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कारगिल में दुश्मन सेना के छक्के छुड़ाने वाले वीर सपूत का गांव...जहां ग्रामीण अपने दम पर मनाते हैं शहीद की पुण्यतिथि

राजस्थान की धरती वीरों की भूमि है. यहां कई योद्धाओं ने जन्म लिया है. इसी मिट्टी में जन्म लेने वाले भारत के वीर सपूत शीशराम गिल हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में दुश्मन देश की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. इन्हें सरकार ने मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित तो किया, लेकिन समय के साथ उन्हें भुलाने की पूरी कोशिश की गई. आज उनकी पुण्य तिथि है.

शीशराम गिल की प्रतिमा
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Published : Jul 11, 2019, 11:49 PM IST

झुंझुनूं. 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा'...कवि जगदंबा प्रसाद मिश्र के शहीदों की याद में लिखी ये पंक्तियां बिल्कुल फिट बैठती हैं. ये पंक्तियां शहीद शीशराम गिल के परिवार पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही हैं. मरणोपरांत सरकार ने इस सपूत को वीर चक्र से सम्मानित तो कर दिया, लेकिन पैतृक गांव में स्मारक बनाने के लिए परिजनों को स्वयं सामने आना पड़ा.

कारगिल में दुश्मन सेना के छक्के छुड़ाने वाले वीर सपूत का गांव

दरअसल, शहीद शीशराम गिल का जीवन एक कहानी नहीं एक हकीकत है. उन्होंने देश की सीमा पर अदम्य साहस का परिचय देते हुए मातृभूमि की रक्षा में स्वयं को न्यौछावर कर दिया था. आज कारगिल युद्ध के हीरो वीर चक्र से सम्मानित शीशराम गिल की पुण्यतिथि है. शहीद का पैतृक आवास बिशनपुरा गांव में है. जहां शीशराम गिल को उनकी पुण्यतिथि पर याद करने के लिए ग्रामीण किसी सरकारी फंड की बाट नहीं जोहते. यहां शहीद के परिवार के साथ मिलकर उनके पैतृक गांव के निवासियों ने खुद के पैसे से ही शहीद की मूर्ति लगवाई है. उनकी पुण्यतिथि पर गांव की स्कूल में आरओ भेंट किया. शहीद के नाम वाली स्कूल में सभी विद्यार्थियों को स्कूल बैग वितरित किए.

शहीद शीशराम गिल की पुण्यतिथि पर पर उनकी यादों को संजोए परिजन उनकी हर वर्ष विद्यार्थियों को उनके आवश्यकता की वस्तुएं भेंट करते हैं. शहीद गिल के गांव में युवाओं को प्रेरणा देने के लिए शहीद की मूर्ति स्थल के पास कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.

शहीद शीशराम गिल की तीसरी पीढ़ी सेना में
शहीद शीशराम के पिता सरदार सिंह सेना से सेवानिवृत्त हैं. उन्होंने अपने बेटे वीर चक्र 'शिशु' की 20वीं पुण्यतिथि पर उसकी मूर्ति से लिपट कर श्रद्धांजलि दी है. शहीद शीशराम का सबसे छोटा बेटा भी सीमा पर तैनात है. शहीद की पत्नी संतरा देवी जब 1983 में लाल जोड़े में शीशराम के घर आई थीं तो पिता अर्जुन राम सेना में, पति सेना में, श्वसुर सेना में थे. उसने पति की शहादत के बाद छोटे बेटे को फौज में भेज दिया. वहीं बड़ा बेटा सैनिक कल्याण बोर्ड में है.

शहीद शीशराम ने कर दिया बिशनपुरा का नाम

कारगिल युद्ध के दौरान शीशराम गिल को 8 जाट रेजीमेंट के हवालदार की जिम्मदारी दी गई थी. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन तक पहुंचना बेहद मुश्किल था. पहले सीधी चढ़ाई और फिर दुश्मन की गोलाबारी का खतरा. इसके बावजूद 8 जाट रेजीमेंट के हवालदार शीशराम गिल ने कमांडो टीम के नेतृत्व का जिम्मा लिया. सीधी चढ़ाई होने की वजह से ऊपर तक पहुंचना लगभग नामुमकिन था लेकिन शीशराम गिल ने न सिर्फ चढ़ाई में पहल की बल्कि दुश्मन के आर्टिलरी और मोर्टार फायर से घायल होने के बावजूद वे लक्ष्य को हासिल करने की जिद पर अड़े रहे.

