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स्पेशल रिपोर्ट: चमत्कारिक तालाब! 400 सालों से कभी नहीं सूखा

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Published : Dec 18, 2019, 6:52 PM IST

राजस्थान के जैसलमेर में एक ऐसा चमत्कारी तालाब है, जो 400 सौ सालों से कभी सूखा नहीं है. यहां के लोगों का दावा है, कि ये तालाब सैकड़ों सालों से लोगों की प्यास बुझा रहा है. आखिर क्या है इस तालाब के पीछे की कहानी, देखिए जैसलमेर से स्पेशल रिपोर्ट में...

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जैसलमेर का चमत्कारिक तालाब, देखिए स्पेशल रिपोर्ट

जैसलमेर. जैसलमेर जिले के डेढ़ा गांव में करीब चार सौ साल पहले देवर के उलाहने पर भाभी के पिता ने एक ऐसा चमत्कारी तालाब खुदवाया, कि वो आज तक लोगों की प्यास बुझा रहा है. यहां के लोगों का कहना है, कि तालाब बनने के बाद से आज तक एक बार भी नहीं सूखा. जैसलमेर से करीब 50 किलोमीटर दूर कुलधरा खाभा रोड पर डेढ़ा गांव का यह ऐतिहासिक तालाब पालीवाल संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है.

जैसलमेर का चमत्कारिक तालाब, देखिए स्पेशल रिपोर्ट

कभी खाली नहीं हुआ तालाब का पानी
इस प्राचीन तालाब का पानी कई सदियों के बीत जाने के बाद भी कभी खाली नहीं हुआ. इसे कुदरत का करिश्मा कहें या फिर पूर्वजों का वरदान. इस तालाब में जैसलमेर के पालीवाल संस्कृति के कई गांवों की प्यास उस जमाने में भी बुझाई और आज भी आसपास के दर्जन भर गांवों की प्यास बुझा रहा है. इस क्षेत्र में कई बार 3 से 4 साल तक बारिश नहीं होने के बावजूद भी तालाब का पानी कभी खाली नहीं हुआ. वर्तमान में भी रोजाना आसपास के दर्जन भर गांवों से 50 से ज्यादा टैंकर इस तालाब से पानी भर कर ले जाते हैं. इस ऐतिहासिक तालाब की तस्वीर दिल्ली के विज्ञान भवन में राजस्थान के परम्परागत पेयजल स्रोतों की समृद्ध संस्कृति का बखान कर रही है. इसके अलावा देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

पढ़ें- स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर बना था यह ऐतिहासिक सरोवर

देवर के उलहाने पर भाभी के पिता ने खुदवाया तालाब
वहीं ईटीवी भारत को ग्रामीणों ने इस तालाब के बारे में जानकारी दी. गांव के बुजुर्गों का कहना है, कि इस तालाब के बारे में किवदंती जुड़ी हुईं हैं. यह गांव चार सौ साल पहले जब पालीवाल संस्कृति का हिस्सा था, उस समय पास के गांव जाजिया में पालीवाल जाति के एक धनवान सेठ की लड़की जसबाई की शादी इस गांव में हुई थी और उस समय पानी के लिए पनघट पर जाना पड़ता था. जस बाई एक दिन ससुराल से घड़ा लेकर पानी भरने गांव के कुएं पर गई, जहां एक पशुपालक अपने मवेशियों को पानी पिला रहा था. यह देखकर युवती ने पशुपालक से आग्रह किया, कि उसे पहले एक घड़ा पानी भरने दें, ताकि समय पर घर जाकर खाना बना सके, लेकिन पशुपालक ने उसके आग्रह को अनसुना कर दिया और जस बाई को बाद में घड़ा भरना पड़ा.

इसके बाद वह गुस्से से घर की ओर चली गई. इस बीच रास्ते में उसे उसका देवर मिला और उसने देवर को यह बात बताई तो देवर ने ताना दिया, कि भाभी गांव में पानी लेने जाना है तो ऐसे ही देर होगी. तुम्हें जल्दी घड़ा भरना है तो अपने पिता को कह दो, कि तुम्हारे लिए नया तालाब खुदवा दें, ताकि तुम तुरंत घड़ा भरकर वापस आ सको. देवर के इस ताने से जस बाई ने अपने पिता को सन्देश भिजवा दिया, कि आप तुरंत मेरे लिए एक तालाब खुदवाओ. बेटी का सन्देश मिलते ही पिता तालाब खुदाई के कारीगरों को साथ लेकर डेढ़ा गांव पहुंचा और गांव के पास ही एक स्थान पर तालाब खुदवा दिया.

पीतल की परत को बिछाकर बनाया गया तालाब
तालाब में पीतल की चादर की परत भी लगवाई. जैसे ही तालाब खुदकर तैयार हुआ तो उसी रात बारिश हुई और तालाब पानी से भर गया. जसबाई घड़ा लेकर आई और घड़ा भर कर ससुराल पहुंची और देवर से कहा, कि उसके पिता ने तालाब खुदवा दिया है और मैं उसी तालाब से घड़ा भर कर ले आई हूं. ग्रामीण बताते हैं, कि तबसे लेकर अबतक कभी भी इस तालाब का पानी नहीं सूखा.

पढ़ें- स्पेशल: ब्रिटिश स्थापत्य कला का अद्भुत उदारहण यह नहर हो रही 'दुर्दशा' का शिकार

वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय
देवर के उलाहने से बना ये तालाब आज भी लोगों की प्यास बुझा रहा है. यहां के लोग इसे चमत्कारिक तालाब मानते हैं. ऐसे में ये तालाब वैज्ञानिकों के लिए भी शोध का विषय है, कि आखिर कैसे इतने सालों से ये तालाब पानी से भरा हुआ है.

जैसलमेर. जैसलमेर जिले के डेढ़ा गांव में करीब चार सौ साल पहले देवर के उलाहने पर भाभी के पिता ने एक ऐसा चमत्कारी तालाब खुदवाया, कि वो आज तक लोगों की प्यास बुझा रहा है. यहां के लोगों का कहना है, कि तालाब बनने के बाद से आज तक एक बार भी नहीं सूखा. जैसलमेर से करीब 50 किलोमीटर दूर कुलधरा खाभा रोड पर डेढ़ा गांव का यह ऐतिहासिक तालाब पालीवाल संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है.

जैसलमेर का चमत्कारिक तालाब, देखिए स्पेशल रिपोर्ट

कभी खाली नहीं हुआ तालाब का पानी
इस प्राचीन तालाब का पानी कई सदियों के बीत जाने के बाद भी कभी खाली नहीं हुआ. इसे कुदरत का करिश्मा कहें या फिर पूर्वजों का वरदान. इस तालाब में जैसलमेर के पालीवाल संस्कृति के कई गांवों की प्यास उस जमाने में भी बुझाई और आज भी आसपास के दर्जन भर गांवों की प्यास बुझा रहा है. इस क्षेत्र में कई बार 3 से 4 साल तक बारिश नहीं होने के बावजूद भी तालाब का पानी कभी खाली नहीं हुआ. वर्तमान में भी रोजाना आसपास के दर्जन भर गांवों से 50 से ज्यादा टैंकर इस तालाब से पानी भर कर ले जाते हैं. इस ऐतिहासिक तालाब की तस्वीर दिल्ली के विज्ञान भवन में राजस्थान के परम्परागत पेयजल स्रोतों की समृद्ध संस्कृति का बखान कर रही है. इसके अलावा देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

पढ़ें- स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर बना था यह ऐतिहासिक सरोवर

देवर के उलहाने पर भाभी के पिता ने खुदवाया तालाब
वहीं ईटीवी भारत को ग्रामीणों ने इस तालाब के बारे में जानकारी दी. गांव के बुजुर्गों का कहना है, कि इस तालाब के बारे में किवदंती जुड़ी हुईं हैं. यह गांव चार सौ साल पहले जब पालीवाल संस्कृति का हिस्सा था, उस समय पास के गांव जाजिया में पालीवाल जाति के एक धनवान सेठ की लड़की जसबाई की शादी इस गांव में हुई थी और उस समय पानी के लिए पनघट पर जाना पड़ता था. जस बाई एक दिन ससुराल से घड़ा लेकर पानी भरने गांव के कुएं पर गई, जहां एक पशुपालक अपने मवेशियों को पानी पिला रहा था. यह देखकर युवती ने पशुपालक से आग्रह किया, कि उसे पहले एक घड़ा पानी भरने दें, ताकि समय पर घर जाकर खाना बना सके, लेकिन पशुपालक ने उसके आग्रह को अनसुना कर दिया और जस बाई को बाद में घड़ा भरना पड़ा.

इसके बाद वह गुस्से से घर की ओर चली गई. इस बीच रास्ते में उसे उसका देवर मिला और उसने देवर को यह बात बताई तो देवर ने ताना दिया, कि भाभी गांव में पानी लेने जाना है तो ऐसे ही देर होगी. तुम्हें जल्दी घड़ा भरना है तो अपने पिता को कह दो, कि तुम्हारे लिए नया तालाब खुदवा दें, ताकि तुम तुरंत घड़ा भरकर वापस आ सको. देवर के इस ताने से जस बाई ने अपने पिता को सन्देश भिजवा दिया, कि आप तुरंत मेरे लिए एक तालाब खुदवाओ. बेटी का सन्देश मिलते ही पिता तालाब खुदाई के कारीगरों को साथ लेकर डेढ़ा गांव पहुंचा और गांव के पास ही एक स्थान पर तालाब खुदवा दिया.

पीतल की परत को बिछाकर बनाया गया तालाब
तालाब में पीतल की चादर की परत भी लगवाई. जैसे ही तालाब खुदकर तैयार हुआ तो उसी रात बारिश हुई और तालाब पानी से भर गया. जसबाई घड़ा लेकर आई और घड़ा भर कर ससुराल पहुंची और देवर से कहा, कि उसके पिता ने तालाब खुदवा दिया है और मैं उसी तालाब से घड़ा भर कर ले आई हूं. ग्रामीण बताते हैं, कि तबसे लेकर अबतक कभी भी इस तालाब का पानी नहीं सूखा.

