जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश विजय बिश्नोई ने कहा कि भारतीय संविधान और भारतीय विधि देश के प्राचीन न्याय सिद्धांतों से प्रेरित हैं. उन्होंने भारतीय संस्कृति एवं इतिहास को समृद्ध बताते हुए वर्तमान न्यायिक व्यवस्था पर इसका गहरा प्रभाव बताया. जस्टिस बिश्नोई रविवार को जोधपुर में आयोजित अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की एक दिवसीय प्रांत कार्यशाला के अंतिम सत्र में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निर्दिष्ट समानता का अधिकार, अनुच्छेद 21 में वर्णित व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार और अनुच्छेद 51 में निर्दिष्ट मूलभूत कर्त्तव्य भी भारत के सांस्कृतिक दर्शन से ही निकले हैं. उन्होंने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से प्राचीन न्याय सिद्धांत और वर्तमान न्यायिक व्यवस्था में समानता बताई.
न्याय व्यवस्था में क्रमिक विस्तार को समझायाः जस्टिस बिश्नोई ने कहा कि भारतीय जीवन दर्शन से निकले न्यायिक सिद्धांत वर्तमान न्याय व्यवस्था में सम्मिलित हैं. उन्होंने वैदिक काल से अब तक न्याय व्यवस्था में हुए क्रमिक विकास को विस्तार से समझाया. इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक योगेन्द्र कुमार ने राष्ट्र को सर्वोपरि बताते हुए अधिवक्ताओं को राष्ट्रनिर्माण में सहभागी बनने का संकल्प दिलाया.
उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में अधिवक्ता को विशेष वर्ग के रूप में देखा जाता है और समाज उनसे अपेक्षा भी रखता है. उन्होंने हर व्यक्ति तक न्याय की सहज-सुगम पहुंच बनाने के लिए भी अधिवक्ताओं को आगे आने का आह्वान किया. बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के पूर्व अध्यक्ष एवं परिषद की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य राजेश पंवार ने अधिवक्ता परिषद की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी. इस दौरान अधिवक्ता परिषद् की प्रांत कार्यकारिणी एवं महानगर कार्यकारिणी के पदाधिकारी, हाईकोर्ट में डिप्टी सोलिसीटर जनरल मुकेश राजपुरोहित, एबीवीपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हेमन्त घोष, बार काउंसिल सदस्य बलजिन्दर सिंह संधू आदि मौजूद थे.
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21 जिलों के वकील जुटेः परिषद का अभ्यास वर्ग तीन सत्रों में सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक चला. इसमें बीकानेर, श्रीगंगानगर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर व सिरोही सहित 21 जिलों के अधिवक्ता सम्मिलित हुए. कार्यक्रम के प्रारंभिक सत्र में अधिवक्ता परिषद की संगठनात्मक रचना एवं दूसरे सत्र में जिलों की कार्ययोजना पर विस्तार से चर्चा की गई.