झुंझुनू. शिवाजी महाराज का नाम आते ही एक महान योद्धा की छवि उभर कर आती है. एक ऐसे राजा का अक्स सामने आता है जिसने अपनी कूटनीति से दिल्ली के शहंशाह औरंगजेब को नाको चने चबाने पर मजबूर दिया. वहीं, गहराई से उनका अध्ययन करने पर सामने आता है कि उन्होंने अपने राज्य में शांति काल में स्वराज भी लागू किया था.
ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक संगठनों में शामिल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बार शिवाजी महाराज के जन्मोत्सव को उनके योद्धा के अलावा, हिंदू समाज के प्रतिनिधि शासक के साथ ही उनके साम्राज्य की भावना, उनके शासन प्रबंध, उनकी न्याय व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था की ओर भी ध्यान खींचने का प्रयास करेगा, क्योंकि वह आज भी प्रासंगिक हैं.
आज का मंत्रिमंडल उसका ही है रूप
छत्रपति शिवाजी महाराज ने राज्य की सम्पूर्ण व्यवस्था संचालन के लिए जिन विभागों की रचना की और उसमें योग्य लोगों की नियुक्ति की वह रचना 'अष्टप्रधान' नाम से प्रचलित हुई, जो उनके संसार के जाने के बाद भी लंबे समय तक चलती रही. शिवाजी महाराज ने अपने सहयोगियों पर भरोसा किया और उन पर कार्य की कसावट भी रखी. उन्हें विभिन्न प्रकार के काम सौंपकर उनकी योग्यता का स्वराज्य के लिए भरपूर उपयोग भी किया.
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स्वराज्य के प्रारंभिक काल में शिवाजी महाराज के राज्य संचालन की टोली छोटी थी. लेकिन बाद में मंत्रिमंडल के अंतर्गत पदों, उनके अधिकार और कर्तव्य की स्पष्ट रूपरेखा खींची गई. महाराज के राज्य संचालन के दो भाग थे. एक सामान्य प्रशासन और दूसरा सैन्य शक्ति. प्रशासन का कार्य इन अष्टप्रधानों की देखरेख में सुचारू रूप से चलता रहा.
न्याय व्यवस्था को भी दिया था अलग ग्रुप
शिवाजी महाराज ने न्याय व्यवस्था को प्रशासनिक रूप प्रदान किया था. सबको तत्काल और सही न्याय प्राप्त हो, इसके लिए उन्होंने यह पद स्थापित किया. राज्याभिषेक के समय इसे 'न्यायाधीश' नाम दिया गया. न्यायाधीश को भी युद्धों में भाग लेने के लिए मनाई थी. इसका यह उद्देश्य था कि धर्म और न्याय व्यवस्था के प्रतिनिधि जनता के लिए हमेशा उपलब्ध रहें.
समाज को शिवाजी महाराज से जोड़ेगा संघ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बार कई कार्यक्रम आयोजित करके समाज को शिवाजी महाराज से जोड़ने का प्रयास करेगा. शिवाजी की ओर से किए गए सुधार आज भी प्रासांगिक है. साथ ही उन पर चर्चा, विचार गोष्ठी, प्रबोधन सहित अन्य कार्यक्रम करवाए जाएंगे. शिवाजी महाराज के साम्राज्य की विशेषताएं और वर्तमान समय में शिवाजी महाराज की प्रासांगिकता पर चर्चा की जाएगी.
इसके अलावा 1 जून, सोमवार को परिवारों में बालकों को शिवाजी के बाल रूप से परिचित कराने, शिवाजी के बाल्यकाल से संबंधित घटनाओं, कथाओं, फिल्मों, गीत-कविताओं का उपयोग करते हुए योजना बनाना, संघ के विद्यार्थी भाग के स्वयंसेवको को ध्यान में रखते हुए कथा-कहानी के माध्यम से विषय रखने के साथ ही 'मैं हूं बाल शिवाजी' नामक आयोजन किया जाएगा.
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इसी तरह 02 जून, मंगलवार को 'मैं हूं जीजामाता' विषय पर परिवारों में मातृशक्ति को जीजामाता बनने की प्रेरणा देने वाले प्रसंगों के माध्यम से प्रबोधन करना. जीजामाता विषय पर बौद्धिक, प्रश्नावली, फिल्म-गीत इत्यादि विद्याओं का उपयोग करते हुए जीजामाता के चरित्र से अवगत कराया जाएगा.
वहीं, 03 जून को शिवाजी विषयक कार्यक्रम में शिवाजी के तरूणवय से युवाओं को परिचित कराना, घटनाओं को सामने रखना, इन विषयों पर फिल्म, गीत, नाटक दिखाना और प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाएगा. इसी तरह 5 और 6 जून को साम्राज्य की विशेषताएं बताई जाएंगी. इन दो दिनों में समाज के बुद्धिजीवी वर्ग अधिवक्ता, चिकित्सक, प्राध्यापक, उद्योगपति, सीए, सामाजिक कार्यकर्ता, सामाजिक सद्भावना बैठक की सूची, संपर्क सूची के लोग और संघ के कार्यविभाग, गतिविधियां होंगी.