जोधपुर. जिले में कांगों बुखार के रोगी की पुष्टि के बाद विभाग की टीमों ने अब्दुल कलाम नगर में सर्वे कर कई पशुओं से पिस्सू के नमूने लिए हैं. इसके अलावा कई जगह छिड़काव भी किया है. कांगों बुखार के लक्षण डेंगू की तरह ही होते हैं जिसके चलते आसानी से इसकी पहचान नहीं हो पाती है. वर्तमान में राज्य में कहीं पर भी पुणे की वायरोलॉजी लैब जैसी लैब नहीं है. जो इसकी जांच कर सके. इसी कारण से रविवार को स्वास्थ्य विभाग की टीम ने अहमदाबाद में उपचारत इकबाल के बच्चों को घर से अस्पताल भेजा तो और उनके नमूने भी पुणे की लैब में भेजे हैं.
जहां से अभी अधिकारिक रिपोर्ट आना बाकी है. लेकिन माना जा रहा है कि दोनों बच्चों को भी कांगों फिवर के शुरूआती लक्षण थे. इसके चलते उन्हें भी पिता की तरह अहमदाबाद में गहन चिकित्सा में रखा गया है. बच्चों के अलावा इकबाल के तबेले के जानवरों के आस पास से पिस्सू भी एकत्र कर वायरोलॉजी लैब भेजे गए हैं.
कांगों बुखार कितना भयावह होता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी चपेट में आने वाले लोगों में 70 फीसदी की मौत हो जाती है. कांगों फिवर में भी डेंगू की तरह ही तेज बुखार आता है, शरीर में तेज दर्द रहता है. इसके लक्षण डेंगू जैसे होते है ऐसे में इसे पहचानना संभव नहीं होता है. बुखार नहीं टूटने और मरीज की पृष्टभूमि जानने के बाद ही इसके कयास लगाए जाते हैं. इकबाल का जोधपुर में पांच दिन उपचार हुआ लेकिन बाद में उसे अहमदाबाद भेजा गया था.
यूं फैलता है सीसीएचएफ
डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के पीएसएम विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुमन भंसाली के अनुसार यह मवेशियों के आस पास रहने वाले लोगों में ही सामान्य तौर पर पाया जाता है. खास बात यह है कि जो पिस्सू मनुष्य से संक्रमित होता है उसका असर मवेशियों पर नहीं होता है लेकिन मवेशियों के संपर्क में आने के बाद ही पिस्सू का काटना घातक होता है. तेज संक्रमण होने पर लाल निशान से रक्त्स्त्राव होने लगता है. इस बीमारी में 70 फीसदी लोगों की मृत्यु हो जाती है.
कांगो बुखार से कैसे करे बचाव
मवेशियों के आस पास रहने वाले लोगों को खास तौर से पिस्सू का ध्यान रखना चाहिए. पिस्सू शरीर के संपर्क में नहीं आए इसके प्रयास करते रहना चाहिए. शरीर कपडे़ से ढका रहे. इसके अलावा संक्रमित पशुओं से होने वाले स्त्राव से दूरी बनानी चाहिए. बुखार के लक्षण प्रतीत होने पर शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए.