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राजस्थान में चल रहे सियासी ड्रामे के बीच झुंझुनू का ये किस्सा भी है खास - CM Ashok Gehlot

राजस्थान में चल रहे सियासी ड्रामे में राजस्थान के राजनीतिक घरानों की पुरानी राजनीतिक अदावतों के अपने समीकरण हैं. एक ऐसी ही बड़ी राजनीतिक अदावत है, जो वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में खेली गई थी. क्या है यह राजनीतिक अदावत, पढ़ें पूरी खबर...

Rajasthan political update,  Rajasthan Assembly Elections 2013
यह राजनीतिक अदावत किस्सा भी खास है...
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Published : Aug 7, 2020, 10:41 PM IST

झुंझुनू. राजस्थान में चल रहे सियासी ड्रामे में राजस्थान के राजनीतिक घरानों की पुरानी राजनीतिक अदावतों के अपने समीकरण हैं. यह सच भी है कि राजनीति की अदावत कभी पुरानी नहीं होती और राजनीतिक पंडितों के अनुसार पुरानी कसक फ्लोर टेस्ट होने की स्थिति में वापस सतह पर आ सकती है.

मंडावा विधानसभा से 7 बार के विधायक और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामनारायण चौधरी ने साल 2013 के विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक विरासत अपनी पुत्री रीटा चौधरी को सौंप दी. लेकिन साल 2013 के विधानसभा चुनाव में रीटा चौधरी को कांग्रेस की ओर से टिकट नहीं मिला. इस साल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास विश्वस्त कहे जाने वाले तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान को टिकट मिला.

यह राजनीतिक अदावत किस्सा भी खास है...

अदावतों के घेरे में फंस गई रीटा चौधरी

कहा जाता है कि रीटा चौधरी के पिता रामनारायण चौधरी से पुरानी राजनीतिक अदावत रखने वाले कद्दावर जाट नेता शीशराम ओला ने चंद्रभान को आश्वासन दिया था कि वह उनकी पूरी मदद करेंगे और मंडावा विधानसभा का चुनाव जितवा देंगे. वहीं, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान की अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामनारायण चौधरी से भी पुरानी अदावत थी क्योंकि उनकी वजह से अपना गृह क्षेत्र होने के बावजूद वे यहां नहीं लौट पा रहे थे.

पढ़ें- जैसलमेर: होटल सूर्यगढ़ में BSP विधायकों को CJM कोर्ट के कर्मचारियों ने नोटिस तामील करवाया

अदावतों ने अपना काम किया तो रीटा चौधरी चौधरी ने भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से गुहार लगाई, लेकिन बात नहीं बनी. इस चुनाव में रीटा चौधरी भले ही खुद नहीं जीत पाई, लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान की जमानत जब्त करवाते हुए दूसरे स्थान पर रहीं.

Rajasthan political update,  Rajasthan Assembly Elections 2013
रीटा चौधरी

पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस में आई वापस

साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भी बुरी गत हुई और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत केंद्र की राजनीति करने लग गए. इसके बाद राजस्थान के राजनीति की कमान पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के हाथ में आ गई. सचिन पायलट ने रीटा चौधरी की कांग्रेस में वापसी करवाई. उन्हें खुले रूप से पायलट खेमे का माना जाने लगा क्योंकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने पोस्टरों में स्थान तक नहीं दिया. चौधरी ने अपने पोस्टरों में केवल सचिन पायलट और राहुल गांधी का नाम रखा. लेकिन रीटा चौधरी यह चुनाव मामूली मतों से हार गई.

इसके बाद मंडावा विधानसभा से जीते हुए विधायक नरेंद्र खीचड़ सांसद बने और मंडावा विधानसभा में उपचुनाव करवाया गया. बताया जाता है कि उपचुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रीटा चौधरी को पूरी तरह से फ्री हैंड दे दिया और सीएमओ से डायरेक्ट काम होने लगे.

पढ़ें- पायलट के 'रायचंद' ही उन्हें धोखा देने वाले, वरना आज उनके साथ 45 विधायक होते- प्रशांत बैरवा

रीटा चौधरी के इशारों पर क्षेत्र में तबादले हुए और उनके खुद के गांव में कॉलेज खोला गया. इसके बाद वे उपचुनाव में जीत गई और विधायक बन गई. लेकिन आज राजस्थान में चल रहे सियासी घमासान के बीच रीटा चौधरी गहलोत खेमे में बैठी हैं. इस दौरान कयास लगाए जा रहे हैं कि ही कहीं ना कहीं सचिन पायलट खेमे ने अपनी गिनती में उनको भी माना होगा, लेकिन राजनीति समय का खेल है कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता.

