करौली. चंबल के बीहड़ से सटा पूर्वी राजस्थान का जिला करौली सेंड स्टोन (Karauli Red stone) के लिए देश-दुनिया में खास पहचान रखता है. यहां के खानों से निकले पत्थरों ने देश-दुनिया में कई बड़ी और खास इमारतों की चमक बढ़ाई है. समय के घूमते पहिया के साथ ही यहां के पत्थर उद्योग ने भी रफ्तार पकड़ी. पत्थर कारोबार कुछ इस तरह से फैला कि जिले की एक चौथाई आबादी खनन पर निर्भर है. पत्थर कारोबार के जरिए हर दिन यहां करीब 20 हजार लोगों को रोजगार मिलता है. जबकि पत्थर का सालाना कारोबार (karauli turn over) करीब 60 करोड़ का है.
करौली के सेंड स्टोन कारोबार (Karauli Red stone Business) ने यहां के लोगों को काफी कुछ दिया है. करौली में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला सेन्ड स्टोन है. जिसे लाल और चक्कादार पत्थर भी बोलते हैं. इस पत्थर के काम से जिले में हजारों मजदूर अपने पेट का पालन करते हैं. यहां के पत्थरों का इस्तेमाल दिल्ली के लालकिला समेत कई महलों में किए गए हैं. हालांकि अब ये कारोबार कुछ गर्दिश भरे दिनों से गुजर रहा है. इसका कारण है पत्थर पर लगने वाले टैक्स के साथ व्यापार में कमी आना. पत्थरों के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि दो साल कोरोना के चलते इस व्यापार पर खासा प्रभाव पड़ा है.
वहीं, जिला कलेक्टर अंकित कुमार सिंह और खनिज विभाग के अभियंता पी.आर मीना ने बताया कि हमारी तरफ से मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं. समय-समय पर कैम्प आयोजित कर मजदूरों की हेल्थ की जांच करवाई जाती है. साथ ही सरकार की ओर से जो भी योजनाएं संचालित हैं, वह सभी मजदूरों और खनन मालिकों को उपलब्ध करवाई जाती है.
देश विदेश तक रहती है डिमांडः पूर्वी राजस्थान के करौली जिले में भू-गर्भ में इमारती, सिलीका एवं धीया पत्थर के असीम भण्डार समाए हुए हैं. भवन निर्माण के काम आने वाले पत्थरों की खदानें काफी हैं. जिले के करौली, सपोटरा, मंडरायल एवं हिण्डौन उपखण्ड क्षेत्रों में लाल-गुलाबी रंग के इमारती पत्थर के भण्डार हैं. यह पत्थर भवन निर्माण के लिए देश भर में विख्यात है. यहां के पत्थर का उपयोग देश की नामचीन इमारतों में किया गया है, जिनमें दिल्ली का लाल किला, आगरा फतेहपुर के किले, देश का संसद भवन जैसे उदाहरण शामिल हैं.
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इसके साथ ही स्थानीय रियासत की ओर से निर्मित किले, महलों में लाल पत्थर का बड़े स्तर पर उपयोग किया गया है. गांवों में बने पुराने भवनों में भी दीवार निर्माण से लेकर छत-फर्श निर्माण में बड़े-बड़े कातलों का उपयोग आज भी इन्हें मजबूती प्रदान किए हुए हैं. जिला मुख्यालय पर सुखविलास गार्डन जो कि आज सर्किट हाउस के रूप में उपयोग लिया जा रहा है, ये सफेद व लाल पत्थर से निर्मित है. इस इमारत पर फल-पत्तियों, पक्षियों की आकृति तराशने का कार्य इतनी कारीगरी से किया है कि देखने वाले की नजरें ठहर जाएं. इसमें कहीं भी चूना या बजरी का उपयोग नहीं किया गया है. करौली से निकलने वाला लाल-गुलाबी रंग का पत्थर भवन निर्माण की सामग्री में लिया जाता रहा है. लेकिन अब गैंगसा यूनिटों में पॉलिशिंग कर इसे आकर्षक बनाया जा रहा है.
