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Special: शेखावाटी के जिस बाबा को लोग कहते थे बावलिया, उन्हीं के आर्शीवाद से बिड़ला बने बड़े उद्योगपति - अघोर पंथ का अनुसरण

शेखावाटी के झुंझुनू जिले में चिड़ावा कस्बे में इष्ट देव को कई लोग बावलिया बाबा कहते हैं. बुगाला में जन्मे परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा ने चिड़ावा में रहते हुए लोगों को अनेक चमत्कार दिखाए हैं. उन्हें शेखावटी का साईं बाबा भी माना जाता है. इनकी महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके आशीर्वाद की वजह से ही बिड़ला परिवार देश के प्रमुख उद्योगपतियों में शामिल है. पढ़ें पूरी खबर...

Jhunjhunun News, Special News, बावलिया बाबा, बिड़ला परिवार
शेखावाटी के साईं माने जाते हैं बावलिया बाबा
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Published : Nov 8, 2020, 10:26 PM IST

झुंझुनू. क्या आपने सुना है कि कोई अपने आराध्य को पागल कहे. शेखावाटी के झुंझुनू जिले के चिड़ावा कस्बे में लोग अपने इष्ट देव को बावलिया बाबा कहते हैं. यहां की स्थानीय भाषा में पागल को बावला कहा जाता है. बताया जाता है कि बुगाला में जन्मे परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा ने चिड़ावा में रहते हुए लोगों को अनेक चमत्कार दिखाए हैं.

शेखावाटी के साईं माने जाते हैं बावलिया बाबा

देश के बड़े उद्योगपति घरानों में शामिल बिड़ला परिवार के लिए भी ये माना जाता है कि जब वो अपने मूल स्थान चिड़ावा से व्यापार के लिए बाहर निकले तो उनको इन्हीं बावलिया बाबा ने आशीर्वाद दिया. लोग मानते हैं कि उनके आशीर्वाद की वजह से ही बिरला परिवार देश के प्रमुख उद्योगपतियों में शामिल है. खुद बिरला परिवार भी ये बात मानता है और यही कारण है कि उनके मंदिर में उन्होंने पूरा सहयोग दिया है.

करीब 117 साल पहले हुआ था बावलिया बाबा का जन्म

साल 1903 में राजस्थान के झुंझनू जिले में जन्मे गणेश नारायण जी की श्रद्धा बचपन से ही अघोर पंथ में थी. कहा जाता है कि साल 1942 में उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब झुंझनू के एक परिवार ने उनसे मां दुर्गा की आराधना कर उनके लिए आशीर्वाद मांगने के लिए कहा. गणेश जी पूरे 9 दिनों तक पास के एक शिवालय में आराधना में लीन हो गए. ठीक नौंवे दिन जब मां दुर्गा उन्हें दर्शन दे ही रही थीं, तभी लोगों ने दरवाजा खोल दिया.

हालांकि, इससे पहले मां दुर्गा ने उन्हें दर्शन देकर भगवान शंकर की अराधना के आदेश दे दिए थे. साथ ही उन्हें भविष्य देखने का वरदान भी दे दिया था. इसके बाद गणेश नारायण जी का पूरा जीवन मां दुर्गा और भगवान शिव की अराधना में समर्पित हो गया. धीरे-धीरे उनकी भक्ति और साधना का प्रताप चारों तरफ फैलने लगा. उनका हर आशीर्वाद लोगों के जीवन को बदलने लगा और उनकी प्रसिद्धि और सिद्धियों के कारण लोग उन्हें परमहंस कहने लगे.

वो अघोपंथ का अनुसरण करते थे, इसीलिए उनकी जीवन शैली बड़ी विचित्र थी. गणेश नारायणजी भगवती दुर्गा के परमभक्त थे और दुर्गा मंत्र का हर वक्त जाप करते रहते थे. इनके मुंह से जो भी बात निकल जाती थी वो सत्य हो जाती थी. ये चमत्कार देख कई लोग इनके परमभक्त बन गए, वहीं कई लोग इनसे डरने लगे. ऐसा इसलिए क्योंकि ये अनिष्ट करने वाली घटनाओं का भी पूर्व संकेत कर देते थे. इनके सच्चे साधक होने के बाद भी दुनिया इन्हें पागल मानती थी. ये हमेशा लोगों से दूर रहने का प्रयत्न करते थे.

पढ़ें: Special: घर की 'लक्ष्मी' से ऐसी क्या बेरुखी, 7 साल में लावारिस मिले 739 नवजात

बड़ी विचित्र थी गणेश नारायण बावलिया बाबा की जीवन शैली

अघोर पंथ का अनुसरण करने के कारण परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा की जीवन शैली बड़ी विचित्र थी. इनकी वेशभूषा के कारण महिलाएं और बच्चे इनसे बहुत डरते थे. समाज में बहिष्कृत और शास्त्रों में निषिद्ध नीले रंग के वस्त्रों का ही गणेश नारायण जी प्रयोग करते थे. ये सिले हुए कपड़े नहीं पहनते थे. ये कभी श्मशान में लोट लगाते तो कभी पास के भगीनिये जोहड़े में बैठे रहते थे.

