झालावाड़. जिले के नेशनल हाईवे नंबर 52 पर असनावर कस्बे से 7 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की गोद में राता देवी मंदिर स्थित है. जो कि हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र है. साथ ही मंदिर के आसपास की हरियाली, पहाड़ी और तालाब का विहंगम दृश्य भी लोगों को खूब पसंद आता है.
सरकारी गहनों से होता है राता देवी का श्रृंगार
राता देवी मंदिर में नवरात्र में सरकारी खजाने से माता की मूर्ति का विशेष श्रृंगार होता है. साथ ही पुलिस के जवानों की एक टुकड़ी नवरात्रों में पूरे 9 दिनों तक यहां पर विशेष ड्यूटी पर तैनात रहती है. मंदिर में नवरात्रि के पहले और आखिरी दिन पुलिस के द्वारा विशेष सैल्यूट भी दिया जाता है. वहीं दुर्गा अष्टमी पर मंदिर में होने वाली मुख्य पूजा तहसील के तहसीलदार या फिर कानूनगो के द्वारा की जाती है. मंदिर में यह परंपरा 1947 से चली आ रही है.
हाड़ौती और मालवा क्षेत्र में श्रद्धा का बड़ा केंद्र राता देवी मंदिर
राता देवी खींची राजवंश की कुलदेवी मानी जाती है. ऐसे में नवरात्रों में सबसे पहली आरती खिलचीपुर राज परिवार की ओर से ही की जाती है. इस मंदिर के गर्भ गृह में राता देवी के पास ही में अन्नपूर्णा माता की मूर्ति भी स्थापित की हैं. ऐसे में मंदिर में न सिर्फ हाड़ौती क्षेत्र के बल्कि मालवा क्षेत्र के श्रद्धालु भी दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में यहां पर आते हैं.
ये है मंदिर का इतिहास
मंदिर में जिन देवी की पूजा की जाती है वो राता देवी गागरोन के राजा अचलदास खींची की बहन थी. ऐसे में युद्ध के दौरान जब खींची राजपरिवार महल छोड़कर जा रहा था. तभी रातादेवी यहीं पर प्रतिमा के रूप में स्थापित हो गयी. जिसके बाद लोगों के द्वारा इनकी पूजा की जाने लगी और सन 2000 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया. राता देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर उनके भाई अचलदास खींची का भी मंदिर बनाया गया है.
मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया कि इस बार कोविड 19 महामारी के कारण बहुत कम संख्या में श्रद्धालु मंदिर में आ रहे हैं. मंदिर में कोरोना का संक्रमण न फैले इसके लिए पूरे परिसर को रोज सैनिटाइज करवाया जाता है. इसके अलावा दर्शन के दौरान रस्सियों और गोले बनाकर श्रद्धालुओं से सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करवाई जाती है.