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स्पेशल स्टोरी: 175 साल से दिन के उजाले में सड़क पर हो रही बिना संवाद की रामलीला...आज भी रोमांच बरकरार

रामलीला का मंचन देश के हर कोने में होता है. लेकिन झुंझुनूं में होने वाली रामलीला सबसे अलग है. झुंझुनूं के बिसाऊ कस्बे में मूक रामलीला दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती है. यहां की बिना संवाद के रामलीला शायद दुनिया में अपनी तरह की एक मात्र रामलीला है. देखिए स्पेशल रिपोर्ट

Silent Ramlila in Bissau, बिसाऊ में मूक रामलीला
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Published : Oct 3, 2019, 10:24 PM IST

झुंझुनूं. भारत का ऐसा कोई कोना नहीं होगा. जहां किसी ना किसी रूप में रामलीला, रामायण का मंचन नहीं होता हो. लेकिन झुंझुनूं में होने वाली रामलीला सबसे हटकर है. विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक मूक रामलीला झुंझुनू जिले के बिसाऊ कस्बे में होती है. वर्ष 1949 से गढ़ के पास बाजार में मुख्य सड़क पर लीला का मंचन होता है. बिना संवाद बोले संपन्न होने वाली यहां की रामलीला शायद दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र रामलीला है.

झुंझुनूं के बिसाऊ में होता है मूक रामलीला..देखिए स्पेशल रिपोर्ट

रामलीला के लिए स्टेज नहीं, सड़क पर होता है मंचन
एक बात और यहां की रामलीला के लिए स्टेज नहीं लगाया जाता है, बल्कि मुख्य बाजार में सड़क पर मिट्टी बिछाकर उत्तर दिशा में लकड़ी से बनी अयोध्या और दक्षिण दिशा में लंका बीच में पंचवटी आश्रम बनाया जाता है, ऊपर बंदनवार बांधी जाती है. उत्तर व दक्षिण में दो दरवाजे बनाए जाते हैं, जिन पर लगाए गए पर्दों पर रामायण की चौपाइयां लिखी जाती हैं. कलाकार मुखौटे लगाकर मैदान में नर्तन करते हुए शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक लीला का मंचन करते हैं. बगैर संवाद बोले स्वरूपों के मुखौटे लगाकर लंबे मैदान में लीला का मंचन किया जाता है. कागज, गत्ते व रंगों से मुखौटे और हथियार बनाए जाते हैं. ढोल ताशों की आवाज पर युवा कलाकार नाच कूद कर अभिनय करते हैं.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: राजसमंद में उज्जवला योजना की हकीकत...1.46 लाख गैस कनेक्शन बांटे..लेकिन फिर भी चूल्हे पर पक रहा खाना

यहां की रामलीला इसलिए है सबसे हटकर
दुनिया में हर जगह संवादों के माध्यमों से रामलीला का मंचन होता है. लेकिन इसमें कोई संवाद नहीं होता है. हर जगह रामलीला का मंचन रात्रि में होता है. लेकिन यहां दिन के उजाले में रामलीला होती है. यह रामलीला ढोल ताशों पर होती हैं यानी जो बिट्स होती है उसके अनुसार अभिनय होता है. इसमें कलाकार मुस्लिम भी होते हैं. हालांकि कस्बेवासी इसको प्रचारित नहीं करना चाहते और कलाकार भी बाहर से आए लोगों को ये बताना पसंद नहीं करते कि यह लोग अलग समाज से हैं.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट : हाड़ौती में 70 फीसदी फसलें बारिश से बर्बाद, किसानों के सामने अगली फसल के लिए भी संकट