वहीं, भोजन करते समय कुत्ते और कौवे भी इनके साथ खाते थे. ये कुत्तों के मुंह से टपकते और हंडियों में पड़े पदार्थ को बड़ी खुशी से ग्रहण करते थे. इनकी दृष्टि में किसी भी पदार्थ के प्रति घृणा नहीं थी. इसी वजह से लोग उन्हें बावलिया बाबा भी कहने लगे. बाद में वो पास के ही शहर चिड़ावा आ गए और यहीं रहने लगे. उनके प्रमुख शिष्यों में खेतड़ी के महाराज अजीत सिंह थे. उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने खर्चे से शिकागो भेजा था. आज बिड़ला परिवार में भगवान से पहले परमहंस गणेश नारायण जी की पूजा की जाती है.

बावलिया बाबा को अपना ग्राम देवता मानते हैं चिड़ावा वासी

परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा ने संवत 1969 में पौष मास की नवमी को योग मार्ग द्वारा शरीर त्याग दिया था. इनके अंतिम संस्कार स्थल पर एक मंदिर बना हुआ है, जहां इनकी भव्य प्रतिमा स्थापित है. साथ ही पास ही बिड़ला परिवार ने एक ऊंचे स्तूप का निर्माण करवाया है. ऊंचे स्तूप पर संगमरमर से बनी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां लगी हैं. चिड़ावा वासी परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा को अपना ग्राम देवता मानते हैं. इनकी निर्वाण तिथि पर विशाल मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.

पढ़ें: Special: मासूमों को शिकार बना रहा कैंसर, बीकानेर में हर साल करीब 2 हजार बच्चे हो रहे पीड़ित

सेठ जुगल किशोर बिड़ला को दिया था आशीर्वाद

कहा जाता है कि बावलिया बाबा की पिलानी के सेठ जुगल किशोर बिड़ला पर अटूट कृपा रही. पिलानी से रोज चिड़ावा आकर बाबा के दर्शन किए बिना भोजन नहीं करने और उनके सेवाभाव से खुश होकर बाबा ने बिड़ला को करणी बरणी हमेशा चालू रहने का आशीर्वाद दिया. वहीं, सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने कई बार उनसे पिलानी चलने का आग्रह भी किया, लेकिन वो चिड़ावा के भगीणिये जोहड़ से कभी आगे नहीं गए.

इसके बाद सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने संवत 1959 में उनकी याद में जोहड़ खुदवाकर एक घाट बनवाया और उस पर एक बहुत ऊंची गणेश लाट नाम की स्तूप भी बनवाई. कहा जाता है कि उनके आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सका है. बावलिया बाबा ने सेठ जुगल किशोर बिड़ला की हमेशा करणी बरणी चालू रहने का आशीर्वाद दिया था. ऐसे में उनके यहां हमेशा करनी चलती रहती है. बता दें कि करनी निर्माण क्षेत्र में मिस्त्री के काम में लिए जाने वाले उपकरण को कहा जाता है.

झुंझुनू. क्या आपने सुना है कि कोई अपने आराध्य को पागल कहे. शेखावाटी के झुंझुनू जिले के चिड़ावा कस्बे में लोग अपने इष्ट देव को बावलिया बाबा कहते हैं. यहां की स्थानीय भाषा में पागल को बावला कहा जाता है. बताया जाता है कि बुगाला में जन्मे परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा ने चिड़ावा में रहते हुए लोगों को अनेक चमत्कार दिखाए हैं.

शेखावाटी के साईं माने जाते हैं बावलिया बाबा

देश के बड़े उद्योगपति घरानों में शामिल बिड़ला परिवार के लिए भी ये माना जाता है कि जब वो अपने मूल स्थान चिड़ावा से व्यापार के लिए बाहर निकले तो उनको इन्हीं बावलिया बाबा ने आशीर्वाद दिया. लोग मानते हैं कि उनके आशीर्वाद की वजह से ही बिरला परिवार देश के प्रमुख उद्योगपतियों में शामिल है. खुद बिरला परिवार भी ये बात मानता है और यही कारण है कि उनके मंदिर में उन्होंने पूरा सहयोग दिया है.

करीब 117 साल पहले हुआ था बावलिया बाबा का जन्म

साल 1903 में राजस्थान के झुंझनू जिले में जन्मे गणेश नारायण जी की श्रद्धा बचपन से ही अघोर पंथ में थी. कहा जाता है कि साल 1942 में उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब झुंझनू के एक परिवार ने उनसे मां दुर्गा की आराधना कर उनके लिए आशीर्वाद मांगने के लिए कहा. गणेश जी पूरे 9 दिनों तक पास के एक शिवालय में आराधना में लीन हो गए. ठीक नौंवे दिन जब मां दुर्गा उन्हें दर्शन दे ही रही थीं, तभी लोगों ने दरवाजा खोल दिया.

