ETV Bharat / state

40 साल पहले मदेरणा गहलोत को जनता के बीच लेकर गए थे...आज दिव्या ले जा रही है वैभव को - वैभव गहलोत

राजस्थान में सभी पार्टियों के उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. वैभव गहलोत के चुनाव प्रचार में दिव्या मदेरणा उसी तरह उनके साथ नजर आ रही हैं, जिस तरह 40 साल पहले उनके दादा परसराम मदेरणा अशोक गहलोत के साथ थे.

वैभव गहलोत के समर्थन में जनसंपर्क कर रही दिव्या मदेरणा
author img

By

Published : Apr 19, 2019, 3:52 PM IST

Updated : Apr 19, 2019, 5:15 PM IST

जोधपुर. मारवाड़ की राजनीति में 1980 के दशक में एक नया दौर आया था. उसी दौरान में परसराम मदेरणा ने अशोक गहलोत को प्रदेश की राजनीति से रूबरू कराया था. लोकसभा चुनाव में जनता के सामने गहलोत को सामने लाकर मदेरणा ने कहा था कि यह युवा चेहरा है और दिल्ली में हमारी वकालत करेगा.

उसके बाद अशोक गहलोत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वो लगातार राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते चले गए. 5 बार सांसद बने और अब तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. कमोबेश चार दशक पुरानी तस्वीर वर्तमान के लोकसभा चुनाव में भी नजर आ रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि परसराम मदेरणा की जगह उनकी पौत्री दिव्या है और अशोक गहलोत की जगह उनके बेटे वैभव गहलोत हैं.

जोधपुर संसदीय क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्या मदेरणा अपने दादा के अंदाज में ही वैभव गहलोत को जनता से रूबरू करवा रही हैं और साथ में वो अपने दादा की चार दशक पुरानी बात भी दोहरा रही हैं. ग्रामीण क्षेत्र के दौरे पर निकले वैभव गहलोत परसराम मदेरणा के पैतृक गांव पहुंचे तो उनके साथ दिव्या मदेरणा भी थी. वो लगातार पूरे क्षेत्र में देवों के साथ सक्रिय हैं. दिव्या सभाओं में मारवाड़ी और हिंदी में तेज तर्रार भाषण देते हुए कहती हैं कि वो युवा चेहरा हैं, जो आने वाले 20 साल तक आपकी सेवा करेंगे. साथ ही कहती हैं कि जब परसराम मदेरणा ने भी अशोक गहलोत को इसी तरह आपके सामने पेश किया था और आज अशोक गहलोत 40 साल से आप की सेवा कर रहे हैं.

खास बात ये भी है कि वैभव गहलोत भी अपने भाषण में दोहराते हैं कि 'मैं भाग्यशाली हूं कि मदेरणा साहब ने जहां मेरे पिता को आपके सामने पेश किया था, आज उनकी पौत्री दिया मदेरणा मुझे आपके सामने लेकर आई हैं'. अब इसे राजनीतिक जरूरत कहें या जरूरत की राजनीति, क्योंकि दोनों ही स्थिति में सब जायज है.

जाहिर है, 1998 के चुनाव के दौरान परसराम मदेरणा को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था और यह माना जा रहा था कि प्रदेश में जाट मुख्यमंत्री बनने का सपना भी पूरा होगा. लेकिन अशोक गहलोत सीएम बन गए. इसके बाद मदेरणा और गहलोत के बीच दरार की बातें सामने आने लगी. हालांकि इसकी पुष्टि कभी नहीं हुई, लेकिन चर्चा हर दौर में बनी रही.

2009 के चुनाव में परसराम मदेरणा की जगह महिपाल मदेरणा विधानसभा पहुंचे और अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इससे एक बार लगा कि संबंधों में मधुरता आई है. लेकिन उसी समय भंवरी कांड ने एक बार भूचाल ला दिया और दूरियां बढ़ने की बातें फिर सामने आने लगी. साल 2014 में लीला मदेरणा को पार्टी ने टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गई.