मूक रामलीला का यह है इतिहास
बताया जाता है कि 177 वर्ष पहले जमुना नाम की एक साध्वी ने बच्चों को एकत्र करके रामाणा जोहड़ पर लीला प्रारंभ की थी. समय के बारे में अलग-अलग मत भी है. लेकिन यह तय है कि 150 से 180 वर्ष पुरानी बात है. उस समय शायद पात्रों को संवाद बोलने में परेशानी आने के चलते और लीला में रावण के वंश सहित हनुमान, बाली, सुग्रीव, जामवंत, नल-नील, दधिमुख आदि पात्रों के चेहरे पर मुखौटे लगाकर लीला का मंचन किया. तब से आज तक बिसाऊ में मूक रामलीला हो रही है. रामलीला मंचन के दौरान एक पंडित रामायण की चौपाइयों का पाठ करता रहता है. रामलीला में राम-लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता के मुकुट चांदी के बने होते हैं. रामलीला में अन्य पात्रों के अलावा दो विदूषक भी होते हैं. जो लोगों का मनोरंजन करते हैं. रामलीला का मंचन आसोज शुक्ल की एकम से पूर्णिमा तक होती है. राम जन्म से राज्याभिषेक तक के प्रसंग मंचित किए जाते हैं.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: प्रदेश की 1478 ग्राम पंचायतों में कोई पशु चिकित्सालय नहीं, इलाज के लिए दर-दर भटकते हैं पशुपालक​​​​​​​

आज भी श्रद्धा से निभा रहे परंपरा
पहले शुरू हुई परंपरा को कस्बेवासी अब भी श्रद्धा से निभा रहे हैं. बिसाऊ की रामलीला के प्रति स्थानीय लोगों समेत आसपास के गांव के लोगों में भी काफी उत्सुकता रहती है. बिसाऊ की रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से आने वाले दर्शकों की भीड़ रहती है. प्रबंध समिति का कार्यालय जेके ग्रुप के परिवारजनों की हवेली में है, इसलिए इस हवेली की ख्याति रामलीला वाली हवेली के नाम से भी है, हवेली में गत 50 वर्षों के सभी मुखौटे संग्रहित है.

Silent Ramlila in Bissau, बिसाऊ में मूक रामलीला
बिना संवाद बोले संपन्न होने वाली रामलीला

झुंझुनूं. भारत का ऐसा कोई कोना नहीं होगा. जहां किसी ना किसी रूप में रामलीला, रामायण का मंचन नहीं होता हो. लेकिन झुंझुनूं में होने वाली रामलीला सबसे हटकर है. विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक मूक रामलीला झुंझुनू जिले के बिसाऊ कस्बे में होती है. वर्ष 1949 से गढ़ के पास बाजार में मुख्य सड़क पर लीला का मंचन होता है. बिना संवाद बोले संपन्न होने वाली यहां की रामलीला शायद दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र रामलीला है.

झुंझुनूं के बिसाऊ में होता है मूक रामलीला..देखिए स्पेशल रिपोर्ट

रामलीला के लिए स्टेज नहीं, सड़क पर होता है मंचन
एक बात और यहां की रामलीला के लिए स्टेज नहीं लगाया जाता है, बल्कि मुख्य बाजार में सड़क पर मिट्टी बिछाकर उत्तर दिशा में लकड़ी से बनी अयोध्या और दक्षिण दिशा में लंका बीच में पंचवटी आश्रम बनाया जाता है, ऊपर बंदनवार बांधी जाती है. उत्तर व दक्षिण में दो दरवाजे बनाए जाते हैं, जिन पर लगाए गए पर्दों पर रामायण की चौपाइयां लिखी जाती हैं. कलाकार मुखौटे लगाकर मैदान में नर्तन करते हुए शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक लीला का मंचन करते हैं. बगैर संवाद बोले स्वरूपों के मुखौटे लगाकर लंबे मैदान में लीला का मंचन किया जाता है. कागज, गत्ते व रंगों से मुखौटे और हथियार बनाए जाते हैं. ढोल ताशों की आवाज पर युवा कलाकार नाच कूद कर अभिनय करते हैं.