हालांकि, इससे पहले मां दुर्गा ने उन्हें दर्शन देकर भगवान शंकर की अराधना के आदेश दे दिए थे. साथ ही उन्हें भविष्य देखने का वरदान भी दे दिया था. इसके बाद गणेश नारायण जी का पूरा जीवन मां दुर्गा और भगवान शिव की अराधना में समर्पित हो गया. धीरे-धीरे उनकी भक्ति और साधना का प्रताप चारों तरफ फैलने लगा. उनका हर आशीर्वाद लोगों के जीवन को बदलने लगा और उनकी प्रसिद्धि और सिद्धियों के कारण लोग उन्हें परमहंस कहने लगे.

वो अघोपंथ का अनुसरण करते थे, इसीलिए उनकी जीवन शैली बड़ी विचित्र थी. गणेश नारायणजी भगवती दुर्गा के परमभक्त थे और दुर्गा मंत्र का हर वक्त जाप करते रहते थे. इनके मुंह से जो भी बात निकल जाती थी वो सत्य हो जाती थी. ये चमत्कार देख कई लोग इनके परमभक्त बन गए, वहीं कई लोग इनसे डरने लगे. ऐसा इसलिए क्योंकि ये अनिष्ट करने वाली घटनाओं का भी पूर्व संकेत कर देते थे. इनके सच्चे साधक होने के बाद भी दुनिया इन्हें पागल मानती थी. ये हमेशा लोगों से दूर रहने का प्रयत्न करते थे.

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बड़ी विचित्र थी गणेश नारायण बावलिया बाबा की जीवन शैली

अघोर पंथ का अनुसरण करने के कारण परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा की जीवन शैली बड़ी विचित्र थी. इनकी वेशभूषा के कारण महिलाएं और बच्चे इनसे बहुत डरते थे. समाज में बहिष्कृत और शास्त्रों में निषिद्ध नीले रंग के वस्त्रों का ही गणेश नारायण जी प्रयोग करते थे. ये सिले हुए कपड़े नहीं पहनते थे. ये कभी श्मशान में लोट लगाते तो कभी पास के भगीनिये जोहड़े में बैठे रहते थे.

वहीं, भोजन करते समय कुत्ते और कौवे भी इनके साथ खाते थे. ये कुत्तों के मुंह से टपकते और हंडियों में पड़े पदार्थ को बड़ी खुशी से ग्रहण करते थे. इनकी दृष्टि में किसी भी पदार्थ के प्रति घृणा नहीं थी. इसी वजह से लोग उन्हें बावलिया बाबा भी कहने लगे. बाद में वो पास के ही शहर चिड़ावा आ गए और यहीं रहने लगे. उनके प्रमुख शिष्यों में खेतड़ी के महाराज अजीत सिंह थे. उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने खर्चे से शिकागो भेजा था. आज बिड़ला परिवार में भगवान से पहले परमहंस गणेश नारायण जी की पूजा की जाती है.

बावलिया बाबा को अपना ग्राम देवता मानते हैं चिड़ावा वासी

परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा ने संवत 1969 में पौष मास की नवमी को योग मार्ग द्वारा शरीर त्याग दिया था. इनके अंतिम संस्कार स्थल पर एक मंदिर बना हुआ है, जहां इनकी भव्य प्रतिमा स्थापित है. साथ ही पास ही बिड़ला परिवार ने एक ऊंचे स्तूप का निर्माण करवाया है. ऊंचे स्तूप पर संगमरमर से बनी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां लगी हैं. चिड़ावा वासी परमहंस गणेश नारायण बावलिया बाबा को अपना ग्राम देवता मानते हैं. इनकी निर्वाण तिथि पर विशाल मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.

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सेठ जुगल किशोर बिड़ला को दिया था आशीर्वाद

कहा जाता है कि बावलिया बाबा की पिलानी के सेठ जुगल किशोर बिड़ला पर अटूट कृपा रही. पिलानी से रोज चिड़ावा आकर बाबा के दर्शन किए बिना भोजन नहीं करने और उनके सेवाभाव से खुश होकर बाबा ने बिड़ला को करणी बरणी हमेशा चालू रहने का आशीर्वाद दिया. वहीं, सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने कई बार उनसे पिलानी चलने का आग्रह भी किया, लेकिन वो चिड़ावा के भगीणिये जोहड़ से कभी आगे नहीं गए.

इसके बाद सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने संवत 1959 में उनकी याद में जोहड़ खुदवाकर एक घाट बनवाया और उस पर एक बहुत ऊंची गणेश लाट नाम की स्तूप भी बनवाई. कहा जाता है कि उनके आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सका है. बावलिया बाबा ने सेठ जुगल किशोर बिड़ला की हमेशा करणी बरणी चालू रहने का आशीर्वाद दिया था. ऐसे में उनके यहां हमेशा करनी चलती रहती है. बता दें कि करनी निर्माण क्षेत्र में मिस्त्री के काम में लिए जाने वाले उपकरण को कहा जाता है.

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