झुंझुनू. राजस्थान में चल रहे सियासी ड्रामे में राजस्थान के राजनीतिक घरानों की पुरानी राजनीतिक अदावतों के अपने समीकरण हैं. यह सच भी है कि राजनीति की अदावत कभी पुरानी नहीं होती और राजनीतिक पंडितों के अनुसार पुरानी कसक फ्लोर टेस्ट होने की स्थिति में वापस सतह पर आ सकती है.

मंडावा विधानसभा से 7 बार के विधायक और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामनारायण चौधरी ने साल 2013 के विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक विरासत अपनी पुत्री रीटा चौधरी को सौंप दी. लेकिन साल 2013 के विधानसभा चुनाव में रीटा चौधरी को कांग्रेस की ओर से टिकट नहीं मिला. इस साल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास विश्वस्त कहे जाने वाले तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान को टिकट मिला.

यह राजनीतिक अदावत किस्सा भी खास है...

अदावतों के घेरे में फंस गई रीटा चौधरी

कहा जाता है कि रीटा चौधरी के पिता रामनारायण चौधरी से पुरानी राजनीतिक अदावत रखने वाले कद्दावर जाट नेता शीशराम ओला ने चंद्रभान को आश्वासन दिया था कि वह उनकी पूरी मदद करेंगे और मंडावा विधानसभा का चुनाव जितवा देंगे. वहीं, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान की अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामनारायण चौधरी से भी पुरानी अदावत थी क्योंकि उनकी वजह से अपना गृह क्षेत्र होने के बावजूद वे यहां नहीं लौट पा रहे थे.

पढ़ें- जैसलमेर: होटल सूर्यगढ़ में BSP विधायकों को CJM कोर्ट के कर्मचारियों ने नोटिस तामील करवाया

अदावतों ने अपना काम किया तो रीटा चौधरी चौधरी ने भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से गुहार लगाई, लेकिन बात नहीं बनी. इस चुनाव में रीटा चौधरी भले ही खुद नहीं जीत पाई, लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान की जमानत जब्त करवाते हुए दूसरे स्थान पर रहीं.

Rajasthan political update,  Rajasthan Assembly Elections 2013
रीटा चौधरी

पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस में आई वापस

साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भी बुरी गत हुई और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत केंद्र की राजनीति करने लग गए. इसके बाद राजस्थान के राजनीति की कमान पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के हाथ में आ गई. सचिन पायलट ने रीटा चौधरी की कांग्रेस में वापसी करवाई. उन्हें खुले रूप से पायलट खेमे का माना जाने लगा क्योंकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने पोस्टरों में स्थान तक नहीं दिया. चौधरी ने अपने पोस्टरों में केवल सचिन पायलट और राहुल गांधी का नाम रखा. लेकिन रीटा चौधरी यह चुनाव मामूली मतों से हार गई.

इसके बाद मंडावा विधानसभा से जीते हुए विधायक नरेंद्र खीचड़ सांसद बने और मंडावा विधानसभा में उपचुनाव करवाया गया. बताया जाता है कि उपचुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रीटा चौधरी को पूरी तरह से फ्री हैंड दे दिया और सीएमओ से डायरेक्ट काम होने लगे.

पढ़ें- पायलट के 'रायचंद' ही उन्हें धोखा देने वाले, वरना आज उनके साथ 45 विधायक होते- प्रशांत बैरवा

रीटा चौधरी के इशारों पर क्षेत्र में तबादले हुए और उनके खुद के गांव में कॉलेज खोला गया. इसके बाद वे उपचुनाव में जीत गई और विधायक बन गई. लेकिन आज राजस्थान में चल रहे सियासी घमासान के बीच रीटा चौधरी गहलोत खेमे में बैठी हैं. इस दौरान कयास लगाए जा रहे हैं कि ही कहीं ना कहीं सचिन पायलट खेमे ने अपनी गिनती में उनको भी माना होगा, लेकिन राजनीति समय का खेल है कब बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता.

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