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जैसलमेर में घूमते थे डायनासोर, लेकिन अब यह साबित करने वाला फुट प्रिंट ही गायब - hills of thaiyat village

जैसलमेर जिले में भू-विज्ञान एवं शोध के क्षेत्र में संभावनाएं अपार हैं. यही वजह है कि लगातार देशी-विदेशी शोधकर्ताओं के दलों का यहां आना-जाना होता है. जरूरत है तो बस यहां मौजूद इन दुर्लभ भंडारों के संरक्षण की. लेकिन ही में लापरवाही की एक बड़ी खबर सामने आई है. जानिए क्या है पूरा मामला...

dinosaurs used to roam in jaisalmer
डायनासोर के दुर्लभ फुट प्रिंट गायब...
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Published : Sep 21, 2021, 5:39 PM IST

जैसलमेर. भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इनखिया ने कहा कि पृथ्वी के ऐतिहासिक काल-क्रम में मेसोजोइक काल के मध्यकाल में ट्राइएसिक और क्रिटेशस के बीच 15 करोड़ से लेकर 12.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक का समय जुरासिक काल माना जाता है, जिसे विशाल सरीसृपों का युग भी कहते हैं.

जैसलमेर में इसी जुरासिक काल खंड की चट्टानें मिली हैं, जिसके चलते वैज्ञानिकों का यहां शोध करने को लेकर उत्साह बना रहता है. क्योंकि यहां संभावनाएं भी अपार हैं.

क्या कहते हैं भूजल वैज्ञानिक एवं शोध दल के सदस्य नारायण दास...
इनखिया ने कहा कि वर्ष 2014 में यूरोपीयन यूनियन के जूलॉजिस्ट की एक कॉन्फ्रेंस जैसलमेर में आयोजित हुई थी, जिसे जुरासिक कांग्रेस का नाम दिया गया था.

इस दौरान दल द्वारा जिले के थईयात गांव के पास शोध के दौरान गांव की पहाड़ियों पर उभरे हुए पैर के निशान मिले थे. इन पर स्टडी हुई तो सामने आया कि ये फुट प्रिंट 15 करोड़ साल पुराने हैं और इन्हें डायनासोर के फुट प्रिंट के तौर पर मार्क किया गया था.

डायनासोर के दुर्लभ फुट प्रिंट गायब...

हाल ही में सामने आया है कि यह डायनासोर के दुर्लभ फुट प्रिंट वहां से गायब हो गए हैं और थईयात गांव की पहाड़ियों पर मिले ये निशान अब नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में कई संभावनाएं व्यक्त की जा रही है कि इसे कोई शोधकर्ता स्टूडेंट शोध के लिए भी ले जा सकता है या किसी अन्य वजह से यह नष्ट हो गया है. वजह चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह वर्तमान में अपने स्थान पर नहीं है.

पढ़ें : बकरी को दबोचकर निगल रहा था 11 फीट लंबा अजगर और फिर...

शोधकर्ताओं के लिए बड़ा नुकसान...

2014 में हुए इस शोध दल में जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इनखिया भी शामिल थे. उनका कहना है कि इस प्रकार के दुर्लभ शोध गायब होना चिंता का विषय है और यह जैसलमेर ही नहीं, बल्कि पूरे जूलोजिकल विंग सहित जैसलमेर आने वाले शोधकर्ताओं के लिए बड़ा नुकसान है. इस प्रकार के स्थानों का संरक्षण आवश्यक है, नहीं तो यह सब नष्ट हो जाएंगे.

पढ़ें : खोदा गड्ढा निकला तहखाना : जैसलमेर के बासनपीर गांव में मिला तहखाना..गांव वाले सुना रहे 200 साल पुरानी कहानी

2014 में वैज्ञानिकों को डायनासोर के पैरों के 2 निशान मिले थे...

