जोधपुर. शहर में गुरुवार को भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा निकाली गई. इससे पहले बुधवार को नेत्रोत्सव कार्यक्रम मनाया गया था. अगले दिन भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की रथ यात्रा साधु-संतों और आत्मीय स्वजनों के सान्निध्य में शोभा यात्रा निकाली गई.
मधुबन के मधुकेश्वर महादेव मंदिर ट्रस्ट की ओर से आयोजित भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए रथ को फूल-पत्तियों से सजाया गया. बुधवार को भगवान जगन्नाथ 14 दिनों की रुग्णावस्था के बाद स्वस्थ होकर निज मंदिर में विराजमान हुए. इस मौके पर बुधवार को नेत्रोत्सव कार्यक्रम मनाया गया था. इसके अगले दिन रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. रथ यात्रा मधुबन के विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की रथ यात्रा साधु-संतों और आत्मीय स्वजनों के सान्निध्य में निकाली गई. इस दौरान रथ को रस्सी से खींचा गया. यात्रा के दौरान विभिन्न मोहल्ला विकास समिति एवं व्यापारिक संघ द्वारा स्वागत एवं पुष्प वर्षा की गई.
जगन्नाथ के साथ न राधा होती है न रुक्मिणी
श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा में भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी नहीं होतीं बल्कि बलराम और सुभद्रा होते हैं. इसके पीछे रोचक कहानी है. अन्तपुर से श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला की वार्ता श्रीकृष्ण और बलराम दोनों को सुनाई दी. उनके साथ ही सुभद्रा भी भाव विह्वल होने लगीं. तीनों की ही ऐसी अवस्था हो गई कि पूरे ध्यान से देखने पर भी किसी के भी हाथ-पैर आदि स्पष्ट नहीं दिखते थे. सुदर्शन चक्र विगलित हो गया. उसने लंबा सा आकार ग्रहण कर लिया. यह राधा के महाभाव का गौरवपूर्ण दृश्य था. अचानक नारद के आगमन से वे तीनों पूर्ववत हो गए. नारद ने ही श्री भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान आप चारों के जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्य जनों के दर्शन के लिए पृथ्वी पर हमेशा सुशोभित रहे. महाप्रभु ने तथास्तु कह दिया और तब से भगवान जगन्नाथ उस अवस्था में हमें नजर आते हैं.