जोधपुर : शरीर के लिए महत्वपूर्ण विटामिन-C की पूर्ति का एक बड़ा स्रोत आंवला है, जिसमें औषधीय गुणों की भी भरमार होती है. इस बार हुई अच्छी बारिश के चलते जोधपुर के केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में आंवले की जबरदस्त फसल हुई है. यही स्थिति उन किसानों की भी है जिन्होंने आंवले की खेती की है. काजरी में इस बार करीब 20 टन आंवले का उत्पादन हुआ है.
काजरी में शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रीय फलों पर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉ. धीरज सिंह ने बताया कि काजरी ने 8 प्रकार की ऑर्गेनिक आंवले की किस्में तैयार की हैं. इनमें चेकैया, बनारसी, एनए-7, कृष्णा, कंचन, एनए-10, आनंद-2 और फ्रांसिस नामक किस्में शामिल हैं. काजरी में आंवले की खेती के दौरान किसी भी प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे इसे ऑर्गेनिक आंवला कहा जा सकता है.
डॉ. धीरज सिंह ने बताया कि आंवला का सेवन सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए फायदेमंद है. खासतौर पर सर्दियों में इसका सेवन अधिक लाभकारी होता है. आंवले का स्वाद अम्लीय और कसैला होता है, जो पालीफिनोल, गैलिक एसिड, इलैजिक एसिड और टैनिन के कारण होता है. ये तत्व सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं. कोरोना महामारी के बाद आंवले के उपयोग में वृद्धि हुई है, जिससे इसकी खेती भी तेजी से बढ़ी है.
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किसानों के लिए फायदेमंद : डॉ. धीरज ने बताया कि मारवाड़ की शुष्क जलवायु के चलते आंवले पर कीट और बीमारियों का असर बहुत कम होता है. यह नकदी फसल होने के कारण किसानों को बाजार में अच्छा मुनाफा देती है. आंवले का पौधा कम पानी में भी उगाया जा सकता है और तीन साल बाद फल देने लगता है. इस पौधे की औसत आयु करीब 30 वर्ष होती है. वर्तमान में एक पौधे से 80 से 120 किलो तक आंवले मिलते हैं.
बारिश से जल्दी आया फल : डॉ. धीरज ने बताया कि आंवले का पौधा आमतौर पर दिसंबर से मार्च तक फल देता है. हालांकि, इस बार अच्छी बारिश के कारण अक्टूबर के अंत से ही फल मिलने शुरू हो गए. किसानों के लिए यह भी फायदेमंद है कि आंवले के पेड़ों को खेत में निश्चित स्थान पर लगाकर अन्य फसलों की खेती भी की जा सकती है. आंवले की जड़ें गहरी होने के कारण ट्रैक्टर के उपयोग से इसे कोई नुकसान नहीं होता.
अयोध्या से हुई आंवले के उत्पादन की शुरुआत : डॉ. धीरज ने बताया कि उत्तर भारत में आंवले के उत्पादन की शुरुआत अयोध्या से मानी जाती है, जहां इसकी बेहतर किस्में विकसित की गईं. अयोध्या के बाद आंवले पर सर्वाधिक काम जोधपुर में हुआ. काजरी ने यहां विभिन्न किस्मों के आंवले विकसित किए हैं, जो किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहे हैं. काजरी में विकसित आंवले में रेशे बहुत कम होते हैं, जिससे इसकी गुणवत्ता बढ़ती है.