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जोधपुर : बंगाली समाज पर्यावरण के संरक्षण के लिए बनाता है मिट्टी की मूर्ती

रविवार से नवरात्र शुरू हो गए है, जिसके साथ ही जोधपुर में भी जगह-जगह पंडाल सजने लगे हैं. साथ ही मूर्तियों की स्थापना भी कर दी गई है. वहीं, शहर के सबसे पुराने दुर्गा मंदिर जहां बंगाली समाज की ओर से दुर्गाबाड़ी का संचालन किया जाता है. यहां आज भी मिट्टी की मूर्ति ही बनाई जाती है.

जोधपुर की खबर, बंगाली समाज, navratra
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Published : Sep 29, 2019, 7:20 PM IST

Updated : Sep 29, 2019, 10:14 PM IST

जोधपुर. जिले में नवरात्र स्थापना के साथ ही शहर में जगह-जगह गरबा पंडाल सजने लगे हैं और यहां मां दुर्गा की मूर्तियां भी स्थापित हो रही है. शहर में जगह-जगह मूर्तियां व्यक्ति भी नजर आती हैं, लेकिन ज्यादातर मूर्तियां मिट्टी कि नहीं होकर प्लास्टर ऑफ पेरिस की है. जबकि शहर के सबसे पुराने दुर्गा मंदिर जहां बंगाली समाज की ओर से दुर्गाबाड़ी का संचालन किया जाता है. यहां आज भी मिट्टी की मूर्ति ही बनाई जाती है.

बंगाली समाज की ओर से किया जाता है दुर्गाबाड़ी का संचालन

वहीं, कोलकाता से आने वाले इसके विशेष कारीगर मिट्टी की मूर्ति पर पानी के रंगों का उपयोग करते हैं जिससे कि जिस पानी में मूर्ति को प्रवाहित किया जाए तो वह खराब नहीं हो साथ ही मछलियों का जीवन संकट में नहीं आए. वहीं, बंगाली समाज शहर में कई जगह पर मां काली की मूर्तियां स्थापित करता है. जो पूरी तरह इको फ्रेंडली होती है. यह क्रम लंबे समय से चला आ रहा है. दुर्गाबाड़ी के भगवान दास ने बताया कि मिट्टी की मूर्ति पर्यावरण का संरक्षण करती है. इसलिए हम इनका उपयोग करते हैं.

पढ़ें- शारदीय नवरात्र के पहले दिन आमेर शिला माता मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब, लंबी कतारों में खड़े नजर आए भक्त

कोलकाता से आए कारीगर शंकर ने बताया कि वाटर कलर में कोई केमिकल नहीं होता है. हमारी बनाई गई मूर्ति पानी में जल्दी ही घुल जाती है और उसको नुकसान भी नहीं होता है. करीब 70 वर्ष पुरानी दुर्गाबाड़ी में भी मां काली की मूर्ति स्थापित की जाएगी, यहां बंगाली समाज इनकी पूजा करेगा. मूर्ति विसर्जन से पहले बंगाली समाज अपनी परंपरा के अनुसार यहां सिंदूर खेला करता है जिसमें बंगाली महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं.

जोधपुर. जिले में नवरात्र स्थापना के साथ ही शहर में जगह-जगह गरबा पंडाल सजने लगे हैं और यहां मां दुर्गा की मूर्तियां भी स्थापित हो रही है. शहर में जगह-जगह मूर्तियां व्यक्ति भी नजर आती हैं, लेकिन ज्यादातर मूर्तियां मिट्टी कि नहीं होकर प्लास्टर ऑफ पेरिस की है. जबकि शहर के सबसे पुराने दुर्गा मंदिर जहां बंगाली समाज की ओर से दुर्गाबाड़ी का संचालन किया जाता है. यहां आज भी मिट्टी की मूर्ति ही बनाई जाती है.

बंगाली समाज की ओर से किया जाता है दुर्गाबाड़ी का संचालन

वहीं, कोलकाता से आने वाले इसके विशेष कारीगर मिट्टी की मूर्ति पर पानी के रंगों का उपयोग करते हैं जिससे कि जिस पानी में मूर्ति को प्रवाहित किया जाए तो वह खराब नहीं हो साथ ही मछलियों का जीवन संकट में नहीं आए. वहीं, बंगाली समाज शहर में कई जगह पर मां काली की मूर्तियां स्थापित करता है. जो पूरी तरह इको फ्रेंडली होती है. यह क्रम लंबे समय से चला आ रहा है. दुर्गाबाड़ी के भगवान दास ने बताया कि मिट्टी की मूर्ति पर्यावरण का संरक्षण करती है. इसलिए हम इनका उपयोग करते हैं.

पढ़ें- शारदीय नवरात्र के पहले दिन आमेर शिला माता मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब, लंबी कतारों में खड़े नजर आए भक्त

कोलकाता से आए कारीगर शंकर ने बताया कि वाटर कलर में कोई केमिकल नहीं होता है. हमारी बनाई गई मूर्ति पानी में जल्दी ही घुल जाती है और उसको नुकसान भी नहीं होता है. करीब 70 वर्ष पुरानी दुर्गाबाड़ी में भी मां काली की मूर्ति स्थापित की जाएगी, यहां बंगाली समाज इनकी पूजा करेगा. मूर्ति विसर्जन से पहले बंगाली समाज अपनी परंपरा के अनुसार यहां सिंदूर खेला करता है जिसमें बंगाली महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं.

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Body:जोधपुर नवरात्र स्थापना के साथ ही शहर में जगह-जगह गरबा पांडाल सजने लगे हैं और यहां मां दुर्गा की मूर्तियां भी स्थापित हो रही है शहर में जगह-जगह मूर्तियां व्यक्ति भी नजर आती है लेकिन जाकर मूर्तियां मिट्टी कि नहीं होकर प्लास्टर ऑफ पेरिस की है जबकि शहर के सबसे पुराने दुर्गा मंदिर जहां बंगाली समाज द्वारा दुर्गाबाड़ी का संचालन किया जाता है वहां आज भी मिट्टी की मूर्ति ही बनाई जाती है कोलकाता से आने वाले इसके विशेष कारीगर मिट्टी की मूर्ति पर पानी के रंगों का उपयोग करते हैं जिससे कि जिस पानी में मूर्ति को प्रवाहित किया जाए वह खराब नहीं हो मछलियों का जीवन संकट में नहीं आए बंगाली समाज शहर में कई जगह पर मां काली की मूर्तियां स्थापित करता है जो पूरी तरह इको फ्रेंडली होती है यह क्रम लंबे समय से चला आ रहा है दुर्गा बाड़ी के भगवान दास ने बताया कि मिट्टी की मूर्ति पर्यावरण का संरक्षण करती है इसलिए हम इनका उपयोग करते हैं कोलकाता से आए कारीगर शंकर ने बताया कि वाटर कलर मैं कोई केमिकल नहीं होता है हमारी बनाई गई मूर्ति पानी में जल्दी ही भूल जाती है और उसका नुकसान भी नहीं होता है। करीब 70 वर्ष पुरानी दुर्गाबाड़ी में भी मां काली की मूर्ति स्थापित की जाएगी जहां बंगाली समाज इनकी पूजा करेगा मूर्ति विसर्जन से पहले बंगाली समाज अपनी परंपरा के अनुसार यहां सिंदूर खेला करता है जिसमें बंगाली महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती है।

बाईट भगवानदास, दुर्गाबाड़ी सदस्य
बाईट 2 शंकर, मूर्तिकार


Conclusion:
Last Updated : Sep 29, 2019, 10:14 PM IST
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