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यह है पत्थर की विशेषता- यहीं से खनन किए गए पत्थर पर दौसा जिले के सिकन्दरा-मानपुर क्षेत्रा में पत्थर तरासी का काम बड़े स्तर पर किया जाता है. जहां से आकर्षक मूर्तियों के निर्माण, पशु-पक्षियों की कला-कृतियां, जाली-झरोखों का निर्माण कर विदेशों तक में निर्यात होने लगा है. यह पत्थर न तो जल्दी ठंडा होता है और न ही गर्म, पानी पड़ने पर इसमें निखार आता है. इस पत्थर में नक्काशी का काम बहुत सुंदरता व आसानी से किया जा सकता है. साथ ही रूनी नहीं लगने के कारण यह लंबे समय तक चलने वाला बालुई पत्थर है, जिसकी उम्र सीमा लगभग हजारों वर्षों तक मानी जाती है.
एक चौथाई आबादी है खनन पर निर्भरः करौली की लगभग एक चौथाई आबादी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से खनन कार्य पर ही निर्भर है. यहां के मंडरायल क्षेत्र में अधिकतर लोग खनिज उत्पादन के कार्य में लगे हुए हैं. इमारती पत्थर के रूप में यहां हिण्डौन सबसे बड़ा केन्द्र है, वर्षों से हिण्डौन की गहरे लाल रंग की पट्टियां भवनों की छत निर्माण में प्रसिद्ध रही हैं. हिण्डौन उत्तर-पश्चिम रेलवे मार्ग पर स्थित होने के कारण यहां पत्थर तराशने की सैकड़ों इकाइयां कार्यरत हैं. जिन पर विभिन्न प्रकार के आकारों में पत्थर तराशने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में रेल व सड़क मार्ग के जरिए होता है.
करौली में पाए जाने वाले खनिज
सिलिका पत्थरः करौली एवं सपोटरा तहसीलों में सिलिका के पर्याप्त भण्डारण मौजूद हैं. इस पत्थर का उपयोग मुख्यतः कांच उद्योग में लिया जाता है. इसका कांच में 85 से 90 प्रतिशत और 10 से 15 प्रतिशत सेल्सवार व लाइम स्टोन काम में लिया जाता है. यहां सफेद एवं हल्का भूरा रंग का पत्थर पाया जाता है. जिससे कांच की चूड़ियां और कलाकृतियां बनाने के काम आता है. स्थानीय स्तर पर इसका उपयोग नहीं लिया जाता है, इसको खनन के बाद दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल राज्यों में भेजा जाता है.
34 खानों के पट्टे जारी- जिले में इसकी कुल 34 खानों के पट्टे खनिज विभाग की ओर से जारी किए गए हैं. जिनमें करीब 500 श्रमिकों को प्रतिदिन रोजगार मिलता है. जिले में सिलिका की रामापुर, अटलपुरा, रीछोटी, खिरखिड़ा, गैरई, धौरेटा, धौरेटी, काढई, गोठरा मिझौरा गांवों में खानें मौजूद हैं. सिलिका पत्थर को क्रेशर के माध्यम से बारीक पिसाई के बाद कांच फैक्ट्रियों में गलाया जाता है. जहां विभिन्न आकारों में ढाल कर इसको उपयोग में लिया जाता है. कोलाइडल सिलिका का उपयोग पोलिस में लिया जाता है. नेल पोलिस, बूट पोलिस में उपयोग के लिए इसे राज्य के विभिन्न शहरों में भेजा जाता है.
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सेण्ड स्टोनः जिले में मिलने वाले सेंड स्टोन को इमारती पत्थर भी कहा जाता है. यह मुख्यतः भवन निर्माण में उपयोग लिया जाता है. करौली में सेंड स्टोन करौली, सपोटरा, मण्डरायल एवं हिण्डौन क्षेत्र में पाया जाता है. सपाट पहाड़ियों में यह ब्लाकों के रूप में मिलता है. मण्डरायल क्षेत्र में कहीं-कहीं यह सफेद एवं गुलाबी रंग का पाया जाता है. बाकी स्थानों पर गहरे लाल रंग का पत्थर मिलता है. ब्लाकों को तोड़कर पत्थर को उपयोग के अनुसार आकार देकर निकाला जाता है. बडे़- बडे़ ब्लॉकों को मशीनों के जरिए निकालकर इसको गैंगसा यूनिटों तक पहुंचाया जाता है. जहां कटिंग एवं पॉलिसिंग का कार्य एवं कुशल कारीगरों द्वारा मूर्तियां निर्माण, विभिन्न आकृतियां, जाली-झरोखे निर्मित किए जाते हैं. जिले में खनिज विभाग की ओर से सेण्ड स्टोन के सैकडों खनिज पट्टे जारी किए हुए है. जिन पर लगभग 20 हजार श्रमिकों को प्रतिदिन का रोजगार उपलब्ध होता है.
