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Special : सीरिया का ये 'विशेष' खजूर अब जोधपुर में मिलेगा, इम्यूनिटी बढ़ाने में भी है मददगार

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Published : Jun 25, 2020, 1:23 PM IST

जोधपुर के बाजारों में जल्द ही सीरिया से लाया गया खजूर मिलेगा. ये खजूर स्वाद में लाजवाब तो हैं ही, साथ ही ये बीमीरियों से लड़ने में भी मदद करता है.

Syria date palm, जोधपुर न्यूज
सीरियाई खजूर की खेती का प्रयोग सफल

जोधपुर. सीरिया के रेगिस्तान में होने वाला पीला खजूर अब जोधपुर सहित पश्चिमी राजस्थान में भी नजर आएगा. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आने वाले जोधपुर के काजरी के वैज्ञानिकों ने काजरी परिसर में इसको पनपाया है, जो कि ये प्रयोग सफल रहा है. वहीं, ये खजूर एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है जो इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार भी है.

सीरियाई खजूर की खेती का प्रयोग सफल

जोधपुर केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में 6 साल पहले मेडुजल वैरायटी के खजूर लगाए गए थे. इस पीला खजूर भी कहा जाता है. बता दें कि खजूर के ये पौधे सीरिया के अनुसंधान केंद्र ने जोधपुर को दिए थे. इनमें पीले खजूर के पौधों को जोधपुर की भूमि में रास आई और ये अब अच्छे से फल-फूल रहा है.

एक पौधे से मिलता है 50 से 70 किलो खजूर...

काजरी के निदेशक डॉ. ओपी यादव का कहना है कि हमारे वैज्ञानिकों ने लगातार 6 साल तक इस पर काम किया. जिसका परिणाम अब सबके सामने है. अब इसके फल पकने लगे हैं. इस फल की खासियत ये है कि इसे पकने से पहले ही खाने के लिए उपयोगी है.

Syria date palm, जोधपुर न्यूज
बहुत ही मीठा होता है मेडुजल खजूर

यह भी पढ़ें. SPECIAL: कोरोना में नसीराबाद के 'रोट कचौरा' का स्वाद फीका, बिक्री में भारी कमी

उन्होंने बताया कि इसके साथ ही छह साल पहले गुजरात के आनंद से लाए गए लाल खजूर एडीपी-1 का भी सफल प्रयोग हुआ है. इसकी फसल भी प्राप्त हो गई है. एक पौधे से 50 से 70 किलो खजूर मानूसन से पहले ही प्राप्त किए जा सकेंगे. खजूर की इस अवस्था को डेको कहते हैं. वहीं स्वाद के मामले में यह बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा होता है.

यह भी पढ़ें. Special: पिछले साल सोयाबीन की फसल खराब, इस बार किसानों को बीज दे रहा दुख

डॉक्टर ओपी यादव ने जानकारी दी कि टिशू कल्चर तकनीक से मरूस्थल में खजूर की खेती का प्रयोग सफल रहा है. अब यह किसान के लिए भी उपयोगी है और वे इसका खेती कर सकते हैं. ये खजूर परिपक्व अवस्था से पहले ही बड़े और मीठे हो गए हैं. इनको मानसून से पहले ही उपयोग किया जा सकता है. इसे तोड़कर सीधा बाजार में बेचा जा सकता है. यानी कि खजूर का पिंड बनने से पहले ही इसका उपयोग कर सकते हैं

सीरिया से आए थे 18 पौधे...

बता दें कि सीरिया के इंटरनेशनल सेंटर फॉर ड्राई लैंड एग्रीकल्चर की ओर से 2014 में काजरी को खजूर की 3 किस्म के 18 पौधे दिए गए थे. इनमें मेडुजल वैरायटी का पौधा यहां की परिस्थितियों में पनपने लगा है. इन पौधों में पीले रंग के फल लगे हैं. इसके अलावा कजरी में दूसरा लाल रंग का खजूर भी है. जिसकी पौध गुजरात के आनंद से लाई गई थी. अब काजरी ने इस प्रयोग के सफल होने के बाद थार के मरुस्थल में लगाने के लिए भी हरी झंडी दे दी है.

Syria date palm, जोधपुर न्यूज
फल-फूल रहे हैं ये पौधे

जल्द ही ये सीरियाई खजूर बाजार में आएगा नजर...

