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'सिटी ऑफ बेल्स' में टूटेगी 215 साल पुरानी परंपरा...पहली बार द्वारकाधीश मंदिर में श्रद्धालुओं की No Entry

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Published : Aug 12, 2020, 5:40 PM IST

झालरापाटन के द्वारिकाधीश मंदिर में जन्माष्टमी के अवसर पर 215 सालों की परंपरा टूट रही है. यहां पर जन्माष्टमी के मौके पर इतिहास में पहली बार श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

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द्वारिकाधीश मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित

झालावाड़. कोरोना वायरस के चलते प्रशासन ने सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन पर प्रतिबंध लगा रखा है. ऐसे में जन्माष्टमी के उत्सव पर भी कोरोना का ग्रहण लग गया है. जिसका असर झालावाड़ की 'सिटी ऑफ बेल्स' कही जाने वाली धार्मिक नगरी झालरापाटन में भी देखने को मिल रहा है.

द्वारिकाधीश मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित

जहां पर हाड़ौती के नाथद्वारा कहे जाने वाले द्वारकाधीश मंदिर में इस बार 215 सालों की परंपरा टूटती हुई नजर आ रही है. अब तक के इतिहास में पहली बार इस वर्ष जन्माष्टमी के अवसर पर द्वारिकाधीश मंदिर बंद रहेगा और यहां पर श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

पढ़ें- Special : जन्माष्टमी पर फीकी पड़ी 'छोटी काशी' की रौनक...इस बार टूट जाएगी 300 साल पुरानी परंपरा

बता दें कि कर्नल जेम्स टॉड में यहां के मंदिरों की घंटियों की ध्वनि को सुनकर झालरापाटन को 'सिटी ऑफ बेल्स' का नाम दिया था. इस शहर में सैकड़ों की तादाद में मंदिर है. इनमें भगवान श्री कृष्ण का सबसे प्रसिद्ध मंदिर द्वारिकाधीश का है. जिसे 'हाड़ौती का नाथद्वारा' भी कहा जाता है.

यहां पर पिछले 215 सालों से जन्माष्टमी का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता रहा है. जिसमें भगवान श्री कृष्ण की झांकियां निकाली जाती थी, साथ ही यात्रा का आयोजन करते हुए दही हांडी के खेल का भी आयोजन किया जाता था. लेकिन इतिहास में पहली बार कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए इस सभी कार्यक्रमों के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. हालांकि, मंदिर में परंपरा को जीवंत रखने के लिए पुजारी परिवार के द्वारा पूजा-अर्चना की जाएगी, लेकिन मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

पढ़ें- जन्माष्टमी पर घर बैठे भक्त कर रहे कन्हैया की झांकियों के दर्शन

बता दें कि झालरापाटन के गोमती सागर जलाशय के तट पर भगवान द्वारकाधीश का मंदिर स्थित है जो वैष्णव संप्रदाय के वल्लभ मत का प्रसिद्ध धाम है. इस मंदिर का निर्माण 1796 में झाला जालिम सिंह ने करवाया था. लेकिन इसमें भगवान द्वारिकाधीश की स्थापना 9 वर्ष बाद 1805 में की गई थी.

जिसके बाद से यहां हाड़ौती क्षेत्र के साथ साथ मध्य प्रदेश से भी अनेक श्रद्धालु एवं पर्यटक दर्शन हेतु आते हैं. मंदिर में जन्माष्ठमी के अवसर पर विशेष प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते थे.

झालावाड़. कोरोना वायरस के चलते प्रशासन ने सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन पर प्रतिबंध लगा रखा है. ऐसे में जन्माष्टमी के उत्सव पर भी कोरोना का ग्रहण लग गया है. जिसका असर झालावाड़ की 'सिटी ऑफ बेल्स' कही जाने वाली धार्मिक नगरी झालरापाटन में भी देखने को मिल रहा है.

द्वारिकाधीश मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित

जहां पर हाड़ौती के नाथद्वारा कहे जाने वाले द्वारकाधीश मंदिर में इस बार 215 सालों की परंपरा टूटती हुई नजर आ रही है. अब तक के इतिहास में पहली बार इस वर्ष जन्माष्टमी के अवसर पर द्वारिकाधीश मंदिर बंद रहेगा और यहां पर श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

पढ़ें- Special : जन्माष्टमी पर फीकी पड़ी 'छोटी काशी' की रौनक...इस बार टूट जाएगी 300 साल पुरानी परंपरा

बता दें कि कर्नल जेम्स टॉड में यहां के मंदिरों की घंटियों की ध्वनि को सुनकर झालरापाटन को 'सिटी ऑफ बेल्स' का नाम दिया था. इस शहर में सैकड़ों की तादाद में मंदिर है. इनमें भगवान श्री कृष्ण का सबसे प्रसिद्ध मंदिर द्वारिकाधीश का है. जिसे 'हाड़ौती का नाथद्वारा' भी कहा जाता है.

यहां पर पिछले 215 सालों से जन्माष्टमी का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता रहा है. जिसमें भगवान श्री कृष्ण की झांकियां निकाली जाती थी, साथ ही यात्रा का आयोजन करते हुए दही हांडी के खेल का भी आयोजन किया जाता था. लेकिन इतिहास में पहली बार कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए इस सभी कार्यक्रमों के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. हालांकि, मंदिर में परंपरा को जीवंत रखने के लिए पुजारी परिवार के द्वारा पूजा-अर्चना की जाएगी, लेकिन मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

पढ़ें- जन्माष्टमी पर घर बैठे भक्त कर रहे कन्हैया की झांकियों के दर्शन

बता दें कि झालरापाटन के गोमती सागर जलाशय के तट पर भगवान द्वारकाधीश का मंदिर स्थित है जो वैष्णव संप्रदाय के वल्लभ मत का प्रसिद्ध धाम है. इस मंदिर का निर्माण 1796 में झाला जालिम सिंह ने करवाया था. लेकिन इसमें भगवान द्वारिकाधीश की स्थापना 9 वर्ष बाद 1805 में की गई थी.

जिसके बाद से यहां हाड़ौती क्षेत्र के साथ साथ मध्य प्रदेश से भी अनेक श्रद्धालु एवं पर्यटक दर्शन हेतु आते हैं. मंदिर में जन्माष्ठमी के अवसर पर विशेष प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते थे.

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