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21 साल कारगिल: शीशराम गिल के परिवार को सैकड़ों सलाम, पति की शहादत के बाद भी बेटे को भेजा फौज में - martyrdom of jawan

कारगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे हो गए हैं. 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ यह युद्ध, दो महीने से ज्यादा चला था. इसमें भारत की ओर से 527 जवान शहीद हुए थे. 24 जून 1999 को टाइगर हिल पर भारतीय वायुसेना ने पहली बार लेजर गाइडेड बमों से हमला किया था. कारगिल युद्ध, जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में मई और जुलाई 1999 के बीच हुआ था. आइए जानते हैं झुंझुनू जिले के शहीद शीशराम गिल की शौर्य गाथा के बारे में.

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कारगिल विजय दिवस के 21 साल हुए पूरे
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Published : Jul 26, 2020, 7:33 AM IST

झुंझुनू. वो योद्धा, जिसकी बहादुरी के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 21 साल पहले वीर चक्र से सम्मानित शहीद शीशराम गिल की कहानी यही दर्शाती है कि शहादत देने के बाद भी परिवार टूटते नहीं हैं और शहीद वीरांगनाएं भी केवल कहती नहीं हैं. बल्कि कर दिखाती हैं कि अपने बेटे को भी सीमा पर लड़ने के लिए भेजूंगी. शहीद शीशराम गिल के पिता भी फौज में रह चुके हैं और पति की शहादत देने के बाद भी शहीद वीरांगना सुरजी देवी ने अपने लाडले को भी सेना में भेज दिया. यानी परिवार की तीन पीढ़ियां सेना में हैं.

वीर चक्र से सम्मानित शहीद शीशराम गिल की कहानी

इकलौते पुत्र थे शहीद शीशराम

हालांकि सेना में रहने के बावजूद, बुजुर्ग पिता की आंखें शीशराम गिल का नाम लेते ही नम हो जाती हैं, क्योंकि शीशराम के दो पुत्र हैं और बुढ़ापे का सहारा भी. दूसरी ओर शहीद वीरांगना को जब अपने पति की शहादत की खबर मिली थी तो उनके तीनों बच्चे छोटे-छोटे थे. ऐसे में वीरांगना ने दिल में दर्द लिए हुए अपनी आंखों से आंसू पोछे और अपने लाडलो के लालन-पालन में लग गईं.

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रिसता रहा खून, बढ़ता रहा शीशराम

जब छोटा लाडला सेना में भर्ती की तैयारी करने लगा तो वीरांगना के दिल में एक बार भी यह नहीं लगा कि बेटा उसी बॉर्डर पर जाएगा, जहां उसके पिता ने शहादत दी है. बल्कि गर्व से माथा ऊंचा हो गया. यही लगा कि मैंने मेरे पति की शहादत के दिन जो कसम ली थी, आज उसे पूरा होने का समय आ गया है. हंसते-हंसते अपने लाडले को सेना में देश की सेवा के लिए भेज दिया.

पढ़ें: कारगिल विजय दिवस: कैसे इस जाबांज ने 5 गोलियां खाकर भी दुश्मनों को किया 'पानी-पानी', सुनिए महावीर चक्र विजेता दिगेंद्र सिंह की जुबानी

शहीद शीशराम गिल की शौर्य गाथा

उस दिन 17 हजार 775 फीट की ऊंचाई पर त्रिशूल पर कब्जा करना था. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन तक पहुंचना बेहद मुश्किल था. पहले सीधी चढ़ाई और फिर दुश्मन की गोलाबारी का खतरा. इसके बावजूद आठ जाट रेजीमेंट के हवलदार शीशराम ने कमांडो टीम के नेतृत्व का जिम्मा लिया. सीधी चढ़ाई होने की वजह से ऊपर तक पहुंचना लगभग नामुमकिन था. लेकिन शीशराम ने न सिर्फ चढ़ाई में पहल की, बल्कि दुश्मन के आर्टीलरी और मोर्टार फायर से घायल होने के बावजूद वह लक्ष्य को हासिल करने की जिद पर अड़े रहे.

पढ़ेंः कारगिल विजय दिवस: नागौर के वीर सपूत ने तोलोलिंग हाइट्स पर की थी चढ़ाई, सीने पर गोली खाने के बाद भी दुश्मनों के छुड़ा दिए थे छक्के

पोस्ट की तरफ साहस और धैर्य के साथ शीशराम अपने काफिले के साथ पहुंचे थे. 9 जुलाई की सुबह अकेले शीशराम ने 15 में से आठ घुसपैठियों को मार गिराया था, और बाकी के 7 घुसपैठियों को जिंदा पकड़ने के लिए आगे बढ़ रहे थे.

रिसता रहा खून, बढ़ता रहा शीशराम

शीशराम की टांग बुरी तरह से घायल थी और खून लगातार रिस रहा था. अपने जख्मों से बेपरवाह गिल ने जब भी मौका मिला स्नाइपर और एलएमजी बर्स्ट से दुश्मन की पोस्ट पर हमले जारी रखे. नतीजा ये हुआ कि दुश्मन की पोस्ट पर तैनात पाकिस्तान का एक अधिकारी, दो जेसीओ और तीन अन्य रैंक के जवान ढेर हो गए. घायल शीशराम आखिरी सांस तक लक्ष्य हासिल करने के लिए टीम को प्रेरित करते शहीद हो गए. इस खास मिशन में हवलदार शीशराम की बहादुरी और निर्भीक नेतृत्व कौशल के लिए उन्हें वीर चक्र (मरणोपरांत) का सम्मान दिया गया.

