जोधपुर. पिछले चार साल से संजीवनी के निवेशक संजीवनी पीड़ित संध के नाम से रजिस्टर्ड संस्था बनाकर संघर्ष कर रहे हैं. उनकी ओर से हाईकोर्ट में दो याचिकाएं लगाई गईं, जिसमें एक का फैसला भी हो गया. जिसके तहत लिक्विडेटर नियुक्ति किया गया है. इस बीच संजीवनी के कुछ निवेशकों द्वारा एक समिति बनाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जांच सीबीआई से करवाने की मांग की गई है. जिसको लेकर पीड़ित संघ ने गहरी आपत्ती जताई है.
संघ के अध्यक्ष का कहना है कि यह अब तक की कार्रवाई व जांच को भ्रमित करने का प्रयास है. मंत्री-नेताओं को बचाने के लिए इस तरह की मांग की जा रही है. क्योंकि सबको पता है कि सीबीआई व ईडी केंद्र के अधीन हैं. अगर वहां जांच गई तो वो चाहें जैसे कर सकते हैं. संजीवनी पीड़ित संध के अध्यक्ष शांतिस्वरूप वर्मा ने बताया कि जो याचिका दायर की गई है, उसके लिए मेन्यूप्लेशन किया गया है. उसमें गुजरात सरकार द्वारा मामले की जांच के लिए सीबीआई को अनुशंषा करने का हवाला दिया गया है.
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संजीवनी में गुजरात के निवेशकों द्वारा सिर्फ 12 करोड़ रुपए निवेश किए गए हैं, जिसको लेकर गुजरात में तीन एफआईआर 20 फरवरी को सानद, निलम बाग व गांधीनगर सेक्टर 21 थाने में दर्ज हुई थीं. जिनको लेकर 4 मार्च को ही गुजरात सरकार ने इनकी जांच के लिए सीबीआई को सिफारिश कर दी. जिसके आधार पर समिति की ओर से 24 को मार्च को याचिका दायर कर दी गई.
समिति अभी कहीं पर भी रजिस्टर्ड नहीं है. समिति का पता जोधपुर का बताया गया है, जबकि अध्यक्ष ने खुद को दिल्ली में रहना बताया है. इससे साफ जाहिर है कि किसी को फायदा पहुंचाने के लिए यह समिति बनाकर राजस्थान में चल रही जांच को बाधित करने का प्रयास है. हमारा संघ भी इसको लेकर विधिक राय ले रहा है, क्योंकि राजस्थान में एसओजी की जांच लगभग पूरी हो चुकी है. अब 18 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. दो चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है.
सरकार ने आरोपी बताया, कोर्ट ने लगाई गिरफ्तारी पर रोक : मुख्यमंत्री अशोक गहलेात केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को इस मामले में आरोपी बता चुके हैं. यहां तक कहा कि आरोप प्रमाणित है. हाल ही में 13 अप्रैल को हुई हाईकोर्ट में शेखावत की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने शेखावत की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. जबकि उस दिन एसओजी की रिपोर्ट पेश होनी थी, जिसमें शेखावत पर आरोप बताए गए थे. लेकिन सरकार के वकीलों में सामंजस्य के अभाव में रिपोर्ट पेश नहीं हुई, जिसका फायदा शेखावत को मिला. उसके बाद एसओजी की ओर से रिपोर्ट पेश करने का प्रयास किया गया, लेकिन कोर्ट ने उसे नियमित सुनवाई में ही सुनने का कहते हुए तुरंत सुनने से इनकार कर दिया.