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अनजान अपराधी होने पर पुलिस सुनिश्चत करे पहचान परेड-हाईकोर्ट - RAJASTHAN HIGH COURT

राजस्थान हाईकोर्ट ने डीजीपी को कहा है कि अनजान अपराधी होने पर पुलिस पहचान परेड सुनिश्चित करे.

IDENTIFICATION PARADE,  HIGH COURT ACQUITTED THE ACCUSED
राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 6, 2025, 10:27 PM IST

जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने दुष्कर्म से जुडे़ मामले में आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए कहा है कि कई बार जांच एजेंसी आमजन को शांत करने के लिए निर्दोष व्यक्ति को फंसाकर शर्मनाक स्थिति से बचती हैं. प्रकरण में भी पुलिस वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में विफल रही है, यदि पुलिस ने आरोपियों की पहचान परेड कराई होती तो स्थिति अलग हो सकती थी. ऐसे में जांच एजेंसी से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे मामलों में पहचान परेड कराए. इसके साथ ही अदालत ने डीजीपी और गृह सचिव को कहा है कि घटना से जुड़े अपराधी पीड़िता के लिए अनजान होने पर उसकी पहचान परेड सुनिश्चित कराई जाए. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश मदन व दो अन्य की ओर से दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने कहा कि पहचान परेड अपराध जांच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें लापरवाही होने पर निर्दोष व्यक्ति को सजा मिलने या असली अपराधी के बच निकलने का खतरा रहता है.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रिनेश गुप्ता ने कहा कि मामले में प्रकरण की पीड़िता ने अपने बयानों में कहा है कि वह अपीलार्थियों को उनके नाम से नहीं जानती थी. परिजनों के कहने पर उसने नाम बताए थे. ऐसे में पुलिस को आरोपियों की पहचान परेड करानी चाहिए थी, लेकिन पुलिस ने पहचान परेड नहीं कराई. ऐसे में निचली अदालत ने उन्हें गलत तरीके से दंडित किया है, इसलिए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर उन्हें बरी किया जाए.

पढ़ेंः नाबालिग से कुकर्म मामले में जज जितेंद्र गुलिया समेत तीन व्यक्ति दोषमुक्त, साक्ष्यों के अभाव में कोर्ट ने किया बरी

मामले के अनुसार पीड़िता ने 23 मई 1989 को चाकसू थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इसमें कहा था कि उसका पति नित्यकर्म के लिए गया था. इस दौरान तीन लोगों ने आकर उसके साथ दुष्कर्म किया. मामले में आरोप पत्र पेश होने के बाद निचली अदालत ने अपीलार्थियों को दस साल की सजा और जुर्माने से दंडित किया था. अदालत के इस आदेश को हाइकोर्ट में चुनौती दी गई थी.

जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने दुष्कर्म से जुडे़ मामले में आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए कहा है कि कई बार जांच एजेंसी आमजन को शांत करने के लिए निर्दोष व्यक्ति को फंसाकर शर्मनाक स्थिति से बचती हैं. प्रकरण में भी पुलिस वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में विफल रही है, यदि पुलिस ने आरोपियों की पहचान परेड कराई होती तो स्थिति अलग हो सकती थी. ऐसे में जांच एजेंसी से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे मामलों में पहचान परेड कराए. इसके साथ ही अदालत ने डीजीपी और गृह सचिव को कहा है कि घटना से जुड़े अपराधी पीड़िता के लिए अनजान होने पर उसकी पहचान परेड सुनिश्चित कराई जाए. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश मदन व दो अन्य की ओर से दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने कहा कि पहचान परेड अपराध जांच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें लापरवाही होने पर निर्दोष व्यक्ति को सजा मिलने या असली अपराधी के बच निकलने का खतरा रहता है.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रिनेश गुप्ता ने कहा कि मामले में प्रकरण की पीड़िता ने अपने बयानों में कहा है कि वह अपीलार्थियों को उनके नाम से नहीं जानती थी. परिजनों के कहने पर उसने नाम बताए थे. ऐसे में पुलिस को आरोपियों की पहचान परेड करानी चाहिए थी, लेकिन पुलिस ने पहचान परेड नहीं कराई. ऐसे में निचली अदालत ने उन्हें गलत तरीके से दंडित किया है, इसलिए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर उन्हें बरी किया जाए.

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मामले के अनुसार पीड़िता ने 23 मई 1989 को चाकसू थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इसमें कहा था कि उसका पति नित्यकर्म के लिए गया था. इस दौरान तीन लोगों ने आकर उसके साथ दुष्कर्म किया. मामले में आरोप पत्र पेश होने के बाद निचली अदालत ने अपीलार्थियों को दस साल की सजा और जुर्माने से दंडित किया था. अदालत के इस आदेश को हाइकोर्ट में चुनौती दी गई थी.

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