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SPECIAL : 15 सालों से पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं सराचंद गांव के लोग

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Published : May 13, 2020, 9:29 PM IST

सरकार द्वारा लोगों के घरों तक पानी पहुंचाने के बड़े-बड़े दावे किए जाते है, लेकिन धरातल स्तर पर जाकर देखा जाए तो इन दावों की हवा निकल जाती है. जालोर के इस गांव में 15 सालों से पानी की समस्या बनी हुई है. चिलचिलाती धूप में यहां की महिलाएं 2 किमी दूर पैदल चलकर सिर पर मटकी ढोकर पानी लाती हैं.

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जालोर में ग्रामीणों को नहीं मिल रहा पानी

जालोर. गर्मी के मौसम में जिले के ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल की किल्लत नहीं हो, इसके लिए कई प्लान बनाए जाते हैं. राज्य सरकार इस पर करोड़ों रुपए भी खर्च करती है. ताकि लोगों को हलक तर करने के लिए पानी उपलब्ध हो सके. लेकिन जलदाय विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण सरकार और जिला प्रशासन के प्रयास बीच में ही दम तोड़ देते हैं.

जालोर में ग्रामीणों को नहीं मिल रहा पानी

सरकार द्वारा लोगों के घरों तक पानी पहुंचाने के बड़े-बड़े दावे किए जाते है, लेकिन धरातल स्तर पर जाकर देखा जाए तो इन दावों की हवा निकल जाती है. इन दावों की सच्चाई जानने के लिए गर्मी का मौसम शुरू होते ही ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय से करीबन 200 किमी दूर चितलवाना उपखण्ड के सुराचंद ग्राम पंचायत मुख्यालय पहुंची. यहां पर राजीव गांधी सेवा केंद्र के सामने से पानी लेने के लिए महिलाओं का एक समूह खाली मटके लेकर जाता नजर आया.

15 सालों से पानी नहीं आया

2 किमी पैदल चलने के बाद दो कुंए मिले, जहां पर महिलाओं की भीड़ इकठ्ठी हो रखी थी. महिलाओं ने ईटीवी भारत को बताया कि गांव में पिछले 15 सालों से पानी की सप्लाई नहीं हुई है. जो जीएलआर बनाया हुआ है, वह भी पूरी तरह जर्जर हो चुका है.

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कुएं से पानी निकालती महिला

यह भी पढे़ं- मास्क नहीं पहनने पर पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह के खिलाफ याचिका दायर

गांव में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. सुबह जल्दी उठकर पानी लेने के लिए अपने घरों से निकलना पड़ता है. करीब 12 बजे तक दो किमी दूर से पानी सिर पर उठाकर लाना पड़ता है. तब जाकर घर में कोई काम हो पाता है. इसके बाद फिर हम दोपहर को घर का सारा काम पूरा करने के बाद शाम 4 बजे से वापस पानी लाने के लिए निकलना पड़ते हैं. हमें वापस आते-आते 7 से 8 बज जाते हैं.

जीएलआर भी सूखा पड़ा

जीएलआर के पास खड़े युवाओं से जानकारी ली उन्होंने बताया कि 8 किमी दूर टापी गांव में पहले बूस्टर से पानी की सप्लाई होती थी. लेकिन अब काफी सालों से पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है. जिसके कारण जीएलआर सूखा पड़ा है. पानी के लिए कई बार नेताओ के सामने मांग भी रखी. लेकिन अभी तक पानी की किल्लत का समाधान नहीं करवाया गया है.

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2 किमी दूर से पैदल चलने के बाद मिलता है पीने का पानी

गांव की महिलाएं कहती है कि कुछ अमीर लोगों के लिए प्रशासन सब व्यवस्था करवा देता है. लेकिन गरीबों की कोई नहीं सुनता है. करीबन 50 साल की महिला पवनी देवी ने बताया कि वह बेवा है. उनके घर में कमाने वाला कोई नहीं है. पानी भरने के लिए वह सुबह से ही निकल जाती हैं. घर पहुंचते-पहुंचते दोपहर तक हो जाती है. इसके बाद फिर शाम को वापस पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है.

