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CAZRI वैज्ञानिकों ने किसानों को बीज गुणवत्ता की दी जानकारी...जानें और क्या रहा विशेष

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Published : Jun 11, 2020, 5:49 PM IST

जोधपुर में गुरुवार को काजरी वैज्ञानिकों की ओर से किसनों को बीज की गुणवत्ता के बारे में जानकारी दी गई. इस दौरान उन्होंने किसानों को यह भी बताया कि कम बारिश में कैसे अच्छी पैदावार की जा सकती है, साथ ही अच्छी पैदावार के लिए कैसे बुवाई की जा सकती है.

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किसानों को दी गई बीज गुणवत्ता की जानकारी

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में गुरुवार को जोधपुर संभाग से आए किसानों को वैज्ञानिकों की ओर से मूंग की फसल के बारे में जानकारी दी गई. साथ ही किसानों को मूंग की फसल की कम बारिश में कैसे पैदावार की जाती है और अधिक मात्रा में बारिश हो जाने पर किस किस्म की बीज इस्तेमाल में लाई जाती है. इसके बारे में भी जानकारी दी गई.

किसानों को दी गई बीज गुणवत्ता की जानकारी

कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि आईपीएम-205 बीज से कम दिनों में फसल पक कर तैयार हो जाती है. जिसमें किसान भरपूर मात्रा में पैदावार कर सकता है. उन्होंने बताया कि जोधपुर संभाग में मूंग की फसल का एरिया दिनों दिन बढ़ रहा है. ऐसे में किसानों को बीज नहीं मिल रहा है. जिस एरिया में पानी की कमी है, उस एरिया में कम बारिश में भी किसान कम समय में अच्छी पैदावार का फायदा उठा सकते हैं.

साथ ही कम बारिश में मूंग की बीज की नई वैरायटी जो एम-421 है, इसके अलावा आईपीएम-2.5 जो विराट के नाम से जाना जाता है, किसान कम समय में अच्छी और भरपूर मात्रा में पैदावार करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं. आपको बता दें कि राजस्थान में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मूंग एक महत्वपूर्ण फसल है. इसमें लगभग 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है. साथ ही राजस्थान में इसकी खेती 7.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है. जिससे लगभग 2.34 लाख टन उत्पादन होता है.

वैज्ञानिकों ने बताया कि मूंग की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है. साथ ही बुवाई के समय का फसल की उपज पर बहुत प्रभाव पड़ता है. मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए. उन्होंने बताया कि बीज स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता वाला होना चाहिए और उपचारित बीज ही बुवाई के काम में लेना चाहिए. साथ ही कहा कि बीज को बोने से पहले फफूंदनाशी या कैप्टान (2.5 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से) उपचारित करना चाहिए, मूंग की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि कतारों के बीच की दूरी 45 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. उचित रहती है.

वैज्ञानिकों ने बताया कि आरएमजी-62, इसकी फसल 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं. इसकी मुख्य विशेषता यह है कि कीट के प्रति रोधक फलिया एक साथ पकती हैं. वहीं आर एनजी-268, इसकी फसल 60 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इसकी मुख्य विशेषताएं है कि यह सूखी के प्रति सहनशील रोग एवं कीट का कम प्रकोप बना फलिया एक साथ जाती हैं. जीएम- 4, यह फसल 60 दिन में तैयार हो जाती है. इसका मुख्य कारण है कि फलिया एक साथ पकती हैं और दाने हरे रंग के और बड़े आकार के होते हैं.

पढ़ें- कांग्रेस विधायकों की शिव विलास रिसोर्ट में बैठक, राज्यसभा चुनाव की रणनीति को लेकर हुई चर्चा

इस दौरान घंटियाला, राजवा, पोपावास, पालड़ी, भोपालगढ़, बिरामी गांवों से आये किसानों ने वैज्ञानिकों की ओर से मूंग की नई बीज की तकनीकी के बारे में जानकारी ली. साथ ही इस मौके पर सीताराम, मोतीराम बेनीवाल, भागीरथ चौधरी, ओम गिरी सहित किसान गण मौजूद रहे.

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में गुरुवार को जोधपुर संभाग से आए किसानों को वैज्ञानिकों की ओर से मूंग की फसल के बारे में जानकारी दी गई. साथ ही किसानों को मूंग की फसल की कम बारिश में कैसे पैदावार की जाती है और अधिक मात्रा में बारिश हो जाने पर किस किस्म की बीज इस्तेमाल में लाई जाती है. इसके बारे में भी जानकारी दी गई.

किसानों को दी गई बीज गुणवत्ता की जानकारी

कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि आईपीएम-205 बीज से कम दिनों में फसल पक कर तैयार हो जाती है. जिसमें किसान भरपूर मात्रा में पैदावार कर सकता है. उन्होंने बताया कि जोधपुर संभाग में मूंग की फसल का एरिया दिनों दिन बढ़ रहा है. ऐसे में किसानों को बीज नहीं मिल रहा है. जिस एरिया में पानी की कमी है, उस एरिया में कम बारिश में भी किसान कम समय में अच्छी पैदावार का फायदा उठा सकते हैं.

साथ ही कम बारिश में मूंग की बीज की नई वैरायटी जो एम-421 है, इसके अलावा आईपीएम-2.5 जो विराट के नाम से जाना जाता है, किसान कम समय में अच्छी और भरपूर मात्रा में पैदावार करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं. आपको बता दें कि राजस्थान में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मूंग एक महत्वपूर्ण फसल है. इसमें लगभग 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है. साथ ही राजस्थान में इसकी खेती 7.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है. जिससे लगभग 2.34 लाख टन उत्पादन होता है.

वैज्ञानिकों ने बताया कि मूंग की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है. साथ ही बुवाई के समय का फसल की उपज पर बहुत प्रभाव पड़ता है. मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए. उन्होंने बताया कि बीज स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता वाला होना चाहिए और उपचारित बीज ही बुवाई के काम में लेना चाहिए. साथ ही कहा कि बीज को बोने से पहले फफूंदनाशी या कैप्टान (2.5 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से) उपचारित करना चाहिए, मूंग की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि कतारों के बीच की दूरी 45 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. उचित रहती है.

वैज्ञानिकों ने बताया कि आरएमजी-62, इसकी फसल 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं. इसकी मुख्य विशेषता यह है कि कीट के प्रति रोधक फलिया एक साथ पकती हैं. वहीं आर एनजी-268, इसकी फसल 60 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इसकी मुख्य विशेषताएं है कि यह सूखी के प्रति सहनशील रोग एवं कीट का कम प्रकोप बना फलिया एक साथ जाती हैं. जीएम- 4, यह फसल 60 दिन में तैयार हो जाती है. इसका मुख्य कारण है कि फलिया एक साथ पकती हैं और दाने हरे रंग के और बड़े आकार के होते हैं.

पढ़ें- कांग्रेस विधायकों की शिव विलास रिसोर्ट में बैठक, राज्यसभा चुनाव की रणनीति को लेकर हुई चर्चा

इस दौरान घंटियाला, राजवा, पोपावास, पालड़ी, भोपालगढ़, बिरामी गांवों से आये किसानों ने वैज्ञानिकों की ओर से मूंग की नई बीज की तकनीकी के बारे में जानकारी ली. साथ ही इस मौके पर सीताराम, मोतीराम बेनीवाल, भागीरथ चौधरी, ओम गिरी सहित किसान गण मौजूद रहे.

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