जोधपुर. पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े मातृ-शिशु स्वास्थ्य केंद्र उम्मेद अस्पताल अपनी स्थापना के 9वें दशक में है. इसकी स्थापना 31 अक्टूबर, 1938 को हुई थी और इस साल अस्पताल के 85 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं. उपलब्ध 30 सालों के डेटा की मानें तो यहां आठ लाख से ज्यादा बच्चों का जन्म हो हुआ है. वहीं, इससे पुराने डेटा अस्पताल के पास नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि 85 साल में यहां करीब 10 लाख से अधिक बच्चों का जन्म हुआ है. खैर, किसी अस्पताल का जन्मदिन मनाने का यह पहला मौका होगा, जिसके लिए वृहद स्तर पर काम हो रहा है. साथ ही अस्पताल प्रबंध इसके लिए यहां जन्म लेने वालों को इस उत्सव से जोड़ने की कवायद में जुटा है.
जानें क्या है जन्मोत्सव की तैयारी - अस्पताल के जन्मोत्सव के तहत 22 से 28 सितंबर तक कार्यक्रम का आयोजन होगा. सोशल मीडिया के माध्यम से यहां जन्म लेने वालों को इस उत्सव में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. ताकि वो अपने जन्म स्थान का जन्मदिन मना सके. इसके साथ ही उनसे पुरानी फोटो या फिर अन्य जानकारी उपलब्ध करवाने का भी आग्रह किया जा रहा है. अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अफजल हाकिम ने कहा कि किसी व्यक्ति को अपने जन्म स्थान से वापस जुड़ना काफी सकारात्मक रहेगा. इसके लिए हम प्रयास भी कर रहे हैं. इस खास आयोजन में सात दिनों तक कई तरह की गतिविधियां होगी. इसके अलावा कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी आमंत्रित किया जाएगा.
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100 प्रसव प्रतिदिन होते रहे हैं - उम्मेद अस्पताल पूरे पश्चिमी राजस्थान में विश्वास का प्रतीक है. यहां आज भी पूरे संभाग व नागौर जिले से कॉम्पिलेकेटेड डिलीवरी के लिए गर्भवतियों को रेफर किया जाता है. वर्तमान में प्रतिदिन औसतन 70 प्रसव यहां हो रहे हैं. कुछ समय पहले तक यह आंकडा प्रतिदिन सौ का था. इससे यहां के लेबररूम के दबाव का सहज अनुमान लगाया जा सकता है. एक एक पलंग पर दो दो प्रसूताओं के रहने की परेशानी पर भी यहां के अनुभवी डॉक्टर्स की सेवाएं लेने के लिए लोग यहां आते हैं. अस्पताल का एक भाग अब एमडीएम शिफ्ट कर यहां का दबाव कम किया गया है.
ये है इस अस्पताल के निर्माण के पीछे की कहानी - महाराजा उम्मेद सिंह ने अपने शासन में जोधपुर में आमजन के लिए कई अच्छे काम किए. 1929 में उन्होंने आमजन के लिए विंडम अस्पताल की स्थापना की, जिसे अब महात्मा गांधी अस्पताल के नाम से जाना जाता है. यह अस्पताल शुरू हुआ तो उनकी पत्नी ने कहा कि आपको जनाना के लिए भी अस्पताल बनाना चाहिए. उनकी बात मानकर उन्होंने उम्मेद अस्पताल का निर्माण करवाने का एलान किया. 1936 में उन्होंने अपने हाथों से इसकी नींव रखी और 1938 में अस्पताल शुरू हुआ. तब इसकी लागत करीब 12 लाख रुपए आई थी. इसमें 27 हजार रुपए का सहयोग खींचन के सेठों दिया था. उनके नाम की पट्टिका महाराजा ने लगवाई थी और अस्पताल का नाम महाराज के नाम पर रख गया.
विदेशी तर्ज पर बना अस्पताल - महाराज उम्मेद सिंह ने अपने विशेष आर्किटेक्ट से अस्पताल का नक्शा बनवाया था और इमारत स्टेट ऑफ आर्ट बने इसके निर्देश दिए गए. विदेशों में बनने वाली इमारत की तरह बाहर का लुक दिया गया. इसके लिए जोधपुर के छितर के पत्थर का उपयोग किया गया. अस्पताल में 1938 में ही महिलाओं के लिए निजी कॉटेज वार्ड की सुविधाएं मुहैया कराई गई. इसके अलावा लिफ्ट भी लगाई. वार्डों की छतों की उंचाई इतनी रखी गई कि कम से कम गर्मी का अहसास हो.