वैभव गहलोत के समर्थन में जनसंपर्क कर रही दिव्या मदेरणा

2018 के विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत ने दिव्या मदेरणा को मैदान में उतारा और वह चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गई. इस दौरान भी तल्खी की बातें लगातार सामने आती रहीं, लेकिन वैभव गहलोत के नामांकन के दिन उनके साथ दिव्या मदेरणा ही निर्वाचन अधिकारी के सामने पहुंची तो राजनीति के जानकारों को एक बड़ा संदेश नजर आया. इसके बाद से लगातार दिव्या वैभव गहलोत के चुनाव प्रचार में सक्रिय हैं, जो ये दर्शा रहा है कि दो परिवारों की युवा पीढ़ियां मारवाड़ की राजनीति में आगे तक जाएगी.

जोधपुर. मारवाड़ की राजनीति में 1980 के दशक में एक नया दौर आया था. उसी दौरान में परसराम मदेरणा ने अशोक गहलोत को प्रदेश की राजनीति से रूबरू कराया था. लोकसभा चुनाव में जनता के सामने गहलोत को सामने लाकर मदेरणा ने कहा था कि यह युवा चेहरा है और दिल्ली में हमारी वकालत करेगा.

उसके बाद अशोक गहलोत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वो लगातार राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते चले गए. 5 बार सांसद बने और अब तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. कमोबेश चार दशक पुरानी तस्वीर वर्तमान के लोकसभा चुनाव में भी नजर आ रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि परसराम मदेरणा की जगह उनकी पौत्री दिव्या है और अशोक गहलोत की जगह उनके बेटे वैभव गहलोत हैं.

जोधपुर संसदीय क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्या मदेरणा अपने दादा के अंदाज में ही वैभव गहलोत को जनता से रूबरू करवा रही हैं और साथ में वो अपने दादा की चार दशक पुरानी बात भी दोहरा रही हैं. ग्रामीण क्षेत्र के दौरे पर निकले वैभव गहलोत परसराम मदेरणा के पैतृक गांव पहुंचे तो उनके साथ दिव्या मदेरणा भी थी. वो लगातार पूरे क्षेत्र में देवों के साथ सक्रिय हैं. दिव्या सभाओं में मारवाड़ी और हिंदी में तेज तर्रार भाषण देते हुए कहती हैं कि वो युवा चेहरा हैं, जो आने वाले 20 साल तक आपकी सेवा करेंगे. साथ ही कहती हैं कि जब परसराम मदेरणा ने भी अशोक गहलोत को इसी तरह आपके सामने पेश किया था और आज अशोक गहलोत 40 साल से आप की सेवा कर रहे हैं.

खास बात ये भी है कि वैभव गहलोत भी अपने भाषण में दोहराते हैं कि 'मैं भाग्यशाली हूं कि मदेरणा साहब ने जहां मेरे पिता को आपके सामने पेश किया था, आज उनकी पौत्री दिया मदेरणा मुझे आपके सामने लेकर आई हैं'. अब इसे राजनीतिक जरूरत कहें या जरूरत की राजनीति, क्योंकि दोनों ही स्थिति में सब जायज है.

जाहिर है, 1998 के चुनाव के दौरान परसराम मदेरणा को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था और यह माना जा रहा था कि प्रदेश में जाट मुख्यमंत्री बनने का सपना भी पूरा होगा. लेकिन अशोक गहलोत सीएम बन गए. इसके बाद मदेरणा और गहलोत के बीच दरार की बातें सामने आने लगी. हालांकि इसकी पुष्टि कभी नहीं हुई, लेकिन चर्चा हर दौर में बनी रही.

2009 के चुनाव में परसराम मदेरणा की जगह महिपाल मदेरणा विधानसभा पहुंचे और अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इससे एक बार लगा कि संबंधों में मधुरता आई है. लेकिन उसी समय भंवरी कांड ने एक बार भूचाल ला दिया और दूरियां बढ़ने की बातें फिर सामने आने लगी. साल 2014 में लीला मदेरणा को पार्टी ने टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गई.

वैभव गहलोत के समर्थन में जनसंपर्क कर रही दिव्या मदेरणा

2018 के विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत ने दिव्या मदेरणा को मैदान में उतारा और वह चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गई. इस दौरान भी तल्खी की बातें लगातार सामने आती रहीं, लेकिन वैभव गहलोत के नामांकन के दिन उनके साथ दिव्या मदेरणा ही निर्वाचन अधिकारी के सामने पहुंची तो राजनीति के जानकारों को एक बड़ा संदेश नजर आया. इसके बाद से लगातार दिव्या वैभव गहलोत के चुनाव प्रचार में सक्रिय हैं, जो ये दर्शा रहा है कि दो परिवारों की युवा पीढ़ियां मारवाड़ की राजनीति में आगे तक जाएगी.