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मैसेनरीज स्टोनः यह खनिज भवन निर्माण, चार दीवारी निर्माण में काम लेने के लिए छोटे-छोटे खण्डों के रूप में निकाला जाता है. इसकी खपत स्थानीय स्तर पर है, मैसेनरीज स्टोन को स्थानीय भाषा में खण्डा की खान कहते हैं. करौली जिले में यह खनिज मुख्यतः गहरे लाल एवं क्रीम कलर का पाया जाता है. इससे बनी हुई भवनों की दीवारें मजबूत होती हैं तथा इसके उपयोग से सीमेंट व चूने की खपत भी कम होती है. खनिज विभाग की ओर से जिले में मैसेनरीज स्टोन के 107 खनन पट्टे जारी किए हुए हैं. जिनमें करीब 1 हजार लोगों को रोजगार मिलता है.
घीया पत्थरः सफेद, हल्का हरा व भूरे रंग का पाए जाने वाला घीया पत्थर मुख्यतः सौन्दर्य प्रसाधनों में काम लिया जाता है. करौली जिले में नादौती एवं टोडाभीम तहसीलों में इसकी कई खानें हैं. इसे सोप स्टोन भी कहते हैं. इसका उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग के अलावा पेपर एवं रबर उद्योग में फीलर के रूप में लिया जाता है. करौली में इसकी खानें मोरा, घाट, धवान, धौलेटा, रैवाली, पाल व जीतकी गांवों में स्थित है. यह खनिज जिले में खनन के बाद मूल रूप में एवं क्रेसरों पर पिसाई के बाद राज्य के अन्य शहरों एवं प्रान्तों में भेजा जाता है. खासकर दिल्ली व हरियाणा राज्य में इसकी सप्लाई बडे़ स्तर पर की जाती है. जिले में खनिज विभाग की ओर से सोप स्टोन के 11 खनन पट्टे जारी किए हुए हैं जिनमें 100 के लगभग श्रमिकों को प्रतिदिन रोजगार मिलता है.
दो प्रकार के पाये जाते हैं क्लेः करौली में क्ले दो प्रकार का पाया जाता है. इसमें चाइना क्ले एवं सफेद क्ले शामिल है. इस खनिज का उपयोग सिरेमिक इन्डस्ट्रीज एवं पार्ट्स इन्डस्ट्रीज में लिया जाता है. जिनसे बर्तन, विद्युत रोधी उपकरण एवं खिलौने बनाए जाते हैं. जिले में चाइना क्ले व सफेद क्ले सपोटरा क्षेत्र में पाया जाता है. खनिज विभाग की ओर से 9 स्थानों पर इसके खनन पट्टे जारी किए हुए है. जिसके तहत नारौली डांग भोलूपुरा, पदमपुरा, बापोती, कावटीपुरा के क्षेत्रों मे खनन कार्य किया जाता है. इस खनन के कार्य में करीब 300 लोगों को प्रतिदिन रोजगार मिलता है.
हैण्डमील स्टोनः आदिकाल से आटा पीसने के लिए काम आने वाली हाथ चक्की के पाट कठोर व मजबूत पत्थर से बनाए जाते थे. यह पत्थर वजन में हल्का होता है. करौली जिले में मासलपुर क्षेत्र के ताली गांव के चक्की के पाट प्रसिद्ध हैं. गहरे गेरूए रंग का यह पत्थर अपनी मजबूती के लिए जाना जाता है. खनिज विभाग की ओर से मासलपुर क्षेत्र में इसके 5 खनन पट्टे जारी किए हुए हैं, जिनमें 50 लोगों को प्रत्यक्ष तथा 100 लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है. इसके अलावा करौली में वैरायटीज जैसे महत्वपूर्ण खनिज के भी भण्डार हैं.
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कोरोना संकट के बाद छायी आर्थिक तंगीः खनन का काम करने वाले ठेकेदारों और मजदूरों ने ईटीवी भारत को बातचीत में बताया कि बीते दो साल में कोरोना संकट के बाद इस धंधे में गिरावट आई है. पहले रोज पत्थरों के लिए कम्पनियों से ठेका मिलता था. लेकिन अब महीने 4-5 गाड़ियां ही निकल पाती हैं. पत्थर खनन से जुडे़ ठेकेदारों ने बताया कि हालत इन दिनों बदहाल हैं. पत्थर पर लगने वाले टैक्स के साथ व्यापार की मांग कम होने से इस कारोबार पर असर पड़ा है.