जोधपुर. रविवार को पूरे देश में रावण का पूतला दहन करके बुराई पर अच्छाई की जीत को लेकर खुशियां मनाई जा रही लेकिन जोधपुर में एक तबका ऐसा भी है, जो रावण दहन के दिन को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं. ये लोग अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं.
असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरे की खुशियां रविवार को मनाई जा रही है. कहीं मेले लग रहें तो कहीं राम की पूजा की जा रही है लेकिन जोधपुर में रावण के मंदिर में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया है. वहीं खुद को रावण का वंशज मानने वाले माली गोदा ब्राह्मण रावण के अंत पर शोक मनाते हैं. श्रीमाली ब्राह्मण के अनुसार रावण एक महान संगीतज्ञ विद्वान और ज्योतिष पुरुष था. वे लोग रावण की पूजा कर रावण के अच्छे गुणों को लेने का प्रयास करते हैं.
जोधपुर में है रावण और मंदोदरी का मंदिर
पुराणों में ऐसी मान्यता है कि जोधपुर के मंदोर में रावण का मंदोदरी से विवाह हुआ था. जोधपुर शहर में ही दशानन रावण का मंदिर है, जहां श्रीमाली ब्राह्माण लंकापति की पूजा करते हैं. जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर स्थित है. इसे गोधा गौत्र के ब्राह्मणों ने बनवाया है.
यहां रावण को माना जाता है दामाद
जोधपुर रावण का ससुराल था. ऐसा कहा जाता है कि रावण की मृत्यु के बाद उनके वंशज जोधपुर में आकर बस गए थे. तब से ये लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं. आज भी ये लोग दशानन को दामाद के रूप में पूजते हैं.
मंडोर की पहाड़ी पर स्थित रावण मंदोदरी का फेरा स्थल
ऐसा कहा जाता है कि असुरों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा पर आ गया था. हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया. मयासुर और हेमा की एक बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ. इसका नाम मंदोदरी रखा गया. जिसके बाद इस स्थान को मंदोदरी के नाम से जाना जाता है.
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वहीं मयासुर के जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की. अप्सरा की बेटी होने के कारण मंदोदरी बहुत सुंदर थी. ऐसी कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था. आखिरकार उनकी खोज उस समय के सबसे बलशाली और पराक्रमी होने के साथ विद्वान राजा रावण पर जाकर पूरी हुई.
उन्होंने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. रावण अपनी बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचा. मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चंवरी कहते हैं, जहां मंदोदरी और रावण ने फेरे लिए थे.
विजयादशमी को होती है लंकेश्वर की पूजा
रावण मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार दुबे ने बताया कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां पर आकर बस गए थे. वे लोग पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे. उनके अनुसार रावण एक महान संगीतज्ञ, विद्वान और ज्योतिषी पुरुष था.
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जोधपुर में कोरोना को देखते हुए इस साल रावण का दहन नहीं किया जाएगा लेकिन फिर भी शाम के समय रावण मंदिर में श्रीमाली ब्राह्मण प्रतिमा स्नान कर रावण की पूजा की जाएगी और उसके पश्चात ही भोजन ग्रहण किया जाएगा.
कमलेश दवे ने बताया कि दशहरे के दिन उनके लिए शोक का प्रतीक होता है, एक तरफ जहां पूरा देश रावण दहन की खुशियां मनाता है तो वे और उनके परिवार वाले इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं. देश विदेश से सैकड़ों लोग इस मंदिर में रावण की प्रतिमा के दर्शन करने आते हैं. साथ ही पुजारी का कहना है कि जोधपुर के मंडोर इलाके में आज भी रावण और मंदोदरी का शादी स्थल है.