झुंझुनू. वो योद्धा, जिसकी बहादुरी के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 21 साल पहले वीर चक्र से सम्मानित शहीद शीशराम गिल की कहानी यही दर्शाती है कि शहादत देने के बाद भी परिवार टूटते नहीं हैं और शहीद वीरांगनाएं भी केवल कहती नहीं हैं. बल्कि कर दिखाती हैं कि अपने बेटे को भी सीमा पर लड़ने के लिए भेजूंगी. शहीद शीशराम गिल के पिता भी फौज में रह चुके हैं और पति की शहादत देने के बाद भी शहीद वीरांगना सुरजी देवी ने अपने लाडले को भी सेना में भेज दिया. यानी परिवार की तीन पीढ़ियां सेना में हैं.

वीर चक्र से सम्मानित शहीद शीशराम गिल की कहानी

इकलौते पुत्र थे शहीद शीशराम

हालांकि सेना में रहने के बावजूद, बुजुर्ग पिता की आंखें शीशराम गिल का नाम लेते ही नम हो जाती हैं, क्योंकि शीशराम के दो पुत्र हैं और बुढ़ापे का सहारा भी. दूसरी ओर शहीद वीरांगना को जब अपने पति की शहादत की खबर मिली थी तो उनके तीनों बच्चे छोटे-छोटे थे. ऐसे में वीरांगना ने दिल में दर्द लिए हुए अपनी आंखों से आंसू पोछे और अपने लाडलो के लालन-पालन में लग गईं.

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रिसता रहा खून, बढ़ता रहा शीशराम

जब छोटा लाडला सेना में भर्ती की तैयारी करने लगा तो वीरांगना के दिल में एक बार भी यह नहीं लगा कि बेटा उसी बॉर्डर पर जाएगा, जहां उसके पिता ने शहादत दी है. बल्कि गर्व से माथा ऊंचा हो गया. यही लगा कि मैंने मेरे पति की शहादत के दिन जो कसम ली थी, आज उसे पूरा होने का समय आ गया है. हंसते-हंसते अपने लाडले को सेना में देश की सेवा के लिए भेज दिया.

पढ़ें: कारगिल विजय दिवस: कैसे इस जाबांज ने 5 गोलियां खाकर भी दुश्मनों को किया 'पानी-पानी', सुनिए महावीर चक्र विजेता दिगेंद्र सिंह की जुबानी

शहीद शीशराम गिल की शौर्य गाथा

उस दिन 17 हजार 775 फीट की ऊंचाई पर त्रिशूल पर कब्जा करना था. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन तक पहुंचना बेहद मुश्किल था. पहले सीधी चढ़ाई और फिर दुश्मन की गोलाबारी का खतरा. इसके बावजूद आठ जाट रेजीमेंट के हवलदार शीशराम ने कमांडो टीम के नेतृत्व का जिम्मा लिया. सीधी चढ़ाई होने की वजह से ऊपर तक पहुंचना लगभग नामुमकिन था. लेकिन शीशराम ने न सिर्फ चढ़ाई में पहल की, बल्कि दुश्मन के आर्टीलरी और मोर्टार फायर से घायल होने के बावजूद वह लक्ष्य को हासिल करने की जिद पर अड़े रहे.

पढ़ेंः कारगिल विजय दिवस: नागौर के वीर सपूत ने तोलोलिंग हाइट्स पर की थी चढ़ाई, सीने पर गोली खाने के बाद भी दुश्मनों के छुड़ा दिए थे छक्के

पोस्ट की तरफ साहस और धैर्य के साथ शीशराम अपने काफिले के साथ पहुंचे थे. 9 जुलाई की सुबह अकेले शीशराम ने 15 में से आठ घुसपैठियों को मार गिराया था, और बाकी के 7 घुसपैठियों को जिंदा पकड़ने के लिए आगे बढ़ रहे थे.

रिसता रहा खून, बढ़ता रहा शीशराम

शीशराम की टांग बुरी तरह से घायल थी और खून लगातार रिस रहा था. अपने जख्मों से बेपरवाह गिल ने जब भी मौका मिला स्नाइपर और एलएमजी बर्स्ट से दुश्मन की पोस्ट पर हमले जारी रखे. नतीजा ये हुआ कि दुश्मन की पोस्ट पर तैनात पाकिस्तान का एक अधिकारी, दो जेसीओ और तीन अन्य रैंक के जवान ढेर हो गए. घायल शीशराम आखिरी सांस तक लक्ष्य हासिल करने के लिए टीम को प्रेरित करते शहीद हो गए. इस खास मिशन में हवलदार शीशराम की बहादुरी और निर्भीक नेतृत्व कौशल के लिए उन्हें वीर चक्र (मरणोपरांत) का सम्मान दिया गया.

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