राजस्थान में इसे लगाने से किसानों को फायदा मिलेगा. किसान इसे इसी हालत में पेड़ से उतार कर बेच सकता है. काजरी ने इस खजूर की किस्म को अब किसानों तक पहुंचाने को निर्णय लिया है. ऐसे में आने वाले समय में यह बाजार में भी नजर आएंगे. फिलहाल, काजरी परिसर के बाहर इसे बिक्री के लिए जारी किया जाएगा.

रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर...

डॉ. यादव के अनुसार यह फल पूरी तरह से एंटीऑक्सेंडेंट से भरपूर है. यह व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करने में मदद करता है. अभी कोरोना महामारी के दौर में यह फल बहुत फायदेमंद है. जो बीमारी से लड़ने में सहायता करेगा. जब इसकी फसल आने लगेगी तो यह बहुत फायदेमंद साबित होगा.

काजरी है सतत प्रयोग की जगह...

काजरी में रेगिस्तानी व मरूस्थलीय क्षेत्रों में आसनी से पनपने वाली फसलों व फलों पर अनुसंधान लंबे समय चल रहा है. काजरी ने अब तक कई तरह के बीज की नई किस्में विकसित कर किसानों को दी है. ऐसे में ही खजूर के ये पौधे स्वास्थ्य की दृष्टि से गुणकारी तो है ही किसानों के लिए भी लाभदायक है.

यह भी पढ़ें. कोरोना से ग्रामीणों की जंग: स्पेशल टीम बनी ग्रामीणों के लिए 'कवच', मनरेगा से मिल रहा घर-घर रोजगार

भूमि की अवह्वास की प्रक्रिया को कम करने और संसाधनों के वैज्ञानिक व स्थाई प्रबंधन हेतु 1952 में मरु वनीकरण केन्द्र की स्थापना जोधपुर में की गई. जिसका बाद में विस्तार 1957 में मरू वनीकरण एवं मृदा संरक्षण केन्द्र के रूप में हुआ.

Syria date palm, जोधपुर न्यूज
काजरी में 6 साल पहले लाए गए थे सीरिया से खजूर

1959 में काजरी बना पूर्ण संस्थान...

वहीं, बाद में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अधीन इसे केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के रूप में 1959 में पूर्ण संस्थान का दर्जा दिया गया. काजरी जोधपुर स्थित मुख्यालय में 6 संभाग हैं. इसके चार क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र विभिन्न कृषि-जलवायु स्थितियों में स्थानाधारित समस्यानुगत अनुसंधान के लिए बनाया गया है.

जोधपुर. सीरिया के रेगिस्तान में होने वाला पीला खजूर अब जोधपुर सहित पश्चिमी राजस्थान में भी नजर आएगा. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आने वाले जोधपुर के काजरी के वैज्ञानिकों ने काजरी परिसर में इसको पनपाया है, जो कि ये प्रयोग सफल रहा है. वहीं, ये खजूर एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है जो इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार भी है.

सीरियाई खजूर की खेती का प्रयोग सफल

जोधपुर केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में 6 साल पहले मेडुजल वैरायटी के खजूर लगाए गए थे. इस पीला खजूर भी कहा जाता है. बता दें कि खजूर के ये पौधे सीरिया के अनुसंधान केंद्र ने जोधपुर को दिए थे. इनमें पीले खजूर के पौधों को जोधपुर की भूमि में रास आई और ये अब अच्छे से फल-फूल रहा है.

एक पौधे से मिलता है 50 से 70 किलो खजूर...

काजरी के निदेशक डॉ. ओपी यादव का कहना है कि हमारे वैज्ञानिकों ने लगातार 6 साल तक इस पर काम किया. जिसका परिणाम अब सबके सामने है. अब इसके फल पकने लगे हैं. इस फल की खासियत ये है कि इसे पकने से पहले ही खाने के लिए उपयोगी है.

Syria date palm, जोधपुर न्यूज
बहुत ही मीठा होता है मेडुजल खजूर

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उन्होंने बताया कि इसके साथ ही छह साल पहले गुजरात के आनंद से लाए गए लाल खजूर एडीपी-1 का भी सफल प्रयोग हुआ है. इसकी फसल भी प्राप्त हो गई है. एक पौधे से 50 से 70 किलो खजूर मानूसन से पहले ही प्राप्त किए जा सकेंगे. खजूर की इस अवस्था को डेको कहते हैं. वहीं स्वाद के मामले में यह बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा होता है.

