झुंझुनू. जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय हमीरी कला ने 4 साल में ऐसा इतिहास बना दिया है कि बड़े-बड़े निजी विद्यालय इसके सामने कम लगते है. संभवतया यह राजस्थान का पहला ऐसा सरकारी स्कूल होगा, जहां जिला मुख्यालय से टैक्सी में बैठ कर गांव में बच्चे पढ़ने जाते हैं. कभी यहां पहले 56% वाला स्कूल का टॉपर होता था, आज 93.17 प्रतिशत के साथ छात्रा ने यहां से टॉप किया है, स्कूल का दसवीं और बारहवीं का परीक्षा परिणाम 4 साल में 100% है.
चमचमाती सीमेंटे सड़क से स्कूल में जब आप प्रवेश करते हैं तो पक्की चारदीवारी के साथ हरा-भरा केंपस, दो वॉलीबॉल ग्राउंड, बास्केटबॉल ग्राउंड, हैंडबॉल, खो-खो का मैदान, 17 कक्षा साफ सुथरे कक्षाएं. गांव के सरकारी स्कूल के बच्चे आपको अंग्रेजी में बात करते नजर आएंगे, प्रार्थना में टीचर इंग्लिश में निर्देश दे रहे होंगे. लगातार 4 वर्ष से फाइव स्टार रैंक है. स्कूल के कक्षा कक्ष सफेद मार्कर बोर्ड से युक्त लेकिन टीचर्स के लिए मोबाइल और चेयर लेस है. वाटर कूलर, क्रियाशील पुस्तकालय, आधुनिक आईसीटी लैब है.
स्कूल सत्र 2015-16 में क्रमोन्नत होकर सीनियर सेकेंडरी स्कूल बना और प्राचार्य के रूप में जिले की सबसे बड़ी स्कूल कर्नल जेपी जानू से स्थानांतरित और पदोन्नति लेकर सुरेंद्र डूडी पहुंचे. उनके मुताबिक रास्ते से ही वो लौट गए उन्हें लगा की शायद वह गलत स्कूल में गए हैं. डूडी अगले दिन से गांव में घूमे और लोगों से कहा कि इस गांव का तीसमार खां भामाशाह कौन बन सकता है. यह उनका खुद का क्रिएट अवॉर्ड था. इसके साथ ही लोगों को मोटिवेट किया कि शिक्षा में दान देने वालों को लोग भविष्य में देवताओं की तरह पूजेंगे. लोग जुड़े, गांव के लोग आगे आए, लगा कि संभवतया स्कूल का क्या पता, कुछ हो ही जाए और 6 लाख 20 हजार रुपए एकत्रित हो गए. बाकी का 60% पैसा सरकार से लिया और पीपीपी मोड पर स्कूल की चारदीवारी बन गई. कुछ पैसे कम पड़े तो लगभग एक लाख रुपए प्रधानाचार्य सुरेंद्र डूडी ने अपना पहला टास्क पूरा होता देख जेब से दिए.
चार दिवारी तो बन गई लेकिन बच्चे कहां से आएंगे. स्कूल के कागजों में 105 प्रवेश जरूर थे लेकिन वे सरकारी थे, आते मुश्किल से 50 ही थे. कुछ गांव की प्रतिभा जरूर साधनों के अभाव के बावजूद स्कूल में संघर्ष कर रही थी, कुछ करने की कसक लिए परंतु निरूत्साह स्कूल की ओर कदम आते थे, प्राचार्य सुरेंद्र डूडी ने एक सुबह प्रार्थना सभा में घोषणा कर दी कि स्कूल का टॉपर आने पर छात्रा को नई चमचमाती स्कूटी व छात्र हुआ तो मोटरसाइकिल खुद की तरफ से देंगे. निरूत्साही प्रतिभा को आकाश दिखने लगा, संघर्ष कई ने किया लेकिन जावित्री शेखावत को मिला स्कूटी का पुरस्कार, जिसने उपखंड स्तर पर प्रथम, जिले में तीसरा स्थान प्राप्त किया. बस उसके बाद थोड़ा आस-पास के गांव में प्रवेश महोत्सव मनाए, लोगों से बात की, विश्वास दिलाया और आज इस स्कूल में 417 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं.
जिले के देहात में कक्षा 10 में सर्वाधिक छात्र संख्या का रिकॉर्ड इसी स्कूल के नाम है. झुंझुनूं जिला मुख्यालय से 75 बच्चे इस गांव की स्कूल में 10 किलोमीटर दूर से पढ़ने आते हैं. निजी स्कूलों की तरह से आसपास के गांव से भी बच्चे ऑटो से स्कूल आते हैं, जिनकी की व्यवस्था रिटायर्ड सैनिक करते हैं. आसपास के गांव में निजी स्कूलों की तरह ही फलैक्स लगे हुए हैं. इसी सत्र में 16 छात्राएं गार्गी पुरस्कार के लिए चयनित हुई है. वहीं प्राचार्य 100% रिजल्ट देने वाली टीचर और स्टूडेंट्स को प्रोत्साहन के लिए चांदी का सिक्का देंगे.
चार साल में 8 कक्षाएं बढ़कर 17 हुईं:
चार साल पहले यहां केवल आठ कक्षा कक्षाएं हुआ करती थी, आज 17 कक्षाएं है. कोई नाबार्ड के सहयोग से बनाए गए, कहीं भामाशाहों की मदद ली. स्कूल का बास्केटबॉल ग्राउंड का ढांचा तो सरकारी सहयोग से बन गया लेकिन ऊपर के लिए खुद प्राचार्य ने अपनी जेब से 66 हजार रुपए दिए.
एजुकेशन ही नहीं, जॉयफुल भी है ये स्कूल:
स्काउट मास्टर राम सिंह कुलहरी के नेतृत्व में राजस्थान की सबसे बड़ी यूनिफॉर्म स्काउट की संख्या 130 है, लगातार दो साल से 9 स्काउट व 9 गाइड कुल 36 राज्यपाल पुरस्कार यहां है. प्रत्येक माह में दो जॉयफुल सैडरडे और नो बैग डे मनाएं जाते हैं, शनिवार को प्रभावी बाल सभा होती है. स्कूल विद डिफेंस की कोचिंग दी जाती है. प्रतिवर्ष शैक्षणिक भ्रमण होता है.