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Rajasthan Highcourt : विवाहित पुत्री से ज्यादा विधवा पुत्रवधू अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार, कोर्ट ने दिए ये आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट ने विवाहित पुत्री से ज्यादा विधवा पुत्रवधू को अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार मानते हुए 4 हफ्ते के भीतर नियुक्ति देने के आदेश दिए हैं.

Rajasthan Highcourt
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Published : Aug 1, 2023, 9:00 PM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से अनुकम्पा नियुक्ति के मामले में एक अहम आदेश पारित किया गया है. कोर्ट ने कहा कि जहां दोनों पक्षों की ओर से अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की जाती है, तो ऐसी स्थिती में अनुकम्पा नियुक्ति नियम 1996 की मंशा को देखना आवश्यक है. साथ ही नियमों की मूल मंशा के अनुसार और प्रकरण के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार विधवा पुत्र वधू को 4 सप्ताह में नियुक्ति देने के आदेश दिए हैं. जस्टिस विनीत कुमार माथुर की एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता निर्जरा सिंघवी की ओर याचिका दायर कर विधवा पुत्रवधू होने के आधार पर अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की गई.

सास-पति का कोविड से देहांत : याचिकाकर्ता के अधिवक्ता खेतसिंह राजपुरोहित ने बताया कि राज्य सरकार के शिक्षा सचिवालय की ओर से याची को यह कहते हुए अनुकम्पा नियुक्ति से इनकार कर दिया कि नियम 2 ग के अनुसार विधवा पुत्रवधू आश्रित की श्रेणी में नहीं आती है. याची की सास संतोष सिंघवी शिक्षा विभाग में वरिष्ठ शिक्षक के पद पर सेवारत रहते हुए 1 मई 2021 को कोविड से देहान्त हो गया. उस समय याची के पति विनित सिंघवी का भी दिनांक 3 मई 2021 को कोविड से देहान्त हो गया. सास और पति का देहान्त होने से उसकी दो जुड़वा पुत्रियों और स्वयं का भरण पोषण का दायित्व आ गया.

पढ़ें. Rajasthan High Court: आदेश की पालना करो, वरना सजा सुनने के लिए हाजिर हो आयुक्त और सीईओ

ससुर के बाद दो बच्चियों की जिम्मेदारी : याची ने कहा कि इसी बीच उसके सुसर का भी निधन हो गया. राज्य सरकार ने उसकी अनुकम्पा नियुक्ति के आवेदन को गलत निर्णय करते हुए खारिज कर दिया. याची ने बताया कि इसी अवधि में राज्य सरकार की अधिसूचना दिनांक 28 अक्टूबर 2021 के तहत विवाहित पुत्री को भी अनुकम्पा नियुक्ति का अधिकार भी प्राप्त हो गया. याची ने बताया कि उसकी सास की विवाहित पुत्री ने भी अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन कर दिया. इन परिस्थितियों में उचित अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार विधवा पुत्रवधू होगी, क्योकि विवाहित पुत्री प्रथमत: अपने पति पर आश्रित होती है और वह माता-पिता पर आश्रित नहीं मानी जा सकती है. जबकि विधवा पुत्रवधू अपनी सास के साथ रहते हुए पूर्णतयः आश्रित थी.

कोर्ट ने सभी तथ्यों को देखते हुए कहा कि पुत्री अपने पति पर आश्रित है, जबकि विधवा पुत्रवधू अपने पति, सास और सुसर के देहान्त होने के कारण न केवल अभावग्रस्त है बल्कि अधिक व्यथित है. कोर्ट ने पूर्व के निर्णयों का हवाला देते हुए यह अभिनिर्धारित किया कि इन परिस्थितियों में विवाहित पुत्री की बजाय विधवा पुत्रवूध को अनुकम्पा नियुक्ति की अधिक आवश्यकता है. कोर्ट ने याची की याचिका को स्वीकार करते हुए शिक्षा विभाग की ओर से जारी अस्वीकृति पत्र को निरस्त करते हुए याची को चार सप्ताह के भीतर समुचित पद पर अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान करने के आदेश दिए हैं.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से अनुकम्पा नियुक्ति के मामले में एक अहम आदेश पारित किया गया है. कोर्ट ने कहा कि जहां दोनों पक्षों की ओर से अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की जाती है, तो ऐसी स्थिती में अनुकम्पा नियुक्ति नियम 1996 की मंशा को देखना आवश्यक है. साथ ही नियमों की मूल मंशा के अनुसार और प्रकरण के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार विधवा पुत्र वधू को 4 सप्ताह में नियुक्ति देने के आदेश दिए हैं. जस्टिस विनीत कुमार माथुर की एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता निर्जरा सिंघवी की ओर याचिका दायर कर विधवा पुत्रवधू होने के आधार पर अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की गई.

सास-पति का कोविड से देहांत : याचिकाकर्ता के अधिवक्ता खेतसिंह राजपुरोहित ने बताया कि राज्य सरकार के शिक्षा सचिवालय की ओर से याची को यह कहते हुए अनुकम्पा नियुक्ति से इनकार कर दिया कि नियम 2 ग के अनुसार विधवा पुत्रवधू आश्रित की श्रेणी में नहीं आती है. याची की सास संतोष सिंघवी शिक्षा विभाग में वरिष्ठ शिक्षक के पद पर सेवारत रहते हुए 1 मई 2021 को कोविड से देहान्त हो गया. उस समय याची के पति विनित सिंघवी का भी दिनांक 3 मई 2021 को कोविड से देहान्त हो गया. सास और पति का देहान्त होने से उसकी दो जुड़वा पुत्रियों और स्वयं का भरण पोषण का दायित्व आ गया.

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ससुर के बाद दो बच्चियों की जिम्मेदारी : याची ने कहा कि इसी बीच उसके सुसर का भी निधन हो गया. राज्य सरकार ने उसकी अनुकम्पा नियुक्ति के आवेदन को गलत निर्णय करते हुए खारिज कर दिया. याची ने बताया कि इसी अवधि में राज्य सरकार की अधिसूचना दिनांक 28 अक्टूबर 2021 के तहत विवाहित पुत्री को भी अनुकम्पा नियुक्ति का अधिकार भी प्राप्त हो गया. याची ने बताया कि उसकी सास की विवाहित पुत्री ने भी अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन कर दिया. इन परिस्थितियों में उचित अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार विधवा पुत्रवधू होगी, क्योकि विवाहित पुत्री प्रथमत: अपने पति पर आश्रित होती है और वह माता-पिता पर आश्रित नहीं मानी जा सकती है. जबकि विधवा पुत्रवधू अपनी सास के साथ रहते हुए पूर्णतयः आश्रित थी.

कोर्ट ने सभी तथ्यों को देखते हुए कहा कि पुत्री अपने पति पर आश्रित है, जबकि विधवा पुत्रवधू अपने पति, सास और सुसर के देहान्त होने के कारण न केवल अभावग्रस्त है बल्कि अधिक व्यथित है. कोर्ट ने पूर्व के निर्णयों का हवाला देते हुए यह अभिनिर्धारित किया कि इन परिस्थितियों में विवाहित पुत्री की बजाय विधवा पुत्रवूध को अनुकम्पा नियुक्ति की अधिक आवश्यकता है. कोर्ट ने याची की याचिका को स्वीकार करते हुए शिक्षा विभाग की ओर से जारी अस्वीकृति पत्र को निरस्त करते हुए याची को चार सप्ताह के भीतर समुचित पद पर अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान करने के आदेश दिए हैं.

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