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कोरोना संकट में राजस्थान के इस गांव का शिक्षक बना मिसाल, घर-घर जाकर बच्चों को दिया नवाचार

शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता होता है. गुरु का पद समाज में सर्वोपरि है. शिक्षक को अपने कर्तव्य का पालन करते हुए राष्ट्र निर्माता होने के दायित्व को भलीभांति निभाना चाहिए. ऐसे ही एक सरकारी स्कूल के राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित शिक्षक ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कोरोना काल में बच्चों की पढाई को लेकर क्या कहा देखिए रिपोर्ट.

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घर-घर जाकर बच्चों को दिया नवाचार
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Published : Sep 5, 2020, 11:49 PM IST

करौली. ज्ञान बिना हर व्यक्ति अधूरा है व्यक्ति को संपूर्ण करने का माध्यम हमारे शिक्षक बनते हैं. जो अपने पठन-पाठन के नए-नए तरीकों से हमारे दिमाग की कुंजी खोलते हैं. हर शिक्षक के पढ़ाने का तरीका मौलिक होता है, लेकिन हर किसी का सपना विद्यार्थी की मौलिकता को बाहर लाना होता है. देश के ऐसे ही कई शिक्षकों को राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान के लिए चुना गया है. जिन्होंने न सिर्फ अपने तरीकों से शिक्षण की दुनिया में अलग जगह बनाई बल्कि विद्यार्थियों के बेहतर परिणामों के जरिए उनके बीच प्रिय शिक्षक की उपाधि भी पाई. शिक्षक दिवस के अवसर पर करौली के बखतपुरा गांव के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार से पुरूस्कृत ऐसे ही शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत से ईटीवी भारत ने बात की.

घर-घर जाकर बच्चों को दिया नवाचार

कोरोना काल मे घर घर जाकर बच्चों को दिया मोटीवेशन

राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान पुरूस्कार से सम्मानित शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कोरोना महामारी ने पूरी तरह से बच्चों को विद्यालय से दूर कर दिया है. ऐसी स्थिति में बच्चों का ध्यान रखना आवश्यक था. इसके लिए ऑनलाइन शिक्षण के तरीकों को भी अपनाया और घर-घर जाकर बच्चों को समझाया, व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर शिक्षा अध्ययन से जोड़ा, बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित किया, उनके लिए कार्य दिया. घर पर जाकर उनके कार्य की सराहना की, बच्चों को शैक्षिक सामग्री आदि वितरण करके और पढ़ाई के लिए लगातार प्रयास करते हुए प्रेरित किया.

बच्चों को संदेश के माध्यम से किया प्रेरित

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने कहा कि कोराना काल में राज्य सरकार के जो निर्देश आए थे और ऑनलाइन शिक्षण जो सरकार ने शुरू किया. इस के लिए समस्त PEO और पूरे ब्लॉक में व्हाट्सएप के ग्रुप बनाए गए थे. उस पर शिक्षण सामग्री राज्य सरकार से भी प्रतिदिन डाली गई. वहीं बच्चों को अपने संदेश के माध्यम से प्रेरित किया. इस दौरान विभिन्न बीएलओ आदि के माध्यम से घर-घर सर्वे करना होता था. वहीं पर ही साथ-साथ अपने आप को सुरक्षित रखते हुए बच्चों को भी मोटिवेट किया कि लगातार अभिभावकों के सहयोग से अपना अध्ययन जारी रखें.

पढ़ेंः शिक्षक दिवस विशेष: आर्थिक तंगी से जूझ रहे भविष्य निर्माता...किसे सुनाएं गाथा

ऑनलाइन शिक्षा इस क्षेत्र में नहीं कारगर

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने बताया कि चूंकि हमारे जो क्षेत्र है वह पिछड़ा हुआ डांग क्षेत्र हैं. यहां पर इंटरनेट आदि की सुविधाएं ठीक नहीं है. साथ ही गरीब अभिभावक है. ऑनलाइन शिक्षा हमारे क्षेत्रों में इतनी कारगर नहीं है. साथ ही हमने प्रयास किया कि किसी भी माध्यम से बच्चों को अपनी पढ़ाई से दूर नहीं रहे. इसके लिए जब भी हम संपर्क के दौरान उनकी नोटबुक इत्यादि को चेक करना, उनको अपने गृह कार्य के प्रति प्रेरित करना और प्रतिदिन पांच अभिभावकों को कॉल करते कि बच्चे शिक्षण सामग्री को देख रहे हैं या नहीं.

बच्चों और अभिभावकों के प्रेम की वजह से मिला पुरस्कार

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने कहा कि सर्वप्रथम मेरा ध्येय था कि मैं एक शिक्षक हूं और शिक्षक का परम कर्तव्य अपने बालक बालिकाओं का सर्वांगीण विकास करना होता है. इसके साथ ही जब मैं अपने कार्य क्षेत्र में गया तो मैंने देखा कि वहां पर शहरी क्षेत्र का जो विद्यालय है उसकी तुलना में हमारा जो ग्रामीण क्षेत्र का विद्यालय है. जहां पर मैं कार्यरत हूं. राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय बखतपुरा वहां पर पर्याप्त भवन नहीं था. बच्चों की पढ़ाई के लिए उचित वातावरण नहीं था. अधिकांश बच्चे विद्यालय से वाक आउट हो जाते थे. अभिभावक अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाना ज्यादा बेहतर समझते थे. हमने प्रयास किया भामाशाह के सहयोग से आधुनिक सुविधाएं जुटाई.

पढ़ेंः शिक्षक दिवस विशेषः भविष्य को निखारने की ऐसी ललक की शिक्षक ने बदल दी स्कूल की सूरत

आज हमारे विद्यालय में सीसीटीवी कैमरे, कंप्यूटर लैब,प्रोजेक्टर, इत्यादि तकनीक के माध्यम से बच्चों को शिक्षण कार्य करवाना, स्वच्छ जल की व्यवस्था, भामाशाह के सहयोग से पानी की टंकी, बच्चों को उचित और मनमोहक वातावरण देने के लिए झूले, फिसलन पट्टी और अन्य मनोरंजन के साधन लगवाए. बालिकाएं डरती थी कि विद्यालय जाएंगे तो वहां पर शौचालय इत्यादि की व्यवस्था नहीं है. जिसपर हमने आधुनिक सुविधाओं से युक्त भामाशाह के सहयोग से बालक बालिकाओं के लिए शौचालय उपलब्ध करवाएं. एक ऐसा आनंददायक वातावरण विद्यालय में दिया ताकि बच्चे विद्यालय आने के लिए प्रेरित हो.

बच्चों ने प्राईवेट स्कूलों से किनारा कर रूख किया सरकारी स्कूल में

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने कहा कि शिक्षकों की मेहनत के कारण अभिभावकों के मन में यह विश्वास जाग गया कि सरकारी विद्यालय के जो शिक्षक है वह सर्वश्रेष्ठ है. सरकारी विद्यालय के शिक्षक आज सर्वश्रेष्ठ परिणाम दे रहे हैं और पिछले 3 वर्षो में हमारे विद्यालय से अनेक बच्चों का छात्रवृत्ति परीक्षाओं के लिए चयन हुआ है. लैपटॉप जैसे पुरस्कार हमारे विद्यालय के बच्चों ने प्राप्त किये है. इन सब से अभिभावकों के मन में विश्वास हुआ कि सरकारी विद्यालय ही श्रेष्ठ है.

ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण इलाकों में नहीं कारगर

शिक्षक ने बताया कि बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए ऑनलाइन ही हमारे सामने विकल्प है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पर नेटवर्क नहीं है वहां पर यह शिक्षा ज्यादा कारगर साबित नहीं हो सकती. छोटे बच्चों को जब तक फेस टू फेस शिक्षक गाइड नहीं कर सकते. उनके अंदर जो समस्या है वह क्लियर नहीं होती है. उन्होंने कहा कि लेकिन ऐसी परेशानी में कोई दूसरा विकल्प नहीं है तो स्मार्टफोन, रेडियो, टीवी प्रोग्राम के माध्यम से उनको शिक्षा से जोड़ना एक मजबूरी है. लेकिन सही मायने मे तो विद्यालय खुलने पर ही बच्चों को शिक्षा का पर्याप्त लाभ मिल पायेगा. उन्होंने शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को बधाई देते हुए कहा कि शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता होता है. गुरु का पद समाज में सर्वोपरि है. शिक्षक को अपने कर्तव्य का पालन करते हुए राष्ट्र निर्माता होने के दायित्व को भलीभांति निभाना चाहिए.