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वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय
देवर के उलाहने से बना ये तालाब आज भी लोगों की प्यास बुझा रहा है. यहां के लोग इसे चमत्कारिक तालाब मानते हैं. ऐसे में ये तालाब वैज्ञानिकों के लिए भी शोध का विषय है, कि आखिर कैसे इतने सालों से ये तालाब पानी से भरा हुआ है.

Intro:Body:देवर के एक ताने पर खुदवाया भाभी के पिता ने चमत्कारिक तालाब

ग्रामीणों का कहना है सैकड़ों सालों से नहीं सूखा ये तालाब

आज भी दर्जनों गाँवों की बुझाता है प्यास


राजस्थान में जैसलमेर जिले के डेढा गावं में करीब चार सौ साल पूर्व देवर के ताने पर भाभी के पिता द्वारा खुदवाया गया चमत्कारी तालाब सूखे के समय भी आसपास के गांवों की प्यास बूझा रहा है। कहते हैं ये तालाब बनने के बाद से एक बार भी इसका पानी नहीं सूखा। क्या है इसका रहस्य। पेश है एक स्पेशल रिपोर्ट।

जैसलमेर जिला मुख्यालय से करीब पचीस किलोमीटर दूर कुलधरा खाभा रोड़ पर स्थित डेढ़ा गांव का यह ऐतिहासिक तालाब पालीवाल संस्कृति का प्रतीक बना हुआ हैं। इस प्राचीन तालाब का पानी कई सदियों के बीत जाने के बाद भी कभी खाली नहीं हुआ। इसे कुदरत का करिश्मा कहें या फिर पूर्वजो का वरदान, इस तालाब में जैसलमेर के पालीवाल संस्कृति के कई गांवो की प्यास उस जमाने में भी बुझाई और आज भी आस-पास के दर्जन भर गांवो की प्यास बुझा रहा है। इस क्षेत्र में अनेकों बार तीन से चार साल तक बारिश नहीं होने के बावजूद भी इस तालाब का पानी कभी खाली नहीं हुआ। आज भी प्रतिदिन आस-पास के दर्जन भर गांवो से पचास से अधिक टेंकर इस तालाब से पानी भर कर ले जाते है। इस ऐतिहासिक तालाब की तस्वीर दिल्ली के विज्ञान भवन में राजस्थान के परम्परागत पेयजल स्रोतों की समृद्ध संस्कृति का बखान कर रही हैं। इसके अलावा देशी विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ हैं।

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि इस तालाब के बारे में किदवंती जुड़ी हुई हैं। यह गांव चार सौ साल पहले जब पालीवाल संस्कृति का हिस्सा था उस समय पास के गांव जाजिया में पालीवाल जाति के एक धनाढ्य सेठ की लडक़ी जसबाई की शादी इस गांव में हुई थी और उस समय पानी के लिए पनघट पर जाना पड़ता था। जस बाई एक दिन ससुराल से घड़ा लेकर पानी भरने गांव के कुँए पर गई जहां एक पशुपालक अपने मवेशियों को पानी पिला रहा था। यह देख कर युवती ने पशुपालक से आग्रह किया कि उसे पहले एक घड़ा पानी भरने दे ताकि समय पर घर जाकर खाना बना सके लेकिन पशुपालक ने उसके आग्रह को अनसुना कर दिया और जस बाई को बाद में घड़ा भरना पड़ा। इस बाद से वह गुस्से से घर की ओर चली तो बीच रास्ते उसे उसका देवर मिला तथा उसने देवर को यह बात बताई तो देवर ने ताना दिया कि भाभी गांव में पानी लेने जाना है तो ऐसे ही देर होगी। तुम्हे जल्दी घड़ा भरना है तो अपने पिता को कहो की तुम्हारे लिए नया तालाब खुदवा दे ताकि तुम तुरंत घड़ा भर वापस आ सको। देवर के इस ताने से जस बाई ने अपने पिता को सन्देश भिजवा दिया कि आप तुरंत मेरे लिए एक तालाब खुदवाओ। बेटी का सन्देश मिलते ही पिता ने तालाब खुदाई के कारीगरों को साथ लेकर डेढ़ा गांव पहुंचा और गांव के पास ही एक स्थान पर तालाब खुदवा दिया। तालाब में पीतल की चदर की परत भी लगवाई। जैसे ही तालाब खुदकर तैयार हुआ तो उसी रात बारिश हुई और तालाब पानी से भर गया। जसबाई घड़ा लेकर आई और घड़ा भर कर ससुराल पहुंची तथा देवर से कहा की उसके पिता ने तालाब खुदवा दिया है और मैं उसी तालाब से घड़ा भर कर ले आई हूं। ग्रामीण बताते हैं लो तबसे लेकर अब तक कभी भी इसका पानी नहीं सूखा।

बाईट-1-विजय बल्लाणी, इतिहास के जानकार
बाइट-2- लीला देवी , ग्रामीण महिला
बाईट-3-विजय बल्लाणी, इतिहास के जानकार Conclusion:
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