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त्योहारी सीजन में भी आर्थिक संकट झेल रहे मूर्तिकार, मूर्तियां नहीं बिकने से दब रहे कर्ज तले

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Published : Oct 16, 2020, 11:05 PM IST

वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. कोरोना और लॉकडाउन की मार यूं तो सभी क्षेत्रों में पड़ी है. लेकिन इसका सबसे जबरदस्त असर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पर दिखने को मिल रहा है.

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आर्थिक संकट झेल रहे हैं मूर्तिकार

झालावाड़. अनलॉक के बाद जहां अन्य क्षेत्रों में हालात धीरे-धीरे सामान्य होते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं इन सबके बीच मूर्तिकारों के हालात दिन-ब-दिन और खराब होते जा रहे हैं. त्योहारों का सीजन होने के बावजूद मूर्तिकार खराब आर्थिक स्थिति और कर्ज के तले दबते जा रहे हैं.

मूर्तियां नहीं बिकने से दब रहें हैं कर्ज तले

बता दें कि 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू होने जा रहे हैं. नवरात्र में लोग पंडाल बनाकर दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना करते हैं. पंडालों में स्थापित होने वाली मूर्तियों पर ही मूर्तिकारों का जीवन निर्भर होता है. लेकिन कोरोना के चलते जहां पहले गणपति उत्सव के दौरान मूर्तियों की बिक्री नहीं हो पाई और अब नवरात्र में भी मूर्तियां नहीं बिक पा रही हैं. जिससे झालावाड़ में मूर्तिकारों का जीवनयापन मुश्किल हो गया है.

मूर्तिकारों ने बताया कि वह उनका खानदानी पेशा मूर्ति बनाने का ही है. उनके पूर्वज भी मूर्तियां बनाते थे और वो भी बरसों से मूर्तियां बनाते हुए आ रहे हैं. मूर्ति बनाने के अलावा वो और कोई काम नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वो काम की तलाश में उदयपुर से झालावाड़ आये हैं और यहां पर किराए की जमीन लेकर मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन पहले गणपति उत्सव के दौरान उनकी मूर्तियां नहीं बिक पाईं. जिसके बाद उनको नवरात्र से थोड़ी उम्मीद बंधी थी, लेकिन अब इसमें भी न तो दुर्गा प्रतिमाओं की बिक्री हो रही है और न कोई आर्डर मिल रहा है.

पढ़ेंः Corona Effect: नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की हुई पूजा-अर्चना, शिला माता मंदिर में भक्तों का प्रवेश बंद

मूर्तिकारों ने बताया कि नवरात्रों में इस वक्त तक 50% से ज्यादा मूर्तियों की बुकिंग हो चुकी होती थी. लेकिन इस बार गिनी चुनी मूर्तियां ही बिक पाई हैं. उसमें भी छोटी मूर्तियां ज्यादा बिक रही हैं जिनकी कीमत बेहद कम होती है. उन्होंने बताया कि एक बड़ी मूर्ति हो या 10-12 छोटी मूर्ति, दोनों बराबर होता है. लेकिन प्रशासन की सख्ती के कारण उनकी बड़ी मूर्तियां नहीं बिक रही हैं. जिससे उनको भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है.

मूर्तिकारों का कहना है कि उन्होंने 100 रुपये से लेकर करीबन 10 हजार तक की कीमत की मूर्तियां तैयार की है. ऐसे में लोग बड़ी मूर्तियां न खरीदकर के छोटी मूर्तियां ही ले जाना पसंद कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मूर्तियां नहीं बिक पाने के कारण न तो वो मजदूरों को पैसे दे पा रहे हैं और ना ही जमीन का किराया चुका पा रहे हैं. वहीं प्रशासन की सख्ती के कारण उनको कई प्रकार की परेशानियां भी झेलनी पड़ती है. ऐसे में उन्होंने सरकार से भी अपील की है कि उनके लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की जाए.

पढ़ेंः Corona Effect: 700 साल में पहली बार नवरात्र में नहीं हुए आसावरा माता जी के दर्शन

वहीं मूर्ति खरीदने वाले लोगों का कहना है कि कोरोना के संक्रमण को देखते हुए इस बार नवरात्रों को लेकर लोगों में बहुत कम उत्साह देखने को मिल रहा है. जहां पहले नवरात्रों में डांडिया और गरबा के कार्यक्रम आयोजित होते थे. साथ पंडालों में माताजी की बड़ी बड़ी मूर्तियां स्थापित की जाती थी. वहीं अब ऐसे कार्यक्रमों पर पाबंदी लगी हुई है. जिसके चलते लोग महज सामान्य कार्यक्रम और पूजा पाठ के लिए छोटी मूर्तियां खरीदना ही पसंद कर रहे हैं.

