिस वजह से बाजार में भीड़ तो दिखाई दे रही है लेकिन कुम्हारों का कहना है कि इस बार दीपकों की बिक्री नहीं होने के कारण उनकी और परिवार की दिवाली अंधकारमंय होने वाली है. जिसका उनको बहुत अफसोस है.
यह भी पढ़ें. SPECIAL: बूंदी के कुम्हारों में जगी उम्मीद की रोशनी, इस साल ये भी मनाएंगे दिवाली
कुम्हारों का कहना है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. बहुत कम ग्राहक आते हैं, इस चक्कर में कम कीमत पर दीये बेचना पड़ रहा है. फिलहाल, अधिकांश जगहों पर कुम्हार दीपक बनाने में जुटे हैं. दीपक बनाने में घर के बच्चे व महिला भी सहयोग करते हैं.
गणेश चतुर्थी से जुटते हैं दीये बनाने में
कुम्हारों ने बताया कि गणेश चतुर्थी के तीन दिन बाद से ही दीये बनाना में जुट जाते हैं. दीपक बनाने के लिए बाहर से चिकनी मिट्टी मंगवाई जाती है. फिर मिट्टी को छानते है. उसके बाद मिट्टी को भिगोते है. उसके बाद मिट्टी को मशीन में रखते है और हाथों से दीपक बनाते हैं. दीपक बनने के बाद उन्हे चिलचिलाती धूप मे रखते है. धूप मे रखने के बाद जब दीपक हल्के से सूख जाते है. भट्टी में दीपक को तपाते हैं लेकिन मेहनत के अनुरूप पैसे नहीं मिल पाते हैं.
कोरोना में रह गई 50 प्रतिशत बिक्री
इस बार कोरोना के चलते आई आर्थिक मंदी की वजह से कुम्हारों की बिक्री आधी रह गई है. बना हुआ माल भी नहीं बिक रहा है. जिस वजह से इस बार उनके चेहरे पर मायूसी छायी हुई है. इस बार बाजार मे 30-35 रुपए सैंकड़ा के भाव से दीपक बेचे जा रहे हैं. जिससे मुनाफा कम और घाटा ज्यादा हो रहा है.