करौली. ज्ञान बिना हर व्यक्ति अधूरा है व्यक्ति को संपूर्ण करने का माध्यम हमारे शिक्षक बनते हैं. जो अपने पठन-पाठन के नए-नए तरीकों से हमारे दिमाग की कुंजी खोलते हैं. हर शिक्षक के पढ़ाने का तरीका मौलिक होता है, लेकिन हर किसी का सपना विद्यार्थी की मौलिकता को बाहर लाना होता है. देश के ऐसे ही कई शिक्षकों को राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान के लिए चुना गया है. जिन्होंने न सिर्फ अपने तरीकों से शिक्षण की दुनिया में अलग जगह बनाई बल्कि विद्यार्थियों के बेहतर परिणामों के जरिए उनके बीच प्रिय शिक्षक की उपाधि भी पाई. शिक्षक दिवस के अवसर पर करौली के बखतपुरा गांव के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार से पुरूस्कृत ऐसे ही शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत से ईटीवी भारत ने बात की.

घर-घर जाकर बच्चों को दिया नवाचार

कोरोना काल मे घर घर जाकर बच्चों को दिया मोटीवेशन

राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान पुरूस्कार से सम्मानित शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कोरोना महामारी ने पूरी तरह से बच्चों को विद्यालय से दूर कर दिया है. ऐसी स्थिति में बच्चों का ध्यान रखना आवश्यक था. इसके लिए ऑनलाइन शिक्षण के तरीकों को भी अपनाया और घर-घर जाकर बच्चों को समझाया, व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर शिक्षा अध्ययन से जोड़ा, बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित किया, उनके लिए कार्य दिया. घर पर जाकर उनके कार्य की सराहना की, बच्चों को शैक्षिक सामग्री आदि वितरण करके और पढ़ाई के लिए लगातार प्रयास करते हुए प्रेरित किया.

बच्चों को संदेश के माध्यम से किया प्रेरित

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने कहा कि कोराना काल में राज्य सरकार के जो निर्देश आए थे और ऑनलाइन शिक्षण जो सरकार ने शुरू किया. इस के लिए समस्त PEO और पूरे ब्लॉक में व्हाट्सएप के ग्रुप बनाए गए थे. उस पर शिक्षण सामग्री राज्य सरकार से भी प्रतिदिन डाली गई. वहीं बच्चों को अपने संदेश के माध्यम से प्रेरित किया. इस दौरान विभिन्न बीएलओ आदि के माध्यम से घर-घर सर्वे करना होता था. वहीं पर ही साथ-साथ अपने आप को सुरक्षित रखते हुए बच्चों को भी मोटिवेट किया कि लगातार अभिभावकों के सहयोग से अपना अध्ययन जारी रखें.

पढ़ेंः शिक्षक दिवस विशेष: आर्थिक तंगी से जूझ रहे भविष्य निर्माता...किसे सुनाएं गाथा

ऑनलाइन शिक्षा इस क्षेत्र में नहीं कारगर

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने बताया कि चूंकि हमारे जो क्षेत्र है वह पिछड़ा हुआ डांग क्षेत्र हैं. यहां पर इंटरनेट आदि की सुविधाएं ठीक नहीं है. साथ ही गरीब अभिभावक है. ऑनलाइन शिक्षा हमारे क्षेत्रों में इतनी कारगर नहीं है. साथ ही हमने प्रयास किया कि किसी भी माध्यम से बच्चों को अपनी पढ़ाई से दूर नहीं रहे. इसके लिए जब भी हम संपर्क के दौरान उनकी नोटबुक इत्यादि को चेक करना, उनको अपने गृह कार्य के प्रति प्रेरित करना और प्रतिदिन पांच अभिभावकों को कॉल करते कि बच्चे शिक्षण सामग्री को देख रहे हैं या नहीं.