झालावाड़. अनलॉक के बाद जहां अन्य क्षेत्रों में हालात धीरे-धीरे सामान्य होते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं इन सबके बीच मूर्तिकारों के हालात दिन-ब-दिन और खराब होते जा रहे हैं. त्योहारों का सीजन होने के बावजूद मूर्तिकार खराब आर्थिक स्थिति और कर्ज के तले दबते जा रहे हैं.

मूर्तियां नहीं बिकने से दब रहें हैं कर्ज तले

बता दें कि 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू होने जा रहे हैं. नवरात्र में लोग पंडाल बनाकर दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना करते हैं. पंडालों में स्थापित होने वाली मूर्तियों पर ही मूर्तिकारों का जीवन निर्भर होता है. लेकिन कोरोना के चलते जहां पहले गणपति उत्सव के दौरान मूर्तियों की बिक्री नहीं हो पाई और अब नवरात्र में भी मूर्तियां नहीं बिक पा रही हैं. जिससे झालावाड़ में मूर्तिकारों का जीवनयापन मुश्किल हो गया है.

मूर्तिकारों ने बताया कि वह उनका खानदानी पेशा मूर्ति बनाने का ही है. उनके पूर्वज भी मूर्तियां बनाते थे और वो भी बरसों से मूर्तियां बनाते हुए आ रहे हैं. मूर्ति बनाने के अलावा वो और कोई काम नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वो काम की तलाश में उदयपुर से झालावाड़ आये हैं और यहां पर किराए की जमीन लेकर मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन पहले गणपति उत्सव के दौरान उनकी मूर्तियां नहीं बिक पाईं. जिसके बाद उनको नवरात्र से थोड़ी उम्मीद बंधी थी, लेकिन अब इसमें भी न तो दुर्गा प्रतिमाओं की बिक्री हो रही है और न कोई आर्डर मिल रहा है.

पढ़ेंः Corona Effect: नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की हुई पूजा-अर्चना, शिला माता मंदिर में भक्तों का प्रवेश बंद

मूर्तिकारों ने बताया कि नवरात्रों में इस वक्त तक 50% से ज्यादा मूर्तियों की बुकिंग हो चुकी होती थी. लेकिन इस बार गिनी चुनी मूर्तियां ही बिक पाई हैं. उसमें भी छोटी मूर्तियां ज्यादा बिक रही हैं जिनकी कीमत बेहद कम होती है. उन्होंने बताया कि एक बड़ी मूर्ति हो या 10-12 छोटी मूर्ति, दोनों बराबर होता है. लेकिन प्रशासन की सख्ती के कारण उनकी बड़ी मूर्तियां नहीं बिक रही हैं. जिससे उनको भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है.

मूर्तिकारों का कहना है कि उन्होंने 100 रुपये से लेकर करीबन 10 हजार तक की कीमत की मूर्तियां तैयार की है. ऐसे में लोग बड़ी मूर्तियां न खरीदकर के छोटी मूर्तियां ही ले जाना पसंद कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मूर्तियां नहीं बिक पाने के कारण न तो वो मजदूरों को पैसे दे पा रहे हैं और ना ही जमीन का किराया चुका पा रहे हैं. वहीं प्रशासन की सख्ती के कारण उनको कई प्रकार की परेशानियां भी झेलनी पड़ती है. ऐसे में उन्होंने सरकार से भी अपील की है कि उनके लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की जाए.

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वहीं मूर्ति खरीदने वाले लोगों का कहना है कि कोरोना के संक्रमण को देखते हुए इस बार नवरात्रों को लेकर लोगों में बहुत कम उत्साह देखने को मिल रहा है. जहां पहले नवरात्रों में डांडिया और गरबा के कार्यक्रम आयोजित होते थे. साथ पंडालों में माताजी की बड़ी बड़ी मूर्तियां स्थापित की जाती थी. वहीं अब ऐसे कार्यक्रमों पर पाबंदी लगी हुई है. जिसके चलते लोग महज सामान्य कार्यक्रम और पूजा पाठ के लिए छोटी मूर्तियां खरीदना ही पसंद कर रहे हैं.

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