जाबांज शीशराम गिल की टांगों पर गोली लग चुकी थी. लेकिन अपने जख्मों से बेपरवाह शीशराम गिल ने जब भी मौका मिला दुश्मन की पोस्ट पर हमले जारी रखे. नतीजा ये हुआ कि दुश्मन की पोस्ट पर तैनात पाकिस्तान का एक अधिकारी, दो जेसीओ और तीन अन्य रैंक के जवान ढेर हो गए. घायल शीशराम गिल आखिरी सांस तक लक्ष्य हासिल करने के लिए टीम को प्रेरित करते शहीद हो गए. इस खास मिशन में हवलदार शीशराम गिल की बहादुरी और निर्भीक नेतृत्व कौशल के लिए उन्हें वीर चक्र का (मरणोपरांत) सम्मान दिया गया.

झुंझुनूं. 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा'...कवि जगदंबा प्रसाद मिश्र के शहीदों की याद में लिखी ये पंक्तियां बिल्कुल फिट बैठती हैं. ये पंक्तियां शहीद शीशराम गिल के परिवार पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही हैं. मरणोपरांत सरकार ने इस सपूत को वीर चक्र से सम्मानित तो कर दिया, लेकिन पैतृक गांव में स्मारक बनाने के लिए परिजनों को स्वयं सामने आना पड़ा.

कारगिल में दुश्मन सेना के छक्के छुड़ाने वाले वीर सपूत का गांव

दरअसल, शहीद शीशराम गिल का जीवन एक कहानी नहीं एक हकीकत है. उन्होंने देश की सीमा पर अदम्य साहस का परिचय देते हुए मातृभूमि की रक्षा में स्वयं को न्यौछावर कर दिया था. आज कारगिल युद्ध के हीरो वीर चक्र से सम्मानित शीशराम गिल की पुण्यतिथि है. शहीद का पैतृक आवास बिशनपुरा गांव में है. जहां शीशराम गिल को उनकी पुण्यतिथि पर याद करने के लिए ग्रामीण किसी सरकारी फंड की बाट नहीं जोहते. यहां शहीद के परिवार के साथ मिलकर उनके पैतृक गांव के निवासियों ने खुद के पैसे से ही शहीद की मूर्ति लगवाई है. उनकी पुण्यतिथि पर गांव की स्कूल में आरओ भेंट किया. शहीद के नाम वाली स्कूल में सभी विद्यार्थियों को स्कूल बैग वितरित किए.

शहीद शीशराम गिल की पुण्यतिथि पर पर उनकी यादों को संजोए परिजन उनकी हर वर्ष विद्यार्थियों को उनके आवश्यकता की वस्तुएं भेंट करते हैं. शहीद गिल के गांव में युवाओं को प्रेरणा देने के लिए शहीद की मूर्ति स्थल के पास कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.

शहीद शीशराम गिल की तीसरी पीढ़ी सेना में
शहीद शीशराम के पिता सरदार सिंह सेना से सेवानिवृत्त हैं. उन्होंने अपने बेटे वीर चक्र 'शिशु' की 20वीं पुण्यतिथि पर उसकी मूर्ति से लिपट कर श्रद्धांजलि दी है. शहीद शीशराम का सबसे छोटा बेटा भी सीमा पर तैनात है. शहीद की पत्नी संतरा देवी जब 1983 में लाल जोड़े में शीशराम के घर आई थीं तो पिता अर्जुन राम सेना में, पति सेना में, श्वसुर सेना में थे. उसने पति की शहादत के बाद छोटे बेटे को फौज में भेज दिया. वहीं बड़ा बेटा सैनिक कल्याण बोर्ड में है.

शहीद शीशराम ने कर दिया बिशनपुरा का नाम

कारगिल युद्ध के दौरान शीशराम गिल को 8 जाट रेजीमेंट के हवालदार की जिम्मदारी दी गई थी. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन तक पहुंचना बेहद मुश्किल था. पहले सीधी चढ़ाई और फिर दुश्मन की गोलाबारी का खतरा. इसके बावजूद 8 जाट रेजीमेंट के हवालदार शीशराम गिल ने कमांडो टीम के नेतृत्व का जिम्मा लिया. सीधी चढ़ाई होने की वजह से ऊपर तक पहुंचना लगभग नामुमकिन था लेकिन शीशराम गिल ने न सिर्फ चढ़ाई में पहल की बल्कि दुश्मन के आर्टिलरी और मोर्टार फायर से घायल होने के बावजूद वे लक्ष्य को हासिल करने की जिद पर अड़े रहे.

जाबांज शीशराम गिल की टांगों पर गोली लग चुकी थी. लेकिन अपने जख्मों से बेपरवाह शीशराम गिल ने जब भी मौका मिला दुश्मन की पोस्ट पर हमले जारी रखे. नतीजा ये हुआ कि दुश्मन की पोस्ट पर तैनात पाकिस्तान का एक अधिकारी, दो जेसीओ और तीन अन्य रैंक के जवान ढेर हो गए. घायल शीशराम गिल आखिरी सांस तक लक्ष्य हासिल करने के लिए टीम को प्रेरित करते शहीद हो गए. इस खास मिशन में हवलदार शीशराम गिल की बहादुरी और निर्भीक नेतृत्व कौशल के लिए उन्हें वीर चक्र का (मरणोपरांत) सम्मान दिया गया.

