जोधपुर. मारवाड़ का कुंभ कहे जाने वाली सात दिवसीय भोगीशैल परिक्रमा शुक्रवार शाम को शुरू हुई. पुरुषोत्तम मास में होने वाली इस परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु जोधपुर शहर के चारों ओर 115 किमी की यात्रा पूरी करेंगे. गाजे-बाजे और भगवा ध्वजों के साथ शुरू हुई परिक्रमा को देखने के लिए जगह-जगह लोगों की भीड़ उमड़ी. इस यात्रा में शामिल होने के लिए पूरे मारवाड़ सहित कई जगहों से श्रद्धालु आए हैं.
श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था : यात्रा के सात पड़ाव हैं. यह सातों स्थल पौराणिक महत्व के हैं, जहां ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी. हिंदू सेवा मंडल के सचिव विष्णु प्रजापति ने दावा किया कि यह भारत की पहली और पुरानी भोगीशैल परिक्रमा है. जोधपुर में सैंकडों वर्ष पुरानी यह परंपरा कायम है. परिक्रमा का आयोजन हिंदू सेवा मंडल के नेतृत्व में होता है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु जोधपुर पहुंच चुके हैं. इनके लिए भोजन सहित अन्य आवश्यक सुविधाएं जुटाई गई हैं. जिला प्रशासन ने भी चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग की टीमें लगाई हैं. परिक्रमा शुरू होने के दौरान जिला कलेक्टर हिमांशु गुप्ता भी मौजूद रहे. उन्होंने सभी सुरक्षा व्यवस्था का ध्यान रखने का आग्रह किया.
यह है पौराणिक महत्व : जोधपुर के मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के निदेशक और इतिहासविद रहे स्व. डॉ. महेंद्र सिंह नगर ने अपनी पुस्तक भोगीशैल महात्म्य और ऐतिहासिक परिक्रमा में बताया है कि जोधपुर के पर्वतों का हिमालय के तीर्थों के समान महत्त्व है. जोधपुर के चतुर्दिक पर्वत शैल जिसे भोगीशैल कहा गया है, प्रत्येक तीन साल बाद आने वाले अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) की पञ्चकोसी परिक्रमा का विधान है. पौराणिक महत्व में बताया गया है कि यह भोगीशैल पर्वत हिमालय राज के पुत्र हैं.
हर तीन साल रक होती है परिक्रमा : मनुष्य के कल्याणार्थ देवराज इन्द्र ने यहां इनकी स्थापना की थी. इस स्थापित पर्वत शैल में बड़े-बड़े तीर्थ विद्यमान हैं. वे सारे तीर्थ हिमालय में स्थापित तीर्थों के साक्षात् स्वरूप हैं, इसीलिए भारतीय संवत् परम्परा के अनुसार प्रत्येक तृतीय वर्ष में आने वाले अधिमास अर्थात् पुरुषोत्तम मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को यह परिक्रमा प्रारम्भ होती है.
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इस बार छह साल में आयोजन : अधिक मास हर तीन साल में आता है, लेकिन कोरोना के कारण अधिक मास में प्रतिकात्मक यात्रा हुई थी. ऐसे में इस बार परिक्रमा को लेकर लोगों के काफी उत्साह है. श्रद्धालुओं का कहना है कि परिक्रमा के लिए अच्छी व्यवस्थाएं की गई हैं. सरकार ने भी प्रशासन को पूरी व्यवस्थाएं करने के निर्देश दिए हैं. मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोरोणा ने भी व्यवस्था का जायजा लिया.
अगले दो दिन यहां से गुजरेगी यात्रा : 29 जुलाई को सुबह भाटिया चौराहा से रवाना होकर श्रद्धालु रिक्तिया भैरुजी, मसूरिया बाबा रामदेव मंदिर, पाल लिंक रोड, जूना खेड़ापति, सैन बगेची होते हुए चौपासनी स्थित श्याम मंदिर पहुंचेंगे. रात्रि विश्राम चौपासनी गांव में ही होगा. 30 जुलाई को चौपासनी से रवाना होकर हथकरघा भवन, दंताल माता, श्रीजी बैठक, कच्छवाह चौराहा से होते हुए पहाड़ी मार्ग से गुजरेगी. तत्पश्चात अरना-झरना, भदरेसिया, कदमकंडी होते हुए बड़ली भैरुजी पहुंचेगी और रात्रि विश्राम करेगी.