जैसलमेर. सरहदी जिले जैसलमेर से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान सरकार में अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद के पिता गाजी फकीर का मंगलवार को निधन हो गया. गाजी फकीर कई दिनों से बीमार चल रहे थे. फकीर को मंगलवार को उनके पैतृक गांव झाबरा में सुपुर्द-ए-खाक किया गया.
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इस दौरान उनके परिवार के सदस्यों के साथ ही भारी संख्या में उनके अनुयायी और मुस्लिम समाज के लोग अंतिम दर्शन के लिए एकत्रित हुए. कोरोना महामारी को देखते हुए गाजी फकीर के बड़े बेटे और राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री सालेह मोहम्मद ने मुस्लिम समाज के लोगों से कम संख्या में ही आने की अपील की थी, लेकिन गाजी फकीर की शख्सियत कुछ ऐसी ही थी की हर कोई खुद को आने से रोक ना सका. उनकी अंतिम यात्रा में लगभग 4 से 5 हजार लोग शामिल हुए.
बता दें, गाजी फकीर सिंधी मुसलमानों के धर्मगुरु थे. ऐसे में जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, पाली, बीकानेर और जालोर सहित पश्चिमी राजस्थान और सीमा के उस पार पाकिस्तान में भी पीर पागारों की नुमाइंदगी करते थे, जिसके चलते उनके कई अनुयायी हैं. एक धर्मगुरु के साथ-साथ वे एक मंझे हुए राजनेता भी थे और यही कारण है कांग्रेस ही नहीं भाजपा के भी कई दिग्गज नेताओं के साथ इनकी गहरी दोस्ती थी. कई चुनावों में उनके एक इशारे पर मुस्लिम वोटर अपना वोट देते थे.
मुस्लिम समाज के निहाल खान ने बताया गाजी फकीर एक ऐसे शख्सियत थे जिन्होंने मुस्लिम समाज के साथ 36 कौम के लोगों को साथ लेकर आगे बढ़े. वे पश्चिमी राजस्थान में अपना विशेष वर्चस्व रखते थे. उन्होंने कहा कि रमजान का महीना चल रहा है और कोरोना महामारी के कारण लोग कम संख्या में ही पहुंचे. यदि सामान्य दिन होते तो 50 से 60 हजार लोग अंतिम दर्शनों में शामिल होते. उन्होंने बताया कि जमात के लोगों में बहुत गहरा दुख है क्योंकि उन्होंने अपना रहनुमा खोया है.
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लतीफ खान ने कहा कि गाजी फकीर के जाने से सिंधी मुस्लिम समाज में अंधेरा छा गया है क्योंकि वह एक ऐसे शख्सियत थे जिसने गरीब के साथ सूखी रोटी तो अमीर के साथ बैठकर मेवा खाया है. उन्होंने कहा कि पश्चिमी राजस्थान के मुस्लिम समाज में गाजी फकीर की विशेष पकड़ थी, जैसी शायद ही किसी और के पास हो. यही वजह है कि उन्हें सरहद का 'सुल्तान' कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सभी के दिलों में राज किया है.