Intro:शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, कवि की पंक्ति हो शहीद शीशराम गिल का परिवार पूरी तरह से चरितार्थ करता है जब उनकी पुण्यतिथि पर हर वर्ष स्कूल विद्यार्थियों को उनकी आवश्यकता की वस्तुएं भेंट की जाती है, गांव के नव युवाओं को प्रेरणा देने के लिए शहीद की मूर्ति पर कार्यक्रम रखे जाते हैं।


Body:झुंझुनू। गांव की स्कूल में तीसरी क्लास में पढ़ने वाला बच्चा यदि अपने पिता की शहादत के बारे में सुनने और 20 साल बाद छोटे भाई को सीमा पर भेज दे। जिस पत्नी को देश की सीमा पर अदम्य साहस दिखाते हुए तीन बच्चों के साथ अकेला छोड़ चले, वह अपने पति का गम भुला कर अपने सबसे लाडले छोटे बेटे को मातृभूमि की रक्षा के लिए सहर्ष भेज दे। कारगिल युद्ध के हीरो वीर चक्र से सम्मानित शीशराम गिल की पुण्यतिथि पर गिल व उसके परिवार की कहानी आप को रोमांचित कर देगी,गर्व से भर देगी।

तीसरी पीढ़ी सेना में
शहीद शीशराम के पिता सरदार सिंह सेना से सेवानिवृत्त है, अपने बेटे वीर चक्र 'शिशु' की 20वीं पुण्यतिथि पर उसकी मूर्ति से लिपट कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। यह उस परिवार के लिए कितने गौरव की बात होगी कि शहीद शीशराम का सबसे छोटा बेटा भी सीमा पर तैनात है और पुण्य तिथि पर घर आने की बजाय सीमा पर बंदूक संभाले निगाहबान आंखें हैं। शहीद की पत्नी संतरा देवी जब 1983 में लाल जोड़े में शीशराम के घर आई थी तो पिता अर्जुन राम सेना में , पति सेना में, श्वसुर सेना में थे। उसने पति की शहादत के बाद छोटे बेटे को फौज में भेज दिया, बड़ा बेटा सैनिक कल्याण बोर्ड में है।

हर वर्ष होता है शहादत का नाम
सामान्य तौर पर शहीदों के परिवारों की शिकायत होती है कि सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया लेकिन शहीद शीशराम का परिवार तो गांव व देश के लिए ही कुछ करने में जुटा है। खुद के पैसे से ही शहीद की मूर्ति लगवाई, शहीद की पुण्यतिथि पर गांव की स्कूल में आरओ भेट किया, शहीद के नाम वाली स्कूल में सभी विद्यार्थियों को स्कूल बैग वितरित किए, गांव में प्रसाद का वितरण किया।

शहीद शीशराम ने कर दिया बिशनपुरा का नाम
17000 फुट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन तक पहुंचना बेहद मुश्किल था। पहले सीधी चढ़ाई और फिर दुश्मन की गोलाबारी का खतरा। इसके बावजूद 8 जाट रेजीमेंट के हवालदार शीशराम गिल ने कमांडो टीम के नेतृत्व का जिम्मा लिया। सीधी चढ़ाई होने की वजह से ऊपर तक पहुंचना लगभग नामुमकिन था, लेकिन शीशराम गिल ने न सिर्फ चढ़ाई में पहल की, बल्कि दुश्मन के आर्टिलरी और मोर्टार फायर से घायल होने के बावजूद वे लक्ष्य को हासिल करने की जिद पर अड़े रहे। उनके टांग बुरी तरह से घायल थी और खून लगातार रिस रहा था। अपने जख्मों से बेपरवाह शीशराम गिल ने जब भी मौका मिला स्नाइपर और एलएमजी बस्टृ से दुश्मन की पोस्ट पर हमले जारी रखें। नतीजा ये हुआ कि दुश्मन की पोस्ट पर तैनात पाकिस्तान का एक अधिकारी, दो जेसीओ और तीन अन्य रैंक के जवान ढेर हो गए। घायल शीशराम गिल आखिरी सांस तक लक्ष्य हासिल करने के लिए टीम को प्रेरित करते शहीद हो गए। इस खास मिशन में हवलदार शीशराम गिल की बहादुरी और निर्भीक नेतृत्व कौशल के लिए उन्हें वीर चक्कर का (मरणोपरांत) सम्मान दिया गया।



व्हाइट वन
विजय सिंह शहीद के पुत्र

बाइट दो संतरा देवी शहीद की पत्नी

व्हाइट तीन सरदारा राम शहीद के पिता

बाइट 4 कुरड़ाराम धींवा सरपंच प्रतिनिधि

बाइट 5 प्रताप सिंह शहीद के भाई


Conclusion:
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