यह भी पढ़ें. Special: पिछले साल सोयाबीन की फसल खराब, इस बार किसानों को बीज दे रहा दुख

डॉक्टर ओपी यादव ने जानकारी दी कि टिशू कल्चर तकनीक से मरूस्थल में खजूर की खेती का प्रयोग सफल रहा है. अब यह किसान के लिए भी उपयोगी है और वे इसका खेती कर सकते हैं. ये खजूर परिपक्व अवस्था से पहले ही बड़े और मीठे हो गए हैं. इनको मानसून से पहले ही उपयोग किया जा सकता है. इसे तोड़कर सीधा बाजार में बेचा जा सकता है. यानी कि खजूर का पिंड बनने से पहले ही इसका उपयोग कर सकते हैं

सीरिया से आए थे 18 पौधे...

बता दें कि सीरिया के इंटरनेशनल सेंटर फॉर ड्राई लैंड एग्रीकल्चर की ओर से 2014 में काजरी को खजूर की 3 किस्म के 18 पौधे दिए गए थे. इनमें मेडुजल वैरायटी का पौधा यहां की परिस्थितियों में पनपने लगा है. इन पौधों में पीले रंग के फल लगे हैं. इसके अलावा कजरी में दूसरा लाल रंग का खजूर भी है. जिसकी पौध गुजरात के आनंद से लाई गई थी. अब काजरी ने इस प्रयोग के सफल होने के बाद थार के मरुस्थल में लगाने के लिए भी हरी झंडी दे दी है.

Syria date palm, जोधपुर न्यूज
फल-फूल रहे हैं ये पौधे

जल्द ही ये सीरियाई खजूर बाजार में आएगा नजर...

राजस्थान में इसे लगाने से किसानों को फायदा मिलेगा. किसान इसे इसी हालत में पेड़ से उतार कर बेच सकता है. काजरी ने इस खजूर की किस्म को अब किसानों तक पहुंचाने को निर्णय लिया है. ऐसे में आने वाले समय में यह बाजार में भी नजर आएंगे. फिलहाल, काजरी परिसर के बाहर इसे बिक्री के लिए जारी किया जाएगा.

रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर...

डॉ. यादव के अनुसार यह फल पूरी तरह से एंटीऑक्सेंडेंट से भरपूर है. यह व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करने में मदद करता है. अभी कोरोना महामारी के दौर में यह फल बहुत फायदेमंद है. जो बीमारी से लड़ने में सहायता करेगा. जब इसकी फसल आने लगेगी तो यह बहुत फायदेमंद साबित होगा.

काजरी है सतत प्रयोग की जगह...

काजरी में रेगिस्तानी व मरूस्थलीय क्षेत्रों में आसनी से पनपने वाली फसलों व फलों पर अनुसंधान लंबे समय चल रहा है. काजरी ने अब तक कई तरह के बीज की नई किस्में विकसित कर किसानों को दी है. ऐसे में ही खजूर के ये पौधे स्वास्थ्य की दृष्टि से गुणकारी तो है ही किसानों के लिए भी लाभदायक है.

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भूमि की अवह्वास की प्रक्रिया को कम करने और संसाधनों के वैज्ञानिक व स्थाई प्रबंधन हेतु 1952 में मरु वनीकरण केन्द्र की स्थापना जोधपुर में की गई. जिसका बाद में विस्तार 1957 में मरू वनीकरण एवं मृदा संरक्षण केन्द्र के रूप में हुआ.

Syria date palm, जोधपुर न्यूज
काजरी में 6 साल पहले लाए गए थे सीरिया से खजूर

1959 में काजरी बना पूर्ण संस्थान...

वहीं, बाद में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अधीन इसे केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के रूप में 1959 में पूर्ण संस्थान का दर्जा दिया गया. काजरी जोधपुर स्थित मुख्यालय में 6 संभाग हैं. इसके चार क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र विभिन्न कृषि-जलवायु स्थितियों में स्थानाधारित समस्यानुगत अनुसंधान के लिए बनाया गया है.

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