बच्चों और अभिभावकों के प्रेम की वजह से मिला पुरस्कार

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने कहा कि सर्वप्रथम मेरा ध्येय था कि मैं एक शिक्षक हूं और शिक्षक का परम कर्तव्य अपने बालक बालिकाओं का सर्वांगीण विकास करना होता है. इसके साथ ही जब मैं अपने कार्य क्षेत्र में गया तो मैंने देखा कि वहां पर शहरी क्षेत्र का जो विद्यालय है उसकी तुलना में हमारा जो ग्रामीण क्षेत्र का विद्यालय है. जहां पर मैं कार्यरत हूं. राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय बखतपुरा वहां पर पर्याप्त भवन नहीं था. बच्चों की पढ़ाई के लिए उचित वातावरण नहीं था. अधिकांश बच्चे विद्यालय से वाक आउट हो जाते थे. अभिभावक अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाना ज्यादा बेहतर समझते थे. हमने प्रयास किया भामाशाह के सहयोग से आधुनिक सुविधाएं जुटाई.

पढ़ेंः शिक्षक दिवस विशेषः भविष्य को निखारने की ऐसी ललक की शिक्षक ने बदल दी स्कूल की सूरत

आज हमारे विद्यालय में सीसीटीवी कैमरे, कंप्यूटर लैब,प्रोजेक्टर, इत्यादि तकनीक के माध्यम से बच्चों को शिक्षण कार्य करवाना, स्वच्छ जल की व्यवस्था, भामाशाह के सहयोग से पानी की टंकी, बच्चों को उचित और मनमोहक वातावरण देने के लिए झूले, फिसलन पट्टी और अन्य मनोरंजन के साधन लगवाए. बालिकाएं डरती थी कि विद्यालय जाएंगे तो वहां पर शौचालय इत्यादि की व्यवस्था नहीं है. जिसपर हमने आधुनिक सुविधाओं से युक्त भामाशाह के सहयोग से बालक बालिकाओं के लिए शौचालय उपलब्ध करवाएं. एक ऐसा आनंददायक वातावरण विद्यालय में दिया ताकि बच्चे विद्यालय आने के लिए प्रेरित हो.

बच्चों ने प्राईवेट स्कूलों से किनारा कर रूख किया सरकारी स्कूल में

शिक्षक मुकेश कुमार सारस्वत ने कहा कि शिक्षकों की मेहनत के कारण अभिभावकों के मन में यह विश्वास जाग गया कि सरकारी विद्यालय के जो शिक्षक है वह सर्वश्रेष्ठ है. सरकारी विद्यालय के शिक्षक आज सर्वश्रेष्ठ परिणाम दे रहे हैं और पिछले 3 वर्षो में हमारे विद्यालय से अनेक बच्चों का छात्रवृत्ति परीक्षाओं के लिए चयन हुआ है. लैपटॉप जैसे पुरस्कार हमारे विद्यालय के बच्चों ने प्राप्त किये है. इन सब से अभिभावकों के मन में विश्वास हुआ कि सरकारी विद्यालय ही श्रेष्ठ है.

ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण इलाकों में नहीं कारगर

शिक्षक ने बताया कि बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए ऑनलाइन ही हमारे सामने विकल्प है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पर नेटवर्क नहीं है वहां पर यह शिक्षा ज्यादा कारगर साबित नहीं हो सकती. छोटे बच्चों को जब तक फेस टू फेस शिक्षक गाइड नहीं कर सकते. उनके अंदर जो समस्या है वह क्लियर नहीं होती है. उन्होंने कहा कि लेकिन ऐसी परेशानी में कोई दूसरा विकल्प नहीं है तो स्मार्टफोन, रेडियो, टीवी प्रोग्राम के माध्यम से उनको शिक्षा से जोड़ना एक मजबूरी है. लेकिन सही मायने मे तो विद्यालय खुलने पर ही बच्चों को शिक्षा का पर्याप्त लाभ मिल पायेगा. उन्होंने शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को बधाई देते हुए कहा कि शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता होता है. गुरु का पद समाज में सर्वोपरि है. शिक्षक को अपने कर्तव्य का पालन करते हुए राष्ट्र निर्माता होने के दायित्व को भलीभांति निभाना चाहिए.

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