Intro:इस खबर के विजुअल और बाइट ग्रामीण क्षेत्र से उपलब्ध हुए थे इसलिए एफटीपी से भेजे हैं
jodhpur_19april_divyavaibhav


जोधपुर मारवाड़ की राजनीति में 1980 के दशक में एक नया दौर आया था जब परसराम मदेरणा ने अशोक गहलोत को राजनीति से रूबरू कराते हुए सांसद के चुनाव में जनता के सामने पेश किया था मदेरणा ने कहा था कि यह युवा चेहरा है दिल्ली में हमारी वकालत करेगा उसके बाद अशोक गहलोत ना कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते चले गए 5 बार सांसद बने और प्रदेश की तीसरी बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं कमोबेश चार दशक पुरानी तस्वीर वर्तमान के लोकसभा चुनाव में भी नजर आ रही है फर्क सिर्फ इतना है परसराम मदेरणा की जगह उनकी पोत्री दिव्या है और अशोक गहलोत की जगह वैभव गहलोत हैं जोधपुर संसदीय क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्या मदेरणा अपने दादा के अंदाज में ही वैभव गहलोत को जनता से रूबरू करवा रही है और साथ में वह अपने दादा की चार दशक पुरानी बात भी दोहरा रही है। ग्रामीण क्षेत्र के दौरे पर निकले वैभव गहलोत परसराम मदेरणा के पैतृक गांव पहुंचे तो उनके साथ दिव्या मदेरणा भी थी वह लगातार पूरे क्षेत्र में देवों के साथ सक्रिय है दिव्या सभाओं में मारवाड़ी और हिंदी में तेज तर्रार भाषण देते हुए कहती है कि यह युवा चेहरा है जो आने वाले 20 साल तक आप की सेवा करेंगे।


Body:उल्लेखनीय है कि एक समय था जब परसराम मदेरणा ने अशोक गहलोत को इसी तरह आपके सामने पेश किया था और आज अशोक गहलोत 40 सालों से आप की सेवा कर रहे हैं खास बात यह भी है कि वैभव गहलोत भी अपने भाषण में यह बात दोहराते हैं कि मैं भाग्यशाली हूं कि मदेरणा साहब ने जहां मेरे पिता को आपके सामने पेश किया था आज उनकी पोत्री दिया मदेरणा मुझे आपके सामने लेकर आई है। अब इसे राजनीतिक जरूरत कहे या जरूरत की राजनीति क्योंकि दोनों ही स्थिति मैं सब जायज है एक दौर था जब 1998 के चुनाव के दौरान परसराम मदेरणा को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था और यह माना जा रहा था कि प्रदेश में जाट मुख्यमंत्री बनने का सपना भी पूरा होगा लेकिन अशोक गहलोत सीएम बन गए इसके बाद मदेरणा व गहलोत के बीच दरार की बातें सामने आने लगी हालांकि इसकी पुष्टि कभी नहीं हुई लेकिन चर्चा हर दौर में बनी रही।


Conclusion:2009 के चुनाव में परसराम मदेरणा की जगह महिपाल मदेरणा विधानसभा पहुंचे और अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया इससे एक बार की लगा कि संबंधों में मधुरता आई है लेकिन उसी समय भंवरी कांड ने एक बार भूचाल ला दिया और दूरियां बढ़ने की बातें फिर सामने आने लगी 2014 में लीला मदेरणा को पार्टी ने टिकट दिया लेकिन वह चुनाव हार गई तो 2018 के विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत ने दिव्या मदेरणा को मैदान में उतारा और वह चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गई। इस दौरान भी तल्खी की बाते लगातार सामने आती रही। लेकिन वैभव गहलोत के नामांकन के दिन उनके साथ दिव्या मदेरणा ही निर्वाचन अधिकारी के सामने पहुंची तो राजनीति के जानकारों को एक बढ़ा संदेश नजर आया इसके बाद से लगातार दिव्या वैभव गहलोत के चुनाव प्रचार में सक्रिय है। जो यह दर्शा रहा है कि दो परिवारों की युवा पीढियां मारवाड़ की राजनीति में आगे तक जाएगी।

Last Updated : Apr 19, 2019, 5:15 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.