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यहां की रामलीला इसलिए है सबसे हटकर
दुनिया में हर जगह संवादों के माध्यमों से रामलीला का मंचन होता है. लेकिन इसमें कोई संवाद नहीं होता है. हर जगह रामलीला का मंचन रात्रि में होता है. लेकिन यहां दिन के उजाले में रामलीला होती है. यह रामलीला ढोल ताशों पर होती हैं यानी जो बिट्स होती है उसके अनुसार अभिनय होता है. इसमें कलाकार मुस्लिम भी होते हैं. हालांकि कस्बेवासी इसको प्रचारित नहीं करना चाहते और कलाकार भी बाहर से आए लोगों को ये बताना पसंद नहीं करते कि यह लोग अलग समाज से हैं.

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मूक रामलीला का यह है इतिहास
बताया जाता है कि 177 वर्ष पहले जमुना नाम की एक साध्वी ने बच्चों को एकत्र करके रामाणा जोहड़ पर लीला प्रारंभ की थी. समय के बारे में अलग-अलग मत भी है. लेकिन यह तय है कि 150 से 180 वर्ष पुरानी बात है. उस समय शायद पात्रों को संवाद बोलने में परेशानी आने के चलते और लीला में रावण के वंश सहित हनुमान, बाली, सुग्रीव, जामवंत, नल-नील, दधिमुख आदि पात्रों के चेहरे पर मुखौटे लगाकर लीला का मंचन किया. तब से आज तक बिसाऊ में मूक रामलीला हो रही है. रामलीला मंचन के दौरान एक पंडित रामायण की चौपाइयों का पाठ करता रहता है. रामलीला में राम-लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता के मुकुट चांदी के बने होते हैं. रामलीला में अन्य पात्रों के अलावा दो विदूषक भी होते हैं. जो लोगों का मनोरंजन करते हैं. रामलीला का मंचन आसोज शुक्ल की एकम से पूर्णिमा तक होती है. राम जन्म से राज्याभिषेक तक के प्रसंग मंचित किए जाते हैं.

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आज भी श्रद्धा से निभा रहे परंपरा
पहले शुरू हुई परंपरा को कस्बेवासी अब भी श्रद्धा से निभा रहे हैं. बिसाऊ की रामलीला के प्रति स्थानीय लोगों समेत आसपास के गांव के लोगों में भी काफी उत्सुकता रहती है. बिसाऊ की रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से आने वाले दर्शकों की भीड़ रहती है. प्रबंध समिति का कार्यालय जेके ग्रुप के परिवारजनों की हवेली में है, इसलिए इस हवेली की ख्याति रामलीला वाली हवेली के नाम से भी है, हवेली में गत 50 वर्षों के सभी मुखौटे संग्रहित है.

Silent Ramlila in Bissau, बिसाऊ में मूक रामलीला
बिना संवाद बोले संपन्न होने वाली रामलीला
Intro:झुंझुनू। भारत का ऐसा कोई कोना नहीं होगा जहां किसी ना किसी रूप में रामलीला, रामायण का मंचन नहीं होता है, उनकी गाथाओं को नहीं गाया जाता है। लेकिन हम आज सबसे हटकर होने वाली रामलीला के बारे में बताने जा रहे हैं, जी हां विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक मुक रामलीला जिला झुंझुनू के बिसाऊ कस्बे में होती है। वर्ष 1949 से गढ के पास बाजार में मुख्य सड़क पर लीला का मंचन होता है बिना संवाद बोले संपन्न होने वाली यहां की रामलीला शायद दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र रामलीला है। यहां की रामलीला के लिए स्टेज नहीं लगाया जाता है, बल्कि मुख्य बाजार में सड़क पर मिट्टी बिछाकर उत्तर दिशा में लकड़ी से बनी अयोध्या व दक्षिण दिशा में लंका तथा बीच में पंचवटी आश्रम बनाया जाता है, ऊपर वंदनवार बांधी जाती है। उत्तर व दक्षिण में दो दरवाजे बनाए जाते हैं, जिन पर लगाए गए परदों पर रामायण की चौपाइयां लिखी जाती हैं। कलाकार मुखोटे लगाकर मैदान में नर्तन करते हुए शाम 4:00 बजे से रात 8:00 बजे तक लीला का मंचन करते हैं बगैर संवाद बोले स्वरूपों के मुखोटे लगाकर लंबे मैदान में लीला का मंचन किया जाता है। कागज, गत्ते व रंगों से मुखोटे व हथियार बनाए जाते हैं। ढोल ताशों की आवाज पर युवा कलाकार नाच कूद कर अभिनय करते हैं।


