जैसलमेर. आज विश्व जल दिवस (World Water Day 2021) है. हर साल जल दिवस एक थीम के साथ मनाया जाता है. इस साल का थीम है वेल्यूइंग वाटर (Valuing Water), जिसके लक्ष्य लोगों को पानी का महत्व समझाना है. पानी के महत्व रेगिस्तानी जिले के वाशिंदों से बेहतर ही कोई जान सके. वहीं जैसलमेर में पेयजल की समस्या प्रमुख है. ऐसे में विश्व जल दिवस पर ईटीवी भारत ने भू-जल वैज्ञानिक नारायण दास इण्खिया से की विशेष बातचीत की. जिसमें उन्होंने जैसलमेर जिले में भू-जल की वर्तमान स्थिति और परंपरागत जल स्रोतों पर चर्चा की.
1993 में पहली बार आयोजित हुआ था विश्व जल दिवस
जैसलमेर में पानी की समस्या से पहले जान लेते हैं कि विश्व जल दिवस की शुरुआत कब और कैसे हुई. पूरे विश्व में पानी का संरक्षण जिस गंभीरता के साथ होना चाहिए नहीं हो रहा है. भारत में भी भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है. इसी पानी को संरक्षित करने और लोगों को जागरुक करने के लिए हर साल संयुक्त राष्ट्र ने विश्व जल दिवस मनाने की शुरुआत की थी. पहली बार साल विश्व जल दिवस पर 1993 में 22 मार्च को हुआ था.
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पानी की समस्या से जूझ रहे जैसलमेर वासी रेगिस्तान का सीना चीर कर अपने और पशुओं के पीने योग्य पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बेरियां खोदी, जिसमें बारिश के दौरान भूगर्भ में सिंचित जल रिस-रिस कर आता था. इसके साथ ही महिलाएं कई किलोमीटर तक पैदल चल कर सिर पर बर्तन रखकर पानी लाती थी और उसका कई तरीके से सदुपयोग करती थी.
पुराने जमाने की कहावत प्रसिद्ध थी 'घी सस्ता और पानी मंहगा'
आज जैसलमेर जिले में भू-जल की वर्तमान स्थिति और परंपरागत जल स्रोतों पर भू जल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि यहां पर पुराने समय में पानी का अधिक महत्व था. पानी के उपयोग को लेकर भी यहां एक कहावत थी की 'घी सस्ता और पानी मंहगा'. ऐसे में यहां के लोग पानी का बहुउपयोग करते थे, जिसमें नहाने के पानी से कपड़े धोना और कपड़े धोने के बाद बचे हुए पानी को पौधों को दे देना जिससे पानी व्यर्थ नहीं जाए. साथ ही यहां घी-दूध मांगने पर सहज ही उपलब्ध हो जाता था लेकिन पानी नहीं.
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जिले में हो भूजल का दोगुना दोहन
वर्तमान परिस्थितियों पर बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि अब जैसलमेर में इंदिरा गांधी नहर का पानी पहुंच रहा है, जिससे नहरी इलाकों में हरियाली बढ़ी है लेकिन आज भी जिले का बड़ा भू-भाग पानी के लिए संघर्ष कर रहा है. अत्याधुनिक वैज्ञानिक संसाधनों की उपलब्धता के कारण अब यहां पर बड़ी संख्या में बोरवेल भी खुद गए हैं, जिससे भूजल का दोगुनी गति में दोहन हो रहा है और वर्षा जल जो पारंपरिक तरीकों से संवर्धन किया जाता था, वो बिल्कुल ना के बराबर हो रहा है.
पानी के सदुपयोग की अपील
साथ ही परंपरागत जल स्त्रोतों की अनदेखी की जा रही है और वनों की कटाई के कारण पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ रहा है, जो जिले के भविष्य के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं है. इस मौके पर भू-जल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया ने आमजन से वर्षा जल संचयन के साथ ही परंपरागत जल स्त्रोतों के संरक्षण और पानी के सदुपयोग की अपील की है.
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ताजा-पानी का संकट कितना वास्तविक है
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है, जहां पानी तेजी से कम हो रहा है और इस आंकड़े के बढ़ने की संभावना है. दूसरी तरफ प्रतिदिन, लगभग 1,000 बच्चे स्वच्छता से संबंधित बीमारियों से दम तोड़ देते हैं. वहीं दुनिया के कुछ ग़रीब देशों में सूखे की वजह से भूख और कुपोषण का ख़तरा पैदा हो गया है. प्रौद्योगिकी उत्पाद कंपनी 3M इंडिया के अनुसार, 'जल संकट की वजह से भारत के 600 मिलियन से अधिक लोग पानी की कमी का सामना कर रहे हैं.
पानी के संरक्षण के तरीके
- पानी अनमोल और यह महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है और इसका उपयोग हममें से प्रत्येक की जिम्मेदारी है कि हम इसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें.
- नहाते समय शॉवर की बजाय बाल्टी का उपयोग करें.
- वर्षा जल को संग्रहित करें, शुद्ध करें और उसका उपयोग करें.
- ब्रश करते समय, शेविंग करते समय नल को चालू न रखें.
- नल चलाने के बजाय एक कटोरी पानी में सब्जियों को धोएं.
- पानी की खपत को कम करने के लिए अपनी वाशिंग मशीन में हिसाब के मुताबिक पानी भरें