2014 में वैज्ञानिकों को डायनासोर के पैरों के 2 निशान मिले थे. इनकी मार्किंग कर इन्हें सुरक्षित किया गया और इस खोज को 2015 में पब्लिश किया गया. इस पर स्टडी की गई तो सामने आया कि ये इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड डायनासोर के फुट प्रिंट हैं, जिनके पैर में तीन मोटी उंगलियां थीं और पंजा 30 सेंटीमीटर लंबा था. इस तरह के डायनासोर एक से तीन मीटर ऊंचे और पांच से सात मीटर चौड़े होते थे. इस डायनासोर के जीवाश्म इससे पहले फ्रांस, पोलैंड, स्लोवाकिया, इटली, स्पेन, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में मिले हैं.

जैसलमेर. भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इनखिया ने कहा कि पृथ्वी के ऐतिहासिक काल-क्रम में मेसोजोइक काल के मध्यकाल में ट्राइएसिक और क्रिटेशस के बीच 15 करोड़ से लेकर 12.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक का समय जुरासिक काल माना जाता है, जिसे विशाल सरीसृपों का युग भी कहते हैं.

जैसलमेर में इसी जुरासिक काल खंड की चट्टानें मिली हैं, जिसके चलते वैज्ञानिकों का यहां शोध करने को लेकर उत्साह बना रहता है. क्योंकि यहां संभावनाएं भी अपार हैं.

क्या कहते हैं भूजल वैज्ञानिक एवं शोध दल के सदस्य नारायण दास...
इनखिया ने कहा कि वर्ष 2014 में यूरोपीयन यूनियन के जूलॉजिस्ट की एक कॉन्फ्रेंस जैसलमेर में आयोजित हुई थी, जिसे जुरासिक कांग्रेस का नाम दिया गया था.

इस दौरान दल द्वारा जिले के थईयात गांव के पास शोध के दौरान गांव की पहाड़ियों पर उभरे हुए पैर के निशान मिले थे. इन पर स्टडी हुई तो सामने आया कि ये फुट प्रिंट 15 करोड़ साल पुराने हैं और इन्हें डायनासोर के फुट प्रिंट के तौर पर मार्क किया गया था.

डायनासोर के दुर्लभ फुट प्रिंट गायब...

हाल ही में सामने आया है कि यह डायनासोर के दुर्लभ फुट प्रिंट वहां से गायब हो गए हैं और थईयात गांव की पहाड़ियों पर मिले ये निशान अब नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में कई संभावनाएं व्यक्त की जा रही है कि इसे कोई शोधकर्ता स्टूडेंट शोध के लिए भी ले जा सकता है या किसी अन्य वजह से यह नष्ट हो गया है. वजह चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह वर्तमान में अपने स्थान पर नहीं है.

पढ़ें : बकरी को दबोचकर निगल रहा था 11 फीट लंबा अजगर और फिर...

शोधकर्ताओं के लिए बड़ा नुकसान...

2014 में हुए इस शोध दल में जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इनखिया भी शामिल थे. उनका कहना है कि इस प्रकार के दुर्लभ शोध गायब होना चिंता का विषय है और यह जैसलमेर ही नहीं, बल्कि पूरे जूलोजिकल विंग सहित जैसलमेर आने वाले शोधकर्ताओं के लिए बड़ा नुकसान है. इस प्रकार के स्थानों का संरक्षण आवश्यक है, नहीं तो यह सब नष्ट हो जाएंगे.

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2014 में वैज्ञानिकों को डायनासोर के पैरों के 2 निशान मिले थे...

2014 में वैज्ञानिकों को डायनासोर के पैरों के 2 निशान मिले थे. इनकी मार्किंग कर इन्हें सुरक्षित किया गया और इस खोज को 2015 में पब्लिश किया गया. इस पर स्टडी की गई तो सामने आया कि ये इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड डायनासोर के फुट प्रिंट हैं, जिनके पैर में तीन मोटी उंगलियां थीं और पंजा 30 सेंटीमीटर लंबा था. इस तरह के डायनासोर एक से तीन मीटर ऊंचे और पांच से सात मीटर चौड़े होते थे. इस डायनासोर के जीवाश्म इससे पहले फ्रांस, पोलैंड, स्लोवाकिया, इटली, स्पेन, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में मिले हैं.

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