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इसलिए है सबसे हटकर
दुनिया में हर जगह संवादों के माध्यमों से रामलीला का मंचन होता है लेकिन इसमें कोई संवाद नहीं होता है हर जगह रामलीला का मंचन रात्रि में होता है लेकिन यहां दिन के उजाले में रामलीला होती है। यह रामलीला ढोल ताशों पर होती हैं यानी जो बिट्स होती है उसके अनुसार अभिनय होता है इसमें कलाकार मुस्लिम भी होते हैं। हालांकि कस्बेवासी इसको प्रचारित नहीं करना चाहते और कलाकार भी बाहर से आए लोगों को ये बताना पसंद नहीं करते कि यह लोग अलग समाज से हैं।

यह है इसका इतिहास

बताया जाता है कि 177 वर्ष पूर्व जमुना नाम की एक साध्वी ने बच्चों को एकत्र करके रामाणा जोहड़ पर लीला प्रारंभ की थी। समय के बारे में अलग-अलग मत भी है लेकिन यह तय है कि 150 से 180 वर्ष पुरानी बात है। उस समय शायद पात्रों को संवाद बोलने में परेशानी आने के चलते और लीला में रावण के वंश सहित हनुमान, बाली, सुग्रीव, जामवंत, नल-नील, दधिमुख आदि पात्रों के चेहरे पर मुखोटे लगाकर लीला का मंचन किया। तब से आज तक बिसाऊ में मुक रामलीला हो रही है रामलीला मंचन के दौरान एक पंडित रामायण की चौपाइयों का पाठ करता रहता है रामलीला में राम-लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता के मुकुट चांदी के बने होते हैं। रामलीला में अन्य पात्रों के अलावा दो विदूषक भी होते हैं जो लोगों का मनोरंजन करते हैं रामलीला का मंचन आसोज शुक्ल कि एकम से पूर्णिमा तक होती है। राम जन्म से राज्याभिषेक तक के प्रसंग मंचित किए जाते हैं।

आज भी निभा रहे श्रद्धा से
पहले शुरू हुई परंपरा को कस्बेवासी अब भी श्रद्धा से निभा रहे हैं बिसाऊ की रामलीला के प्रति स्थानीय लोगों समेत आसपास के गांव के लोगों में भी काफी उत्सुकता रहती है। बिसाऊ की रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से आने वाले दर्शकों की भीड़ रहती है। प्रबंध समिति का कार्यालय जेके ग्रुप के परिवारजनों की हवेली में है, इसलिए इस हवेली की ख्याति रामलीला वाली हवेली के नाम से भी है, हवेली में गत 50 वर्षों के सभी मुखोटे संग्रहित है।

बाइट 1 रवि प्रकाश मिश्रा, कस्बे वासी

बाईट 2 अशोक कुमार जांगिड़, बाल कलाकार

बाइट 3 रोहित, बाल कलाकार

बाइट 4 सुमित, बाल कलाकार

बाइट 5 प्रमोद आर्य, कस्बे वासी

बाइट 6 विमल कुमार, लक्ष्मण के रूप में कलाकार

बाइट7 पंडित सुनील शास्त्री, अध्यक्ष, समिति



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