यह भी पढ़ें- Weather News: मई के बीते 13 दिन अभी भी तपमान 45 डिग्री के नीचे, मौसम विभाग के ओलावृष्टि को लेकर जारी की चेतावनी

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कुएं में पानी की जुगत में लगी महिलाएं

बिन पानी मवेशियों की भी हो रही मौत

सुराचंद गांव की महिला मणी देवी ने बताया कि गांव में आम लोगों के पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. जिसके चलते वे तो आसपास के कुंओं से पानी लेकर आ जाते है, लेकिन मवेशियों के लिए पर्याप्त पानी ला पाना मुश्किल होता है. ऐसे में बिन पानी सैंकड़ों मवेशी मर चुके हैं.

जालोर. गर्मी के मौसम में जिले के ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल की किल्लत नहीं हो, इसके लिए कई प्लान बनाए जाते हैं. राज्य सरकार इस पर करोड़ों रुपए भी खर्च करती है. ताकि लोगों को हलक तर करने के लिए पानी उपलब्ध हो सके. लेकिन जलदाय विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण सरकार और जिला प्रशासन के प्रयास बीच में ही दम तोड़ देते हैं.

जालोर में ग्रामीणों को नहीं मिल रहा पानी

सरकार द्वारा लोगों के घरों तक पानी पहुंचाने के बड़े-बड़े दावे किए जाते है, लेकिन धरातल स्तर पर जाकर देखा जाए तो इन दावों की हवा निकल जाती है. इन दावों की सच्चाई जानने के लिए गर्मी का मौसम शुरू होते ही ईटीवी भारत की टीम जिला मुख्यालय से करीबन 200 किमी दूर चितलवाना उपखण्ड के सुराचंद ग्राम पंचायत मुख्यालय पहुंची. यहां पर राजीव गांधी सेवा केंद्र के सामने से पानी लेने के लिए महिलाओं का एक समूह खाली मटके लेकर जाता नजर आया.

15 सालों से पानी नहीं आया

2 किमी पैदल चलने के बाद दो कुंए मिले, जहां पर महिलाओं की भीड़ इकठ्ठी हो रखी थी. महिलाओं ने ईटीवी भारत को बताया कि गांव में पिछले 15 सालों से पानी की सप्लाई नहीं हुई है. जो जीएलआर बनाया हुआ है, वह भी पूरी तरह जर्जर हो चुका है.

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कुएं से पानी निकालती महिला

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गांव में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. सुबह जल्दी उठकर पानी लेने के लिए अपने घरों से निकलना पड़ता है. करीब 12 बजे तक दो किमी दूर से पानी सिर पर उठाकर लाना पड़ता है. तब जाकर घर में कोई काम हो पाता है. इसके बाद फिर हम दोपहर को घर का सारा काम पूरा करने के बाद शाम 4 बजे से वापस पानी लाने के लिए निकलना पड़ते हैं. हमें वापस आते-आते 7 से 8 बज जाते हैं.

जीएलआर भी सूखा पड़ा

जीएलआर के पास खड़े युवाओं से जानकारी ली उन्होंने बताया कि 8 किमी दूर टापी गांव में पहले बूस्टर से पानी की सप्लाई होती थी. लेकिन अब काफी सालों से पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है. जिसके कारण जीएलआर सूखा पड़ा है. पानी के लिए कई बार नेताओ के सामने मांग भी रखी. लेकिन अभी तक पानी की किल्लत का समाधान नहीं करवाया गया है.

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2 किमी दूर से पैदल चलने के बाद मिलता है पीने का पानी

गांव की महिलाएं कहती है कि कुछ अमीर लोगों के लिए प्रशासन सब व्यवस्था करवा देता है. लेकिन गरीबों की कोई नहीं सुनता है. करीबन 50 साल की महिला पवनी देवी ने बताया कि वह बेवा है. उनके घर में कमाने वाला कोई नहीं है. पानी भरने के लिए वह सुबह से ही निकल जाती हैं. घर पहुंचते-पहुंचते दोपहर तक हो जाती है. इसके बाद फिर शाम को वापस पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है.

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कुएं में पानी की जुगत में लगी महिलाएं

बिन पानी मवेशियों की भी हो रही मौत

सुराचंद गांव की महिला मणी देवी ने बताया कि गांव में आम लोगों के पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. जिसके चलते वे तो आसपास के कुंओं से पानी लेकर आ जाते है, लेकिन मवेशियों के लिए पर्याप्त पानी ला पाना मुश्किल होता है. ऐसे में बिन पानी सैंकड़ों मवेशी मर चुके हैं.

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