झुन्झुनूं. हरियाणा की सीमा से लगती हुई झुंझुनू लोकसभा सीट में सीकर जिले के फतेहपुर सहित कुल 8 विधानसभा सीटें हैं . यह सीट कांग्रेस के कद्दावर नेता शीशराम ओला की सीट रही है और लगभग दो दशक तक उनके नाम के बिना झुंझुनू की राजनीति अधूरी थी. उनका रुतबा सरपंच के चुनाव से लेकर लोकसभा तक था. इसके साथ ही नेशनल राजनीति में भी उनकी धाक हुआ करती थी. यही कारण रहा कि जहां लगातार कांग्रेस तीन लोकसभा चुनाव जीती. झुंझुनू कांग्रेस का गढ़ बना रहा, लेकिन, उनकी मृत्यु के 6 माह बाद ही लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज कर डाली.
गत चुनाव में एक बहुत ही रोचक बात यह रही थी कि विरोधियों ने शीशराम ओला की पुत्रवधू राजबाला ओला को हराने के लिए उनके ही नाम की एक अन्य महिला राजबाला को चुनाव में खड़ा कर दिया था. केवल नाम की वजह से राजबाला नाम कि वह महिला 12 प्रत्याशियों में चौथे नंबर पर ही थी. इस महिला से आम आदमी पार्टी, सीपीआई एम एल और बीएसपी जैसी पार्टियां भी पीछे रह गई थी. हालांकि भाजपा की संतोष अहलावत इतने ज्यादा मतों से जीते की राजबाला नाम की दूसरी महिला को मिले मतों से चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं हो पाया. वहीं, गत विधानसभा चुनाव की बात करें तो जिले में 5 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. भाजपा केवल 2 सीटें जीत पाई तो बसपा के खाते में भी एक सीट गई. जबकि, 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 2 व कांग्रेस मात्र 1 सीट जीतने में कामयाब हो पाई. वहीं तीन सीटों पर निर्दलीय, 1 सीट बसपा जीती थी. हालांकि तत्कालीन सूरजगढ़ विधायक संतोष अहलावत के सांसद बन जाने पर खाली हुई सीट को कांग्रेस ने जीतकर भाजपा के बराबरी पहुंच गई थी. इस उपचुनाव में कांग्रेस के श्रवण कुमार ने भाजपा के कद्दावर नेता दिगंबर सिंह को शिकस्त दी थी.
झुंझुनू और शीशराम ओला एक ही नाम
यदि झुंझुनू लोकसभा का इतिहास खंगाला जाए तो कद्दावर नेता शीशराम ओला की यह कर्मभूमि बनी रही है. उनका इस सीट पर लगातार 1996 से 2009 कब्जा रहा और उन्होंने यहां से 5 बार जीत दर्ज की थी. उनकी मृत्यु होने के बाद 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने उनकी पुत्रवधू राजबाला ओल को टिकट दिया. लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा. यहां पर 2014 में भाजपा की संतोष अहलावत ने 233835 मतों से भारी जीत दर्ज की थी. यहां पर कांग्रेस की राजबाला को 254347 (25.42%) मत, भाजपा की संतोष को 488182(48.79%) मत मिले थे. उस समय विधायक राजकुमार शर्मा को 206268 (20.62%) वोट मिले थे. बीएसपी को 1.04% मत मिले. वहीं, 2009 का लोकसभा चुनाव में शीशराम ओला ने भाजपा के दशरथ सिंह शेखावत को 65332 मतों से हराया. इस सीट पर कांग्रेस के ओला को 50.89 प्रतिशत मत मिले. जबकि, भाजपा के दशरथ सिंह को 40.04 मत मिले थे. वहीं बीएसपी को 3. 65 मत मिले थे. इसके अलावा अन्य कोई भी 7000 से ज्यादा मत हासिल कर पाया. इसी प्रकार 2004 के लोकसभा चुनाव में शीश राम ओला ने 23355 मतों से भाजपा की संतोष अहलावत को शिकस्त दी थी.
यहां शीशराम ओला को 274168 मत तो भाजपा की संतोष अहलावत को 250813 मत मिले थे . वहीं पूर्व विधायक रणवीर सिंह गुढा ने रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति से चुनाव लड़ा और वे 111696 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे. वहीं पूर्व सांसद कैप्टन अयूब खान भी चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें केवल 23037 मत मिले और जमानत जब्त हुई . इसके अलावा अन्य सारे छोटे दल 7000 से नीचे नीचे ही रहे. जानकारों का कहना है कि 2014 के चुनाव में मुद्दों की बात की जाए तो मोदी लहर का असर तो था ही लेकिन शीशराम ओला का इस चुनाव में नहीं होना ही कांग्रेस की हार का बड़ा कारण था. नेशनल लेवल के मुद्दे झुंझुनू की की राजनीति को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाते थे. क्योंकि स्थानीय स्तर पर शीश राम ओला का बड़ा जन आधार था . जाट आरक्षण के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी में शेखावाटी की सीकर से चूरू की सीट अपने खाते में ले ली थी. लेकिन शीशराम ओला उस समय भी जीतने में सफल रहे थे. शीशराम ओला इतने दूरदर्शी थे कि उन्होंने जाट आरक्षण के मुद्दे की गंभीरता समझते हुए पहले ही अनेक मंच से इसके लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया. यही कारण रहा कि जाट मतदाताओं की सहानुभूति उनके साथ रही.