झुंझुनूं. 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा'...कवि जगदंबा प्रसाद मिश्र के शहीदों की याद में लिखी ये पंक्तियां बिल्कुल फिट बैठती हैं. ये पंक्तियां शहीद शीशराम गिल के परिवार पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही हैं. मरणोपरांत सरकार ने इस सपूत को वीर चक्र से सम्मानित तो कर दिया, लेकिन पैतृक गांव में स्मारक बनाने के लिए परिजनों को स्वयं सामने आना पड़ा.
दरअसल, शहीद शीशराम गिल का जीवन एक कहानी नहीं एक हकीकत है. उन्होंने देश की सीमा पर अदम्य साहस का परिचय देते हुए मातृभूमि की रक्षा में स्वयं को न्यौछावर कर दिया था. आज कारगिल युद्ध के हीरो वीर चक्र से सम्मानित शीशराम गिल की पुण्यतिथि है. शहीद का पैतृक आवास बिशनपुरा गांव में है. जहां शीशराम गिल को उनकी पुण्यतिथि पर याद करने के लिए ग्रामीण किसी सरकारी फंड की बाट नहीं जोहते. यहां शहीद के परिवार के साथ मिलकर उनके पैतृक गांव के निवासियों ने खुद के पैसे से ही शहीद की मूर्ति लगवाई है. उनकी पुण्यतिथि पर गांव की स्कूल में आरओ भेंट किया. शहीद के नाम वाली स्कूल में सभी विद्यार्थियों को स्कूल बैग वितरित किए.
शहीद शीशराम गिल की पुण्यतिथि पर पर उनकी यादों को संजोए परिजन उनकी हर वर्ष विद्यार्थियों को उनके आवश्यकता की वस्तुएं भेंट करते हैं. शहीद गिल के गांव में युवाओं को प्रेरणा देने के लिए शहीद की मूर्ति स्थल के पास कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.
शहीद शीशराम गिल की तीसरी पीढ़ी सेना में
शहीद शीशराम के पिता सरदार सिंह सेना से सेवानिवृत्त हैं. उन्होंने अपने बेटे वीर चक्र 'शिशु' की 20वीं पुण्यतिथि पर उसकी मूर्ति से लिपट कर श्रद्धांजलि दी है. शहीद शीशराम का सबसे छोटा बेटा भी सीमा पर तैनात है. शहीद की पत्नी संतरा देवी जब 1983 में लाल जोड़े में शीशराम के घर आई थीं तो पिता अर्जुन राम सेना में, पति सेना में, श्वसुर सेना में थे. उसने पति की शहादत के बाद छोटे बेटे को फौज में भेज दिया. वहीं बड़ा बेटा सैनिक कल्याण बोर्ड में है.
शहीद शीशराम ने कर दिया बिशनपुरा का नाम
कारगिल युद्ध के दौरान शीशराम गिल को 8 जाट रेजीमेंट के हवालदार की जिम्मदारी दी गई थी. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन तक पहुंचना बेहद मुश्किल था. पहले सीधी चढ़ाई और फिर दुश्मन की गोलाबारी का खतरा. इसके बावजूद 8 जाट रेजीमेंट के हवालदार शीशराम गिल ने कमांडो टीम के नेतृत्व का जिम्मा लिया. सीधी चढ़ाई होने की वजह से ऊपर तक पहुंचना लगभग नामुमकिन था लेकिन शीशराम गिल ने न सिर्फ चढ़ाई में पहल की बल्कि दुश्मन के आर्टिलरी और मोर्टार फायर से घायल होने के बावजूद वे लक्ष्य को हासिल करने की जिद पर अड़े रहे.
जाबांज शीशराम गिल की टांगों पर गोली लग चुकी थी. लेकिन अपने जख्मों से बेपरवाह शीशराम गिल ने जब भी मौका मिला दुश्मन की पोस्ट पर हमले जारी रखे. नतीजा ये हुआ कि दुश्मन की पोस्ट पर तैनात पाकिस्तान का एक अधिकारी, दो जेसीओ और तीन अन्य रैंक के जवान ढेर हो गए. घायल शीशराम गिल आखिरी सांस तक लक्ष्य हासिल करने के लिए टीम को प्रेरित करते शहीद हो गए. इस खास मिशन में हवलदार शीशराम गिल की बहादुरी और निर्भीक नेतृत्व कौशल के लिए उन्हें वीर चक्र का (मरणोपरांत) सम्मान दिया गया.