जोधपुर. आर्टिफिशिअल इंटेलिजेंस यानी एआई की मदद से उपचार क्षेत्र में क्रांति आने जा रही है. खास तौर से सक्रांमक रोगों के उपचार में यह एआई काफी मददगार साबित हो सकती है. इसमें टीबी एक महत्वपूर्ण बीमारी है. दुनिया में टीबी के मामले में भारत सबसे आगे है. ऐसे में भारत को टीबी से मुक्त करने के लिए इस बीमारी की आसानी से पकड़ और पूर्वानुमान में एआई डॉक्टरों की मदद करेगी. इसके लिए जोधपुर के डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज के कमला नेहरू टीबी अस्पताल के मरीजों के टेस्ट डाटा से आईआईटी जोधपुर में अध्ययन होगा. यह अध्ययन तीन साल तक चलेगा. इसमें टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब का सहयोग मिलेगा. इसके लिए एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनेगा जो डाटा के आधार पर एक्स-रे, सीटी स्कैन के एल्गोरिदम के माध्यम से अर्ली डाइग्नोस कर सकेंगे. केएन टीबी हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉ सीआर चौधरी का कहना है कि यह बहुत फायदेमंद साबित होगा. खास तौर से दूरदराज गांव में बैठा डॉक्टर भी सॉफ्टवेयर की मदद से यह जान सकेगा कि आगे मरीज की स्थिति क्या होगी. वह उपचार के लिए हायर सेंटर मरीज को भेज सकेगा.
हर माह 8 हजार मरीज : कमला नेहरू टीबी अस्पताल में हर माह टीबी के आठ हजार मरीज उपचार के लिए आते हैं. इनमें हर माह कुछ नए रोगी भी होते हैं. टीबी की पहचान के लिए सबसे पहले सीने का एक्स-रे करवाया जाता है. जिसमें कुछ नजर आने पर आजकल सीटी स्कैन करवाए जाते हैं. इसके अलावा ब्लड व अन्य टेस्ट होते हैं. इन सभी जांचों के सॉफ्ट डाटा आईआईटी के साथ शेयर किया जाएगा. जिनका एआई विश्लेषण कर नया डाटा तैयार करेगी. इसी डाटा से नए मरीज के टेस्ट का विश्लेषण होंगे.
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इस तरह एआई बताएगी पुर्वानुमान : हजारों एक्स-रे, सीटी स्कैन, व ब्लड कल्चर रिपोर्ट का जब एआई अपने साफ्टवेयर में एनालेसिस करेगी. तो टेस्ट की एक चैन तेयार होगी. जिसमें यह एक्स—रे सीटी स्कैन में नजर आने वाले फेंफडों के हेल्दी होने की गणना होगी. साफ्टवेयर तैयार होने के बाद शुरूआती टीबी से ग्रसित मरीज के एक्स—रे की गणना कर एआई बताएगी कि उपचार लेने पर कितने दिन बाद ठीक होगा या उपचार कितना फायदेमंद होगा. कितने समय बाद ड्रग रेसिस्टेंट में परिवर्तन हो जाएगा. डॉ चौधरी का कहना है कि इस पुर्वानुमान से मरीज के उपचार को दिशा मिल सकेगी.
कार्डियक, कैंसर डायबिटीज भी शामिल : डॉ चौधरी ने बताया कि टीबी संक्रामक रोग है. केंद्र सरकार टीबी मुक्त भारत करने के लिए प्रतिबद्ध है. ऐसे में पहले टॉपिक के तौर पर टीबी पर काम होगा. लेकिन धीरे धीरे कार्डियक, कैंसर व डायबिटीज के मरीजों के टेस्ट्स के आधार पर साफ्टवेयर बनेगा. इन बीमारियों के भी अर्ली डाइग्नोस पर काम होगा.