झुंझुनू. सच ही कहते हैं लोग कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि लोग पानी को अनावश्यक बर्बाद कर रहे हैं. राजस्थान में तो पानी की बूंद-बूंद अनमोल कही जाती है. वाटर हार्वेस्टिंग के लिए सरकार से लेकर आमजन भी प्रयासरत हैं. लेकिन पानी बचाने की परंपरा आज की नहीं पुरानी है. सम मरुस्थल पट्टी के इलाके झुंझुनू जिला मुख्यालय पर स्थित कमरुद्दीन शाह की दरगाह में जल संरक्षण का सालों पुराना तरीका भी है जिसे देखकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे. यह दरगाह जिस पहाड़ी से सटकर बनी है वहां से छोटी-छोटी नहरें बनाकर दरगाह तक पानी लाने का रास्ता बनाया गया है.
आज भी कारगर है तकनीक
हमारे पुरखों की बारिश का पानी बताने की सोच और उसके लिए तैयार की गई तकनीक आज भी कारगर है. छोटा-छोटी नहरों से पानी दरगाह में बनाई गई एक बड़ी नहर से होकर यहां बने खुले कुएं तक आता है. यहां आज भी पानी खींचने के लिए कई पहिएनुमा चरखी लगी हैं. यहां से पानी फिर छोटी-छोटी नालियों से पूरे दरगाह परिसर तक पहुंचता है जिससे यहां हरियाली विकसित की गई है. कई तरह के पौधे यहां लगाए गए हैं.
![Four pools are built in the dargah](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/9090371_jhn.png)
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सदियों आगे की सोचते थे हमारे पूर्वज
यहां के गद्दीनशीन एजाज नबी जिन्हें महापुरुष कहो, पीर औलिया कहो, संत कहो या फिर सूफी फकीर कहो, वे हमेशा आगे की सोचते थे. यही कारण है कि उन्होंने दो सदी पहले ही पानी सहजने की इस प्रणाली को अपना लिया जिसके लिए अब की सरकारों ने सोचना शुरू किया है. जबकि उन्होंने उस समय ही करीब 20 हजार वर्गफीट के पानी को इस तरह से जल प्रबंधन की प्रणाली के तहत सहेजा है जो आज भी अनवरत चली आ रही है.
![Water accumulates in the tank through the roofs](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/9090371_jhn1.png)
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दरगाह में आने वाले जायरिन इस पानी से वजु करते हैं और उसमें भी पानी की एक भी बूंद व्यर्थ नहीं की जाती. ऊपर के कुंड से वजु के लिए यदि आपने एक बाल्टी डाली तो पुरा पानी वजुखाना में आ जाएगा. वजु किया हुआ पानी भी व्यर्थ नहीं जाएगा और यह पानी बागीचे के लिए कुंड में चल जाता है. इससे पानी किसी भी हालत में बर्बाद नहीं होता है.
करीब 200 साल पुराना है इतिहास
इस दरगाह की बात की जाए तो इसका इतिहास करीब 200 वर्ष पुराना है. ऐसे में यह तय है कि बनावट के समय ही इसमें इस तरह की नहरें बनाई गईं थीं. कान्हा पहाड़ की तलहटी में छोटी पहाड़ी पर बनी हुई इस दरगाह में कायमखानियों के पीर कमरुद्दीन शाह रहा करते थे. पानी बचाने की इस अनूठी परंपरा के अलाावा यहां एक अन्य परंपरा भी थी कि दरगाह पर दीपावली पर दीप जलाए जाते हैं. हिंदू और मुस्लिम समाज के लोग एक साथ मिलकर दरगाह पर दिवाली मनाते हैं. बताया जाता है कि दरगाह में दिवाली मनाने की यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है.